नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जाने-माने उद्योगपति अज़ीम हाशम प्रेमजी की सराहना की है। दरअस्ल अज़ीम प्रेम जी ने एक व्यक्ति के पिछले आचरण को माफ करने के लिए सहमति व्यक्त की, जिसने अपनी कंपनियों के माध्यम से प्रेमजी और उनके सहयोगियों के खिलाफ 70 से अधिक मुकदमे दायर किए थे।
जस्टिस संजय किशन कौल और एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा, ‘‘हमें यह जानकर खुशी हो रही है कि अज़ीम हाशम प्रेमजी ने इस मामले पर एक रचनात्मक दृष्टिकोण लिया है और आर सुब्रमण्यम के पिछले आचरण को माफ करने के लिए सहमत हुए हैं, विशेष रूप से, उनके द्वारा सामना किए गए वित्तीय मुद्दों को देखते हुए और एक दयालु दृष्टिकोण रखने के लिए भी।
पीठ ने यह भी कहा, ‘‘मौजूदा कार्यवाही से पता चला है कि जब पार्टियां किसी स्थिति की वास्तविकता को देखने की इच्छुक होती हैं, तब कुछ भी असंभव नहीं है। प्रतिवादियों द्वारा शुरू किए गए 70 से अधिक मुकदमों को गलत तरीके से पेश किया गया। आर सुब्रमण्यम द्वारा एक अहसास के साथ अपने पिछले आचरण के लिए पश्चाताप करना चाहता है और अपने जीवन में एक नया अध्याय शुरू करना चाहता है।’’
सुनवाई की अंतिम तिथि पर वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने अपने मुवक्किल प्रेमजी को आर सुब्रमण्यम के आचरण के बारे में अधिक दयालु दृष्टिकोण रखने और सभी मुद्दों को बंद करने के लिए राजी करने के लिए सहमति व्यक्त की थी।
सुब्रमण्यम ने अपीलकर्ता प्रेमजी और उनके समूह के खिलाफ अदालतों, न्यायाधिकरणों और वैधानिक अधिकारियों के समक्ष लंबित विभिन्न कार्यवाही को वापस लेने का वचन देने का आश्वासन दिया था। सुब्रमण्यम ने सुनवाई की आखिरी तारीख को दिए गए अपने आश्वासन के अनुसार संपत्तियों, कंपनियों की सूची और अदालतों के समक्ष लंबित उनके द्वारा दायर जनहित याचिकाओं के विवरण के साथ एक हलफनामा दायर किया है।
विप्रो के पूर्व अध्यक्ष प्रेमजी ने पिछले साल कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें निचली अदालत द्वारा उनके खिलाफ जारी समन को रद्द करने की उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।
कोर्ट ने प्रेमजी की अपील को भी स्वीकार कर लिया और कहा, ‘‘हमें उपरोक्त व्यवस्था पर पहुंचने और वर्तमान कार्यवाही और कई अन्य कार्यवाही को समाप्त करने में पार्टियों की सुविधा पर अपनी संतुष्टि दर्ज करनी चाहिए’’ अदालत ने कहा, ‘‘यह कहने के लिए पर्याप्त है कि हम पाते हैं कि आपराधिक कार्यवाही की शुरुआत के साथ-साथ उच्च न्यायालय के फैसले पूरी तरह से अस्थिर हैं और तदनुसार दोनों को अलग रखा गया है।’’