खेल, युद्ध नहीं हो सकता है और दुश्मन के साथ खेला नहीं करते

संजय कुमार सिंह

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27 जनवरी को टाइम्स ऑफ इंडिया में एक खबर प्रकाशित हुई है, भारत के खिलाफ एक टी20 मैच में (भारत पाकिस्तान टी 20 मैच में – भी लिखा जा सकता था) में कथित रूप से पाकिस्तान टीम को चीयर करने के लिए तीन कश्मीरी छात्रों के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चलेगा। अदालती मामले पर टिप्पणी करने की मेरी कोई योग्यता नहीं है। इसलिए मैं पुलिस और खबर की ही बात करूगा। खबर में लिखा है, पाकिस्तान टीम को कथित रूप से चीयर करने – अगर चीयर करना पक्का नहीं है तो अपराध कैसे बनता है? और अपराध है तो कथित रूप से लिखने की जरूरत नहीं है।

मेरे ख्याल से मुकदमा यही है कि पाकिस्तान टीम को चीयर करना राजद्रोह है। अगर चीयर करना पक्का नहीं है तो मामला बनता ही नहीं है। और पुलिस ने मामला बनाया है तो सबूत होंगे और अदालत में यह तय नहीं होना है कि चीयर किया कि नहीं। वहां यह तय किया जाएगा कि चीयर करना सजा योग्य कार्रवाई है कि नहीं। अगर चीयर करने वाले को बता दिया जाए कि सजा हो सकती है तो वह क्यों स्वीकार करेगा कि उसने पाकिस्तान टीम को चीयर किया। और इसके बिना मामला भी नहीं बनेगा। इसलिए यह तो तय होना ही चाहिए कि चीयर किया कि नहीं। अदालत में यही तय हो सकता है कि चीयर करना राजद्रोह है कि नहीं। कथित रूप से चीयर करने पर तो मामला बनेगा ही नहीं। तब तो चीयर करना साबित करना होगा। वह मामला अलग होगा।

प्रकाशित खबर से यही लग रहा है कि चीयर तो किया गया है अदालत में यह तय होना है कि पाकिस्तान को चीयर करना राजद्रोह है अथवा नहीं। इसलिए कथित रूप से चीयर किया लिखना ठीक नहीं है। या ऐसा है तो मामला ठीक (मजबूत) नहीं है। अब बात आती है पुलिस केस की। पुलिस का केस तो यही होगा कि तीनों छात्रों ने पाकिस्तान टीम को चीयर किया और इस तरह राजद्रोह हुआ। अदालत में इसे राजद्रोह माना जाएगा कि नहीं यह तय होना है। लेकिन पुलिस की दिक्कत क्या है? यहां पाकिस्तान सेना या पाकिस्तान देश को चीयर नहीं किया गया है। पाकिस्तान सेना और उसकी क्रिकेट टीम में अंतर है। और यह अंतर वही है जो खेल और यु्द्ध में है। खेल भावना यह है कि आप दुश्मन के साथ भी खेल सकते हैं। और इसीलिए पाकिस्तान टीम के साथ खेल होता है। वरना केवल युद्ध होता।

अगर आप खेल को युद्ध मानेंगे तो दिक्कत होगी। और मुझे लगता है पुलिस की समस्या इसी कारण है। कोई भी दर्शक किसी भी टीम का समर्थक या प्रशंसक हो सकता है। उदाहरण के लिए महिलाओं और पुरुषों के खेल में यह जरूरी नहीं है कि पुरुष महिलाओं को चीयर नहीं करें या महिलाएं पुरुषों को चीयर नहीं करें। यह उसी तरह है कि अगर भूखे-नंगों और विकलांगों मैच हो तो मैं विकलांगों को चीयर कर सकता हूं। इसका मतलब यह नहीं होगा कि मुझे भूखा-नंगा या विकलांग मान लिया जाए या बना दिया जाए। दर्शक तो दर्शक की श्रेणी में होगा वह किसी भी टीम का समर्थक या प्रशंसक हो सकता है।

पाकिस्तान सेना का समर्थन (हालांकि निष्पक्ष राय देनी हो तो कोई क्या करेगा?) पाकिस्तान टीम के समर्थन की तरह नहीं है और ना चीयर करना राजद्रोह या पाकिस्तान की सरकार का समर्थन है। लेकिन देश में चल रही हिन्दू मुसलिम राजनीति में पाकिस्तान पड़ोसी नहीं, जबरन दुश्मन मान लिया गया है। मेरा मानना है कि पाकिस्तान इतना ही बुरा है तो उसके साथ खेल होना ही नहीं चाहिए। नवाज शरीफ को शपथग्रहण में नहीं बुलाना चाहिए था। और बिना बुलाए तो जाना ही नहीं चाहिए। सारे संबंध तोड़ लीजिए। दुश्मन की तरह व्यवहार शुरू कीजिए और उसमें खेलना बंद करना पहली जरूरत है।

भाजपा और शिव सेना में शिवसेना इसीलिए बेहतर है। याद कीजिए, उसने पाकिस्तान के साथ मैच खेलकर हिन्दू मुसलमान या भारत पाकिस्तान नहीं किया था। पिच खोद दिया था। उस समय इसे बुरा माना गया था लेकिन शिवसेना एक तरफ थी। पूरी तरह खिलाफ। भाजपा की तरह नहीं कि दुश्मन के साथ मैच खेलिए और दर्शक उसके खेल को अच्छा भी न बोलें। पर तब सवाल है कि खेलें क्यों और हारे क्यों? हारने वाले को तो टांग दीजिए जैसे युद्ध में मार दिया जाता। तभी चीयर करने वाले पर राजद्रोह का मुकदमा चलाना जायज होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)