रतनलाल की प्रतिज्ञा का असर दूर तलक जाएगा!

सुसंस्कृति परिहार

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दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर रतन लाल को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवलिंग पाए जाने के दावों पर सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट करने के आरोप में शुक्रवार रात गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस के मुताबिक, रतन लाल को भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए (धर्म, जाति, जन्मस्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य फैलाने) और 295ए ( धर्म का अपमान कर किसी वर्ग की धार्मिक भावना को जानबूझकर आहत करना) के तहत साइबर पुलिस ने गिरफ्तार किया है।

विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य फैलाने और धर्म का अपमान कर किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर आहत करना वाकई गलत है किन्तु आज के माहौल में जब चारों तरफ मंदिर मस्जिद के बीच टकराव की स्थितियां निर्मित की जा रही हों और तब पुलिस खामोश रहे तो यह एक अखरने वाली घटना लगती है।आज ज्ञानवापी में तथाकथित शिवलिंग पर जितने भद्दे मज़ाक हो रहे हैं वह क्या धर्म की अवमानना नहीं है। अदालत के निर्णय आने से पहले इस तरह का प्रचार ,सर्वेक्षण रिपोर्ट का पूर्ववत खुलासा दंडनीय क्यों नहीं? इतिहास जब यह बताता है कि फलां जगह तोड़फोड़ हुई है तब ऐसे स्थलों पर एक बार सख़्त निर्णय होना चाहिए।बार बार इस तरह के मामले देश का माहौल बिगाड़ते हैं।तब सख़्ती ज़रूरी है।किसी को भी निर्णय से पूर्व अपनी राय सार्वजनिक करने की इजाजत ना दी जाए ज़रूरी हो तो उसे अदालत तक पहुंचाया जाए।

आम लोगों की तरह ही लगता है रतनलाल ने अपने  जज़्बात रखें जो खुद उनके लिए घातक बन गए । आजकल सोशल मीडिया एक हथियार के रूप में इस्तेमाल हो रहा है सभी पक्ष इसका खुलकर इस्तेमाल कर रहे हैं।वे इसे अपने विचारों के स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के अधिकार रुप में देख रहे हैं किंतु जब देश में बदलाव की आंधी चल रही है उसमें दख़ल जोखिम का काम है।जो रतनलाल ने किया है। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था ।आज उनकी जमानत हो गई पचास हजार के मुचलके के साथ। मामला चलता रहेगा।

अब वे अपनी प्रतिज्ञा के मुताबिक जंतर मंतर पर पहुंच कर बौद्ध धर्म की दीक्षा लेंगे ।इसका क्या आशय है इसे समझना ज़रूरी है । सब जानते हैं कि तमाम अनुसूचित जाति यानि दलित समाज के बहुसंख्यक लोग अभी भी हिंदु धर्म के अनुयायी हैं। हालांकि अंबेडकर की विचारधारा के प्रभाव में उनका झुकाव बौद्ध धर्म की ओर भी है। आपको याद होगा हैदराबाद सेंट्रल विश्वविद्यालय का शोध छात्र रोहित वेमुला जिसने अपने साथ हुए दोयम दर्जे के व्यवहार के कारण आत्महत्या कर ली थी वह जय भीम कहता था और अंबेडकर की फोटो होस्टल में लगाए था इस घटना से दुखी मां ने  विरोध में अपने परिवारजनों और मित्रों के साथ  बौद्ध धर्म स्वीकार किया था।आज फिर एक प्रोफेसर इस स्थिति में पहुंचा है।यह सोच का विषय है। राष्ट्र में हिंदुत्व को बढ़ावा देने वालों को यह एक चुनौती है।ऐसी घटनाओं से हिंदू धर्म को जो नुकसान पहुंचेगा उसकी भरपाई कैसे होगी? तात्पर्य यह है कि ऐसी घटनाओं पर सुलझी हुई सोच का इस्तेमाल ज़रुरी है।

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