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भीम सिंह का सफ़रनामा, जब सद्दाम ने उन्हें अपना केस लड़ने के लिए बुलाया, यासिर अराफात थे उनके फैन

साल 2005 में जब इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन मानवता के खिलाफ क्राइम का ट्रायल फेस कर रहे थे तब उनकी इच्छा थी कि वो जम्मू कश्मीर के नेता भीम सिंह उनके डिफेंस के लिए 11 वकीलों की टीम का हिस्सा बनें। भीम सिंह जम्मू एंड कश्मीर नेशनल पैंथर पार्टी के फाउंडर थे, जिनके बगदाद जाने पर अमेरिका ने बैन लगा दिया था, उन्होंने बड़ी दूरदर्शिता के साथ कहा था, ‘एक मृत सद्दाम अमेरिका और ब्रिटेन के लिए जीवित सद्दाम से कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकता है… एक पल के लिए ऐसा किया जा सकता है, लेकिन इसके परिणाम लंबे समय के लिए खतरनाक होंगे।’

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मंगलवार को 80 वर्ष की उम्र में भीम सिंह का निधन हो गया। उन्होंने पांच दशकों से ज्यादा लंबे अपने राजनीतिक जीवन में सद्दाम हुसैन, फिलीस्तीनी लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) के नेता यासिर अराफात और क्यूबा के नेता फिदेल कास्त्रो जैसे अंतरराष्ट्रीय हस्तियों से संबंध बनाए थे। वे अपने जीवन में बहुत सी प्रतिभाओं के धनी थे। वो एक पत्रकार, एक लेखक और ग्लोबट्रॉटर, एक वृत्तचित्र फिल्म निर्माता, एक वकील और एक राजनेता, सभी किरदारों में पूरी तरह से ढले हुए थे। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी एन भगवती ने उन्हें ‘दुर्लभ साहस और दृढ़ संकल्प रखने वाले सत्य और न्याय के लिए एक अदम्य योद्धा’ के रूप में वर्णित किया था।

मोटर साइकिल से की 150 देशों की यात्रा

भीम सिंह ने मोटरसाइकिल पर 150 देशों की यात्रा की थी। मोटर साइकिल पर विश्व भ्रमण करने के बाद उन्होंने एक पुस्तक, ‘पीस मिशन अराउंड द वर्ल्ड ऑन मोटरसाइकिल’ भी लिखी थी। इस पुस्तक का विमोचन डॉ. कर्ण सिंह ने किया था। उनकी पुस्तक अनबिलिवेबल-दिल्ली टू इस्लामाबाद का विमोचन तत्कालीन उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने किया था। साल 1967 में विश्व को शांति का संदेश देने के लिए भीम सिंह अपनी मोटरसाइकिल से ही विश्व भ्रमण पर निकल पड़े। उन्होंने बिना एक भी पैसे और बिना किसी के समर्थन के ईरान और अफगानिस्तान सहित साल 1973 तक 150 देशों की यात्रा की।

विश्व भ्रमण यात्रा के दौरान सड़क हादसे में बची जान

भीम सिंह की विश्व भ्रमण की इस यात्रा के दौरान एक सड़क दुर्घटना उनकी जान जाने से बाल-बाल बची थी। साल 1968 में पश्चिम एशिया में एक युवा अराफात से मिले, साल 1971 में क्यूबा में कास्त्रो (उन्होंने क्यूबा के नेता की प्रशंसा की लेकिन द्वीप पर उनके कड़े शासन की आलोचना भी की थी), साल 1972 में अमेरिकी परमाणु बमबारी के बचे लोगों से मिलने के लिए हिरोशिमा का दौरा किया था। कहा जाता है कि उनका चिली के राष्ट्रपति सल्वाडोर अलेंदे के साथ आमना-सामना हुआ था, जो 1973 में अमेरिका समर्थित तख्तापलट में मारे गए थे और गोलान हाइट्स पर विवाद के संबंध में अराफात और पीएलओ के समर्थन में उस वर्ष सीरिया की यात्रा की।

फिलिस्तीनियों के लिए आजीवन प्रतिबद्ध रहे भीम सिंह

फिलिस्तीनी उद्देश्यों के लिए भीम सिंह की प्रतिबद्धता आजीवन रही। साल 1992 में ट्यूनिस में यासिर अराफात के निर्वासन के दौरान भीम सिंह उनसे मिलने पहुंचे और कुछ ही वर्षों के पश्चात वो फिर से उनसे मुलाकात करने के लिए रामल्ला गए। भारत में वापस आने पर भीम सिंह ने भारत-फिलिस्तीन मैत्री समाज के अध्यक्ष के रूप में काम किया और फिलिस्तीन की संप्रभुता की मान्यता के लिए अभियान चलाया। साल 2000 में उनके संगठन ने नई दिल्ली में इजरायली दूतावास के सामने भूख हड़ताल की, बाद में कब्जे वाले क्षेत्रों को छोड़ने और संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के प्रस्तावों का पालन करने की मांग की।

लीबिया पर हवाई हमलों को रोकने के लिए हस्तक्षेप किया

साल 1986 में एफ्रो-एशियन सॉलिडेरिटी काउंसिल के अध्यक्ष के रूप में,भीम सिंह ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से लीबिया पर अमेरिकी हवाई हमलों को रोकने और हस्तक्षेप करने की अपील की।

सीमा पार शांति का पैगाम भेजा

भीम सिंह के इंटरनेशनलिज्म के अलावा उनकी स्थायी विरासत में से एक ‘हार्ट टू हार्ट टॉक’ होगी, जिसे उन्होंने नियंत्रण रेखा (एलओसी) के दोनों किनारों पर रहने वाले लोगों के बीच 2005 और 2007 में आयोजित करने में मदद की थी। नई दिल्ली में पहले सम्मेलन में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के पूर्व प्रधान मंत्री सरदार अब्दुल कय्यूम खान ने भाग लिया था। इन सम्मेलनों में पारित प्रस्तावों के बाद दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली के उपाय के लिए उन्होंने पुंछ-रावलकोट, और उरी-मुजफ्फराबाद सड़कों क्रॉस एलओसी व्यापार खोलने और लोगों की यात्रा का आधार बनाया।

सु्प्रीम कोर्ट से 300 पाकिस्तानी कैदियों की रिहाई करवाई

अपनी पार्टी की राज्य कानूनी सहायता समिति के माध्यम से, भीम सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिकाएं दायर कीं और लगभग 300 पाकिस्तानी कैदियों की रिहाई करवाई ये कैदी कई दशकों से भारतीय जेलों में बंद थे। उनके इन प्रयासों का सीमा के उस पार भी प्रभाव पड़ा। पाकिस्तान में वकीलों ने वहां की जेलों में बंद भारतीयों के मामलों को उठाना शुरू कर दिया और उनकी सुरक्षित रूप से रिहाई करवानी शुरू कर दी थी।

1982 में किया जेकेएनपीपी का गठन

साल 1973 में विश्व भ्रमण से लौटने के बाद, भीम सिंह जम्मू-कश्मीर युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने और संगठन के अखिल भारतीय महासचिव के पद तक पहुंचे। साल 1982 में उन्हें एक पुनर्वास विधेयक पर मतभेदों के चलते कांग्रेस छोड़नी पड़ी और फिर उन्होंने JKNPP का गठन किया। नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) के नेता अब्दुल रहीम राथर ने तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के समर्थन से विधानसभा में विधेयक पेश किया था। इस विधेयक में उन कश्मीरियों के पुनर्वास और स्थायी वापसी के लिए कानूनी ढांचा प्रदान किया गया, जो 1 मार्च, 1947 और 14 मई, 1954 के बीच पाकिस्तान चले गए थे और उनके वंशज थे।

1996 में कश्मीर में 9 साल बाद करवाए चुनाव

इस विधेयक के पारित होने के बाद भीम सिंह ने इस कानून को चुनौती देने के लिए सु्प्रीम कोर्ट का रुख भी किया था। माना जाता है कि 1996 में सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग का रुख करने के उनके प्रयासों से उस वर्ष जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उस साल जम्मू-कश्मीर में नौ साल के अंतराल के बाद चुनाव हुए थे।

अपने विनोद प्रिय और हाजिर जवाबी के जाने जाते थे भीम सिंह

भीम सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन और वकालत की वजह से हमेशा व के बावजूद भी कभी अपने हास्य स्वभाव को अपने व्यक्तित्व से अलग नहीं होने दिया। एक बार शेख अब्दुल्ला ने जेकेएनपीपी के गठन के परोक्ष संदर्भ में भीम सिंह से विधानसभा के पटल पर एक सवाल पूछ लिया कि वो एक अच्छा इंसान एक जानवर के साथ क्यों जुड़ना चाहता है? इस पर सिंह ने हंसते हुए जवाब दिया था, ‘शेर से मानवता को बचाने के लिए पैंथर आया है।’ उस समय अब्दुल्ला को शेर-ए-कश्मीर की उपाधि दी गई थी।

(सभार जनसत्ता)