सरकार किसानों पर खेती का ऐसा मॉडल थोपना चाहती है जो अमेरिका और यूरोप में फेल हो चुका है।

कृष्णकांत

वे सिर्फ अपने लिए नहीं लड़ रहे हैं। वे लड़ रहे हैं ताकि कॉरपोरेट और सियासत की संगठित लूट पर नियंत्रण रहे, ताकि महंगाई आसमान न छुए, ताकि कालाबाजारी वैध न हो, ताकि देश के किसान कर्ज से दबकर जान न दें, ताकि किसानों की रोजी-रोटी न छिने, ताकि जनता की मेहनत पर उसका भी हक़ हो, ताकि देश का संसाधन सिर्फ दो लोगों का खजाना न भरे।  वे सिर्फ अपने लिए नहीं, वे आपके लिए भी लड़ रहे हैं। लेकिन इस देश की सत्ता उन्हें तोड़ना चाहती है। इस देश का मीडिया उन्हें बदनाम करना चाहता है। इस देश की राजनीति सिर्फ उनका इस्तेमाल करना चाहती है। इस देश  का कॉरपोरेट उनकी मेहनत पर डाका डालना चाहता है।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

देश की सरकार किसानों पर खेती का ऐसा मॉडल थोपना चाहती है जो अमेरिका और यूरोप में फेल हो चुका है। अमेरिका की जनसंख्या भारत जैसी नहीं है। अमेरिका में बेरोजगारी भारत जैसी नहीं है। अमेरिका में गरीबी भारत जैसी नहीं है। अमेरिका की खेती सब्सिडी से चलती है। अमेरिका में सिर्फ 2 फीसदी लोग कृषि पर निर्भर हैं। 2019 में अमेरिका ने कृषि को 867 बिलियन डॉलर की सब्सिडी दी। यूरोपीय यूनियन के देश अपने किसानों को सालाना 110 अरब डॉलर की मदद देते हैं।

विकसित देशों ने किसानों को बाजार के रहमो-करम पर छोड़ने की तरकीब अपनाई थी जो नाकाम रही। भारत में 80 फीसदी से ज्यादा किसान छोटी जोत के हैं। भारत की लगभग 60 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है।  छोटा किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और कॉरपोरेट के लिए खेती छोड़ देगा तो कहां जाएगा? पिछले करीब दो साल में अकेला कृषि सेक्टर फायदे में है बाकी मोदी जी 18 घण्टे मेहनत करके डुबा चुके हैं। वे जबरन “फादर ऑफ इकोनॉमी” बनने को दुबले हुए जा रहे हैं। अमेरिका में कहा जा रहा है कि चुनिंदा बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बढ़ती आर्थिक ताकत से किसानों की आमदनी घट गई है। यहां मोदी जी भी सब कम्पनियों को सौंपना चाहते हैं।

भारत अमेरिका की नकल में इतना अंधा है कि अमेरिका की फेल हो चुकी व्यवस्था अपनाने को बेताब है। यहां किसानों को अब तक उनकी उपज का कोई मूल्य नहीं मिलता। इसी सीजन यूपी और बिहार में 1000 रुपये में धान बिक रहा है जबकि समर्थन मूल्य 1868 है।  किसान समाज का प्राथमिक उत्पादक है। उसका संकट पूरे समाज का संकट होगा। किसान आपकी भी लड़ाई लड़ रहे हैं।

(लेखक युवा पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)