क्या आप जानते है कि रिजर्व बैंक द्वारा चलाए जाने वाली डिजिटल करेंसी के मूल में क्या कॉन्सेप्ट हैं। इसके मूल में है। कैश का खात्मा, नकदी लेनदेन को समाप्त कर देना आप देख ही रहे हैं कि बैंक लगातार हर साल ने प्रति माह मुफ़्त पैसा निकालने की संख्या घटाते जा रहे है. इस तरह हमें मजबूर किया जा रहा है कि या तो हम नेट बैंकिंग और कार्ड के जरिए लेन-देन को अपनाएँ या नकदी की निकासी की क़ीमत अदा करें. ऐसे अघोषित दबाव दिन ब दिन बढ़ते जा रहे हैं।
नोट बंदी का मुख्य उद्देश्य भी यही था, दरअसल न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के लागू होने में नकदी का चलन सबसे बड़ी दिक्कत है और भारत में ही सबसे ज़्यादा नकदी संचालन में है। न्यू वर्ल्ड ऑर्डर को लागू करने के लिए इसकी योजना काफी पहले से बनाई जा रही है सितंबर, 2012 में विश्व में ‘बेटर दैन कैश एलायंस’ लांच किया गया, इसके अंतर्गत यह बताया गया कि कई कारणों से नकदी छापना, उसकी निगरानी, भंडारण, चलन को नियंत्रित करना महँगा है और इससे भी बढ़कर कैशलेस सोसायटी सरकारों को जनता पर और अधिक नियंत्रण का मौका देता है।
भारत में इस बारे मे हम ठीक से नहीं समझते हैं क्योंकि इस ओर बुद्धिजीवियों का ध्यान ही नहीं है लेकिन दुनिया के कई देशों की सरकारें नकदी विहीन समाज बनाने के लिए उत्सुक है वे नकदी को क्रमशः नकारात्मक नजरों से देखने लगीं है वहा नकदी से क़ीमत चुकाने को ‘संदिग्ध गतिविधि’ माना जाने लगा है।
आईटी और दूरसंचार क्षेत्र में काम करने वाले इस फोरम के “रणनीतिक साझेदार” (बड़े अन्तर्राष्ट्रीय कारपोरेशन) लेन-देन और वित्त के डिज़िटलीकरण के अभियान को बहुत आक्रामक ढंग से चलाते हैं। ‘पे-पाल’ के मुख्य कार्यकारी डान शुलमैन ने 2015 के वित्तीय समावेशन सम्मेलन में कहा “जब तक पूरी दुनिया पूरी तरह डिजिटल लेन-देन नहीं अपना लेती, तब तक पैसे को डिजिटल रूप से नकदी के रूप में बदलने की जरूरत बनी रहेगी.” चूँकि यह उनकी निगाह में महँगा सरदर्द है, इसलिए उसने आगे कहा कि “हमारा सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी नकदी है. अभी पूरी दुनिया का 85 फीसदी लेन-देन नकदी में होता है. अभी हम इसी पर हमला करने की कोशिश कर रहे हैं.” नकदी के प्रति इसी वैमनस्य का प्रदर्शन करते हुए अफ़्रीका की बड़ी मोबाईल कम्पनी इकोनेट के संस्थापक चेयरमैन स्ट्राइव मासीईवा ने कहा कि “हम नकदी का सफाया करना चाहते हैं.”
अधिकांश विकसित देशों में डिजिटल मुद्रा को सर्वशक्तिमान बनाने के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करने की कोशिशें बड़े पैमाने पर जारी हैं. अर्थशास्त्रियों और मीडिया को इस काम में लगा दिया गया है. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्व प्रधान अर्थशास्त्री और 2016 में छपी ‘नगदी का अभिशाप’ (द कर्स ऑफ कैश) किताब के लेखक केनेथ रोगोफ ने बड़े मूल्य के नोटों को धीरे-धीरे खत्म करके कैशलेस समाज बनाने का रास्ता सुझायाऔर इन सारे सुझाव के बाद ही भारत में नोटबंदी की गई थी।
अभी तो नहीं लेकिन भारत में लगभग दस पंद्रह सालो में सरकार नकदी को ग़ैर-कानूनी घोषित कर देंगी. लोगों को मजबूर किया जाएगा कि वे या तो अपना पैसा बैंकों में रखें या बाजार में लगाएँ. इस तरह केंद्रीय सरकार और केंद्रीय बैकों का उद्धार किया जाएगा. दरअसल नकदी, यानी कैश ही व्यक्तिगत स्वायत्तता का आखिरी क्षेत्र बचा है. इसमें ऐसी ताकत है जिसे सरकारें नियंत्रित नहीं कर सकतीं, इसलिए इसका खात्मा जरूरी है.
“जाहिर है, सरकारें हमें असली मकसद नहीं बताएँगी क्योंकि इससे प्रतिक्रिया हो सकती है. हमें बताया जाएगा कि यह हमारी ही ‘भलाई’ के लिए है. अब इस ‘भलाई’ को चाहे जैसे परिभाषित किया जाए. इसे हमारा फायदा बताकर बेचा जाएगा “खबरें छापी जाएँगी कि लूट-पाट घटी है. अपराध को अंतिम तौर पर हरा दिया गया है. लेकिन यह नहीं बताया जाएगा कि हैकिंग की घटनाएँ बेइंतहा बढ़ जाएँगी, बैकों के घोटाले आसमान छूने लगेंगे… गरीबों को कहा जाएगा कि अमीर अब अपनी आमदनी नहीं छिपा पाएँगे और उन्हें अपनी आमदनी पर समुचित कर देने के लिए बाध्य होना पड़ेगा.
न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के लिए कैशलेश सोसायटी की स्थापना बहुत जरूरी है कैशलेश समाज का असली मकसद है सम्पूर्ण नियंत्रण: चौतरफा नियंत्रण और इसे हमारे सामने ऐसे आसान और कारगर तरीके के रूप में पेश किया जाएगा जो हमें अपराध से मुक्ति दिलाएगा यानि फासीवाद को चाशनी में लपेटकर पेश किया जाएगा. जी हां! फासीवाद! इक्कसवी सदी का फासीवाद. यह होने जा रहा है और कोई इसे रोक नही सकता क्योंकि जिन लोगो ( बुद्धिजीवियों ) के पास समाज को इस संकट के बारे में समझाने बताने की जिम्मेदारी है वो बिलकुल हक्के बक्के बैठे हुए हैं.
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार एंव स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)