नई दिल्लीः केन्द्र सरकार बीते कुछ वर्षों में कई सरकारी संस्थानों का निजीकरण किया है। सरकार ने जिन संस्थाओं का निजीकरण किया उनके पीछे तर्क है कि ये घाटे के कारण किया गया है। अब इस पर समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद जावेद अली ख़ान ने सवाल उठाया है। जावेद अली ख़ान ने सवाल किया है कि जिन कारोबार फ़ोन, रेल, जहाज़, बिजली, होटल, खदान आदि में सरकार को घाटा होता है उनमें अडानियों- अम्बानियों को मुनाफ़ा कैसे होने लगता है।
पूर्व राज्यसभा सांसद ने सोशल मीडिया पर टिप्पणी करके केन्द्र सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि मोदी सरकार ने अब तक कुल 713 अनुपयोगी व कालविरूद्ध क़ानून निरस्त किये हैं, 2015 में 125, 2016 में 295, 2017 में 235 और 2019 में 58 पर कृषि क़ानून मूँछ का सवाल बने हुए हैं क्योंकि निरस्त क़ानूनों से मोदी मित्र प्रभावित नहीं होते थे। उन्होंने इतिहास का हवाला देते हुए चेतावनी दी है कि अपने समय में बेइंतहा मज़बूत माने जाने वाले कई देशों के शासकों ने दूसरे देशों में शरण लेकर निर्वासित बुढ़ापा व्यतीत किया है।
केन्द्र सरकार द्वारा बनाए गए कृषि सुधार क़ानून पर सवाल उठाते हुए कहा कि कौन सा धंधा कब चौपट हो जाये कह नहीं सकते पर कृषि का कारोबार तब तक चलेगा जब तक धरती पर जीवन रहेगा, इसीलिए पूँजीपति कृषि को हथियाना चाहते हैं। बता दें कि किसानों द्वारा कृषि क़ानूनों का विरोध लगातार जारी है। दिल्ली सिंघू बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर पर एक महीने से भी अधिका समय से किसान आंदोलन कर रहे हैं। आंदोलन कर रहे किसानों की मांग की है कि केन्द्र सरकार द्वारा बनाए गए तीनों कृषि क़ानूनों का वापस लिया जाए और एमएसपी की गारंटी सुनिश्चित की जाए।