पैदल घरों को लौट रहे मजदूरों की बेबसी, ‘जिस राज्य ने कुछ नहीं किया, उसने पुलिस से पिटवाया’

कृष्णकांत

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क्योंकि वे मौत से नहीं डरते, क्योंकि वे इतना जोर से चिल्लाना नहीं जानते कि दिल्ली के कान फट जाएं, इसलिए उन्हें मारा जा सकता है. उन्हें गटर में डुबोकर मारा जा सकता है, उन्हें साइट पर बोल्डर से दबाकर मारा जा सकता है, उन्हें भूख से मारा जा सकता है, उन्हें ट्रेन से कुचलकर मारा जा सकता है, उन्हें फिनायल पिलाकर मारा जा सकता है… सूची अंतहीन है…

उन्हें लगता है कि रेल की पटरियां उन्हें घर पहुंचा देंगी, इसलिए वे अब भी रेल की पटरियों से सहारे जा रहे हैं. औरंगाबाद में इन्हीं रेल की पटरियों पर 16 मजदूर कट गए. हो सकता है तमाम मजदूरों को यह बात पता ही न हो. उन्हें बचपन से यह पता है कि रेल की पटरी गांव से शहर ले गई थी, वह शहर से गांव भी पहुंचा देगी.

मुंबई-ठाणे के बीच कई मजदूर अभी भी रेलवे ट्रैक के सहारे घर जा रहे हैं. उनका कहना है: ‘काम और खाना कुछ नहीं मिल रहा है 40 दिन से बैठे हैं जो पैसे बचे थे वह सब खर्च हो गए. अब तो पैसे भी नहीं बचे हैं. इसलिए अब हमारे पास कोई रास्ता नहीं है. कैसे भी हम घर पहुंच जाएंगे.’

इस बीच ओडिशा ने काम के घंटे बढ़ा दिए हैं. अब फैक्ट्री कानून के तहत आठ घंटे की जगह 12 घंटे काम करना होगा. मजदूर काम नहीं करेंगे तो शहर कैसे चमकेंगे? लेकिन उसी ओडिशा, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात और राजस्थान से लाखों की संख्या में लोग पैदल चले थे. वे अब भी चल रहे हैं. कुछ पहुंच गए, कुछ नहीं पहुंचे, कुछ पहुंच जाएंगे, कुछ कभी नहीं पहुंचेंगे.

कर्नाटक सरकार ने बस चलवाई और दोनों तरफ का किराया वसूला. बाद में ट्रेन चलवाई तो रद्द करवा दी और मजदूरों को टीन के बने दड़बे में भर दिया. गुजरात के एक बीजेपी नेता ने घर भेजने के नाम पर 100 मजदूरों से 1.40 लाख लूट लिया. विरोध करने गए तो पीटकर खोपड़ी फोड़ दी. झारखंड के 56 मजदूर सूरत में 42 दिन फंसे रहे. फिर इन्होंने मिलकर एक बस बुक कराई. बस वाले ने कुल 2 लाख 24 हजार रुपये वसूले और लेकर गिरीडीह छोड़ दिया. वे सौ दो सौ किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर गए.

जिस राज्य ने कुछ नहीं किया, उसने पुलिस से पिटवाया. जिसने बहुत मेहरबानी की, उसने मरने के लिए छोड़ दिया. वे ट्विटर पर बहस नहीं कर सकते. वे प्रधानमंत्री को रीट्वीट करके गालियां नहीं दे सकते. वे सोशल मीडिया पर ट्रेंड नहीं करा सकते. वे मीडिया पर छापा मार खबरें नहीं चलवा सकते. वे सत्ता को झुकने के लिए मजबूर नहीं कर सकते. वे झूठ बोलकर बहसें नहीं जीत सकते. वे बस अंतिम सांस तक हांड़ तोड़ सकते हैं. जब तक शहरों में थे, तब तक हांड़ तोड़ रहे थे. अब उनकी जरूरत नहीं रही तो पैदल कर हांड़ गला रहे हैं. वे मर सकते हैं इसलिए मर रहे हैं. किसी को फर्क नहीं पड़ता, इसलिए मर रहे हैं.

अगर यही भगदड़ विदेश में रहने वाले भारतीयों में है तो उनके लिए विमान हैं. सबको वायुयान से, विमान से और नेवी के जहाज से घर लाया जाएगा. विशेष आपरेशन चल रहे हैं. इस देश में कोई अमीर कभी पैदल चलकर नहीं मरा. फुटकर मीडिया खबरों के आधार पर अनुमान है कि करीब 400 लोग मारे जा चुके हैं. सबसे अदभुत यह है कि मजदूरों के सबसे बड़े संकट और सबसे बड़े पलायन पर कोई सियासी या प्रशासनिक हलचल नहीं है. खिलाड़ी के अंगूठे पर ट्वीट करने वाले भी इस पर मौन हैं. सबसे जरूरतमंद लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है.

(लेखक युवा पत्रकार एंव कहानीकार हैं)