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भूखे को हर हाल में चाहिए: दो जून की रोटी!

सुसंस्कृति परिहार

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 दो जून की रोटी से आशय दो वक्त के भोजन का है। बुंदे लखंड में मूलतः भोजन का मूलाधार रोटी है इसलिए संभवतः यह कहावत कही गई होगी।आज रोटी का सवाल पूरी दुनिया खासकर उन देशों में जहां गेहूं का बड़े पैमाने पर आयात होता रहा है खड़ा है। निर्यातक देश रुस, यूक्रेन और भारत के हालात खराब है। अल्लामा इक़बाल कहते हैं-

जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी

उस ख़ेत के हर ख़ोशा-ए-गुन्दम को जला दो 

हजारों साल पहले पश्चिमी एशिया के देशों में गेहूं की खेती होने के सबूत मिले हैं. इसके अलावा तुर्की, ईराक और मिस्र में भी खुदाई के दौरान गेहूं के दाने मिल चुके हैं, जो तकरीबन 6 हजार साल पुराने बताए जाते हैं।यही गेहूं आज दुनिया में सबसे ज्यादा खाने वाला अनाज है. एक अनुमान के मुताबिक, दुनियाभर में हर साल 6020 लाख टन से ज्यादा गेहूं की खपत होती है. गेहूं की सबसे ज्यादा खपत चीन में होती है. उसके बाद भारत का नंबर आता है.

इस वर्ष भारत में गेहूं का स्टॉक कम होने से गेहूं और आटे की कीमत बेतहाशा बढ़ने लगी थी। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में देखने को मिल रहा है। इसकी एक वजह रूस-यूक्रेन जंग को भी माना जा रहा है।क्योंकि रूस और यूक्रेन में जंग की वजह से गेहूं की सप्लाई पर असर पड़ा है।इधर भारत में इस बार गेहूं की सरकारी खरीद बहुत कम की गई।इसी से निर्यात और राशन की व्यवस्था चलती है। इसीलिए उत्तर प्रदेश सरकार ने राशन के लिए सख्त नियमों की घोषणा की तथा जिन पात्रों ने गलत तरीके से राशन पाया उनसे वसूली का भी प्लान बनाया था जिसकी मुनादी भी शुरू हो गई थी किंतु अन्य प्रांतों में आसन्न चुनावों के मद्देनजर उत्तर प्रदेश सरकार अब ये कह रही है उसने ऐसी कोई घोषणा नहीं की।

सरकारी रेट पर गेहूं की कमी खरीदी और उत्तरप्रदेश में राशन के लिए अन्न फानन में बनाया कानून हालांकि वह फिलहाल स्थगित है इस बात की ताकीद तो करता ही है कि आगे क्या होने वाला है।सवाल इस बात का है सरकार ने गेहूं की खरीदी कम क्यों की इसके पीछे अडानी के वे गोदाम तो नहीं जिनके लिए किसानों ने इतना बड़ा और दीर्घ आंदोलन चलाया। हमारे देश का किसान उत्पादन के तुरंत बाद उसे बाजार में ओने पोने दाम में बेच देता है क्योंकि उसके जीवननिर्वाह का यही एक मात्र ज़रिया है। लगता है वह गेहूं ना चाहते हुए भी अडानी के पास पहुंच गया है जो देर सबेर विदेशों को ऊंचे दामों में बेचा जाएगा। अभी तो निर्यात पर रोक लगाने का नाटकीय निर्णय लिया गया है।छोटे व्यापारियों का अनाज भी शीघ्र ख़तरे हो जायेगा तब जो परिदृश्य होगा वह बहुत कारुणिक होगा। किसानों की इतनी मेहनत के बाद भरपूर उत्पादन के बावजूद देश के लोग दो जून की रोटी को तरसेंगे।

विदित हो यू पी ए सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक 2013 में संसद द्वारा पारित किया गया था। विधेयक के प्रावधानों के अनुसार, प्राथमिकता वाले परिवारों से संबंधित प्रत्येक व्यक्ति को हर माह में 7 किलो खाद्यान्न देने का प्रस्ताव है। जिसमें 3 रुपये प्रति किलो चावल, 2 रुपये किलो गेहूं और 1 रुपये किलो मोटा अनाज दिया जाता हैइस विधेयक के अनुसार सामान्य श्रेणी के परिवारों को 3 किलो खाद्यान्न प्रति व्यक्ति देने का प्रावधान है। इसका खाद्य सुरक्षा विधेयक का लाभ देश की 75 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को होना था।

खाद्य सुरक्षा का मतलब उन लोगों को उचित खाद्य आपूर्ति करना है जो मूल पोषण से वंचित हैं। भारत में खाद्य सुरक्षा एक प्रमुख चिंता रही है संयुक्त राष्ट्र-भारत के मुताबिक भारत में लगभग 19.5 करोड़ कुपोषित लोग हैं, जो कि वैश्विक भुखमरी का एक चौथाई हिस्सा है। भारत में लगभग 43% बच्चे लंबे समय तक कुपोषित हैं।

दुनिया भर के बाल कुपोषण और गर्भवती महिलाओं की मृत्यु के मामलों में भारत का बेहद बुरा रिकॉर्ड है। भारत में भुखमरी खत्म करने की दिशा में यूपीए सरकार की यह योजना एक अहम कदम के तौर पर देखी जा रही है. प्रत्येक गर्भवती महिला को 6 हजार रुपये दिए जाने का भी प्रावधान रखा गया है. साथ ही 6 महीने से 14 साल तक के बच्चों को राशन मुहैया कराया जाना राज्य सरकार की जिम्मेदारी होगी. परिवार की सबसे उम्रदराज महिला मुखिया होगी और उसी के नाम पर राशन कार्ड होगा.इसे भुखमरी से लड़ाई का बिल कहा गया।

दुखद यह है भारत 116 देशों के वैश्विक भुखमरी सूचकांक (जीएचआई) 2021 में फिसलकर 101वें स्थान पर आ ही गया है। इस मामले में वह अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से पीछे है। वर्ष 2020 में भारत 94वें स्थान पर था। ऑक्सफेम इंडिया ने कहा कि जीएचआई में भारत का सात पायदान खिसककर 101वें स्थान पर पहुंचने से संबंधित आंकड़ा ‘‘दुर्भाग्य से देश के यथार्थ को दर्शाता है जहां कोविड-19 महामारी के बाद से भुखमरी और बढ़ी है।’’जबकि 2013 में भारत का सूचकांक 67वें नंबर पर था। सन् 2014 से 2017के बीच बढ़ते बढ़ते यह आज 101पर आ पहुंचा है। मतलब साफ है कि यू पी ए  सरकार द्वारा भुखमरी से लड़ाई के लिए बने बिल का फायदा आम नागरिक तक नहीं पहुंच पाया।हां कोविड महामारी  के दौरान पूर्ववर्ती सार्वजनिक वितरण प्रणाली से लोगों को काफी सहारा मिला। लेकिन इस अन्न के अधिकार का दुरुपयोग उत्तर प्रदेश और अन्य चार राज्यों में वोट प्राप्ति हेतु भी किया गया।राशन में दिए थैले इस बात का ठोस प्रमाण है। जो कि शर्मनाक है।

इधर भारत ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया जिसके बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमतों में बड़ा उछाल आया है. वैश्विक बाजार में गेहूं की आपूर्ति बाधित होने से खाद्य संकट गहराता जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में मिलने वाले एक बुशल (1 Bushel- 27.216 KG) गेहूं की कीमत शिकागो में 5.9 फीसदी तक बढ़कर 12.47 डॉलर हो गई है. भारत की तरफ से निर्यात प्रतिबंध के बाद वैश्विक बाजार में गेहूं की कीमतों में लगभग 6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.

आज जब दुनिया में गेहूं की मांग बढ़ी है तब भारत का स्टाक सूखा है।इस साल सरकार की गेहूं की खरीद 15 साल के सबसे निचले स्तर पर है. इस साल सरकार ने अब तक केवल 1.8 करोड़ मैट्रिक टन गेहूं की ख़रीद की है वहीं साल 2021-22 में 4.3 करोड़ मैट्रिक टन गेहूं की ख़रीद हुई थी। फिर ये कैसे मुनासिब है कि हर भूखे को दो जून की रोटी मिल पायेगी। सरकार फुसलाने में लगी है निर्यात पर रोक लगाई गई है किन्तु यह नहीं बताया जा रहा है कि किसानों के श्रम से उत्पन्न अनाज कहां गुम हुआ है।यह गुम अनाज अडानी की गोदामों में लगता है पहुंच गया है। कारपोरेट अपने धर्मानुसार संकट के समय निकालकर भरपूर मुनाफा लेगा। ऐसे दौर में शिद्दत से दुष्यंत कुमार का एक शेर अर्ज़ है-

भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ

आजकल दिल्ली में है जेरे-बहस ये मुद्आ