परवेज त्यागी
लखनऊ। राज्यसभा और एमएलसी चुनाव में दरकिनार किए गए समाजवादी पार्टी के दिग्गज यादव-मुस्लिम नेताओं में अंदरखाने असंतोष है। दोनों चुनाव में पार्टी प्रमुख की ओर से तवज्जो नहीं मिलने से उनमें पनपी नाराजगी उपचुनाव में अपना असर दिखा सकती है। ऐसी चर्चाएं सपाईयों में सुनाई पड़पे लगी हैं। सपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुकी आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव के दृष्टिगत वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी पार्टी हित में नहीं मानी जा रही।
बता दें कि, सपा के दिग्गज नेता बलराम यादव आजमगढ़ से आते हैं। उनका एमएलसी का कार्यकाल हाल ही में पूरा हुआ है। बलराम यादव को उम्मीद थी कि पार्टी उनको फिर से विधान परिषद भेजेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वहीं, पूर्वांचल के दूसरे बड़े यादव नेताओं में पूर्व नेता विरोधी दल रामगोविंद चौधरी और बलिया के अंबिका चौधरी का नाम भी एमएलसी बनने के दावेदारों में शामिल था, लेकिन उनके हाथ ही निराशा ही लगी है। उच्च सदन भेजे गए एक मात्र मुकुल यादव मैनपुरी से आते हैं, जो करहल के पूर्व विधायक सोबरण सिंह यादव के बेटे हैं। करहल सीट सोबरण सिंह ने विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव के लिए छोड़ी थी जिसका इनाम सपा ने उनके बेटे को एमएलसी बनाकर दिया है।
उधर, कुछ ऐसा ही हाल सपा के दिग्गज मुस्लिम नेताओं का भी रहा है। संभल से सात बार के विधायक इकबाल महमूद, अमरोहा से छठीं बार चुने गए महबूब अली और मुरादाबाद की कांठ सीट से विधायक कमाल अख्तर के पसंददीदा चेहरों को भी एमएलसी चुनाव में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने नापसंद कर दिया। मुस्लिम चेहरों के चयन में पार्टी के सभी मुस्लिम नेताओं को दरकिनार कर केवल पूर्व मंत्री आजम खां की पसंद को परवान चढ़ाया गया है। विधान परिषद सदस्य के लिए नामांकन करने वाले दोनों मुस्लिम जास्मीन अंसारी व शाहनवाज खान को उनकी प्राथमिकता पर दूसरों के मुकाबले तरजीह मिली है। ऐसे में सीनियर नेताओं की अनदेखी सपा के अंदर असंतोष की वजह बन सकती है। दोनों लोकसभा सीट के उपचुनाव पर भी इसका असर पड़ सकता है।