‘इंटेक’ की किताब ‘दिल्ली द बिल्ड हैरिटेज’ में दिल्ली की 213 मस्जिदों का जिक्र है। इनमें काली, लाल, सुनहरी, हरी और नीली कम से कम 5 रंगों की मस्जिदें शामिल हैं।
अमिताभ एस.
दिल्ली की चंद मस्जिदों के रंग-बिरंगे नाम और इतिहास से जुड़ी कहानियां वाकई दिलचस्प हैं। ‘इंडियन नेशनल ट्रस्ट फ़ॉर आर्ट एंड कल्चरल हैरिटेज’ यानी ‘इंटेक’ (दिल्ली चेप्टर) की किताब ‘दिल्ली द बिल्ड हैरिटेज’ में दिल्ली की 213 मस्जिदों का उल्लेख है। इनमें से 5 रंगों के नामों की मस्जिदें हैं। हरी मस्जिद एक है, तो सुनहरी 4 हैं। और काली या कलां मस्जिदें 2 हैं। नीली मस्जिद एक है। लाल रंग के नाम से दिल्ली में 3 मस्जिदें हैं।
सबसे पुरानी काली मस्जिद
रंगों के नामों की मस्जिदों में सबसे पुरानी काली मस्जिद बताई जाती है। है तुर्कमान गेट के पास एक गली में, जिसके निर्माण के तार फिरोज शाह तुगलक से जुडे़ हैं।हालाँकि मस्जिद का वास्तविक नाम कलां मस्जिद है, लेकिन काली मस्जिद के तौर पर ही ज्यादा मशहूर है। और फिर, काली मस्जिद बाहर से हरे और सफेद रंग की है। तीसेक सीढ़ियां चढ़ कर, करीब 20 मीटर की ऊंचाई पर मस्जिद में दाखिल होते हैं। नीचे का हिस्सा घर और दुकानों के तौर पर इस्तेमाल होता है। मस्जिद की छत पर छोटे-छोटे 30 गुम्बद हैं।
गली के निवासी बताते हैं कि सन् 1387 में फिरोज शाह तुगलक के वजीर खान-ए-जहान जुनान शाह ने कलां मस्जिद बनवाई थी। ‘कला’ फारसी शब्द है, जिसका मतलब है बड़ा। उसने दिल्ली में कुल 7 मस्जिदें बनवाईं थीं, जिनमें कलां मस्जिद एक है। वजीर ने बाकी मस्जिदें बेगम पुरा (महरौली), निजामुद्दीन, कालू सराय, लाहौरी गेट वगैरह इलाकों में बनवाईं थीं। निजामुद्दीन स्थित मस्जिद का नाम भी काली मस्जिद है, जो सन् 1370 में बनी है और तुर्कमान गेट की मस्जिद से भी ज्यादा पुरानी है।
तीन हैं लाल मस्जिद
ऐसा नहीं है कि रंगों के नाम वाली सभी मस्जिदों के रंग और नाम का कुछ लेना-देना नहीं है। लाल मस्जिदें कम से कम तीन हैं। हालांकि, जामा मस्जिद भी लाल रंग के पत्थरों से बनी है। लाल मस्जिद के नाम से मशहूर एक मस्जिद, कश्मीरी गेट के बड़ा बाजार में है। लाल मस्जिद ‘फख्र-उल-मस्जिद’ (यानी तमाम मस्जिदों का गर्व) के नाम से भी जानी जाती है। मस्जिद का निर्माण कानीज-ए-फातिमा ने अपने पति शुजात खान की याद में करवाया था। शुजात खान मुगल बादशाह औरंगजेब के दरबार में वजीर थे। चूंकि मस्जिद जेम्स स्कीनर की जमीन पर है, इसलिए स्कीनर की भी बताई जाती है। यह लाल मस्जिद 1728-29 में बनी थी। करीब ढाई मीटर ऊंचाई पर बनी है और नीचे दुकानें हैं। ऊपर तीन गुम्बद हैं, जो सफेद-काले डिजाइनदार संगमरमर से सजे हैं।
एक और लाल मस्जिद करोल बाग की फैज रोड पर है। दो मंजिला मस्जिद की ऊपरी मंजिल रिहाइश के तौर पर इस्तेमाल की जाती है। लाल पत्थर से बनी है, इसलिए नाम पड़ा लाल मस्जिद। ज्यादा पुरानी नहीं है, सन् 1930 की है, फिर भी हैरिटेज इमारतों मं शुमार है। मस्जिद की 7 मीनारें हैं और खुला आंगन भी। और हां, मुगलाकालीन एक और लाल मस्जिद लोधी काॅलोनी में है।
सबसे ज्यादा सुनहरी मस्जिदें
सुनहरी यानी गोल्डन मस्जिदें दिल्ली में सबसे ज्यादा 4 हैं। शाही सुनहरी मस्जिद लाल किले की पार्किंग के साथ है। मस्जिद का निर्माण सन् 1751 में मुहम्मद शाह (1719-48) की बेगम कुदसिया ने करवाया था। वह अहमद शाह (1748-54) की मां भी थी। उसने ही यमुना किनारे लम्बा-चैड़ा बाग भी बनवाया था। मस्जिद के तीन गुम्बद हैं। शुरू-शुरू में, गुम्बदों पर ताम्बे का पतरा चढ़ा था। इधर-उघर दो मीनारें खड़ी हैं। बीच की मेहराब पर निर्माण की तारीख दर्ज है। सन् 1852 में, मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर द्वितीय ने मस्जिद की मरम्मत करवाई। इसी दौरान, गुम्बदों पर चढे़ ताम्बे के पतरों को उतार कर, बलुआ पत्थर लगवा दिया।
एक और सुनहरी मस्जिद चांदनी चौक के बीचोंबीच ऐन फव्वारा चौक पर है। सन् 1721-22 में बनी है और मस्जिद के गुम्बद ताम्बे के पतरों से ढके हैं। धूप में चमकते हैं, तो सुनहरे ही लगते हैं। इतिहास बताता है कि 1737 की लुटपाट में, नादिर शाह ने यहीं से शहाजहांनाबाद का नजारा देखा था। मस्जिद 2.1 मीटर ऊंचे प्लेटफॅार्म पर बनी है। भीतर नमाज के लिए अलग-अलग गुम्बद से ढके तीन कक्ष हैं। दिल्ली की तीसरी सुनहरी मस्जिद दरियागंज स्थित दिल्ली गेट के पास सन् 1714 से है। इसे बनवाया था रौशन-उल-दौला जफर खान ने। मस्जिद के ऊपर पहले तीन गुम्बद बने थे, जो अब मौजूद नहीं हैं।
हरी और नीली मस्जिद एक-एक
दिल्ली की इकलौती नीली मस्जिद हौज खास के ए-ब्लाॅक में है। है अरबिन्दो प्लेस मार्केट के करीब-करीब अरबिन्दो मार्ग से खेल गांव मार्ग पर। वहां लगा पत्थर बताता है कि इसका निर्माण सन् 1505-06 में हुआ था। इलाके के तत्कालीन गर्वनर खवास खां के बेटे फाद खां की नर्स कुसुम भिल ने बनवाया था। नीली मस्जिद की लम्बाई 15.85 मीटर और चैड़ाई 10 मीटर है। भीतर तीन हिस्से हैं। बीच के हिस्से से एक अष्टाकार गुम्बद उभरता है। कोनों पर मीनारें बनी हैं। परिसर में ही सदियों पुराना कुआं भी है। पूर्वी दीवार पर नीली टाइल्स का कलात्मक छज्जा बना है। जाहिर है कि इन्हीं नीली टाइल्स से मस्जिद नीली मस्जिद कहलाती है। भीतर की मेहराब पर डिजानदार सलीके से कुरान कलाम-ए-पाक दर्ज है।
उधर हरी मस्जिद पहाड़गंज की चूना मंडी इलाके में, डाॅ. देश बन्धु गुप्ता मार्ग की ओर है। है 19वीं सदी की। बेहद सजावटी ड्योढी है। ऊपरी मंजिल पर छतरीनुमा अष्टाकार झरोखा खूबसूरती बढ़ाता है। छह सीढ़ियों की ऊंचाई पर मस्जिद है। और हरे रंग के पेंट ने मस्जिद को नाम दिया है। यानी नामकरण मस्जिद के रंग से हुआ है। यानी हरे रंग की मस्जिद है, इसलिए नाम भी हरी मस्जिद है।
मन्दिर भी हैं रंगों के
रंगों के नाम के मन्दिर में सबसे मशहूर है लाल मन्दिर। लाल किले के ऐन सामने चांदनी चैक के मुंहाने पर ही 18 वीं सदी से है। लाल रंगी दीवारें हैं, इसलिए नाम पड़ा। पूरा नाम श्री दिगम्बर जैन लाल मन्दिर है। यह शाहजहांनाबाद का सबसे पुराना जैन मन्दिर है। संगमरमरी काॅलम और छत की पेंटिग्स देखने लायक हैं।
यमुना किनारे स्थित नीली छतरी मन्दिर भी खासा प्राचीन है। है यमुना बाजार के यमुना के लोहे के पुराने पुल के एकदम नजदीक। उल्लेखनीय है कि मन्दिर अब नई इमारत में है, लेकिन इसे पांडव (ईसा पूर्व 1000) का बना बताते हैं। नेहरू प्लेस स्थित कालका जी मन्दिर काली माता का प्रचीन मन्दिर है। मन्दिर के सबसे पुराने हिस्से का निर्माण सन् 1764 में हुआ था। फिर 19वीं और 20वीं सदी में भी बनता रहा।