गिरीश मालवीय
यस बैंक का बचना मुश्किल लग रहा है, सरकार द्वारा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के माथे पर बंदूक रखकर उससे 49 फीसदी शेयर खरीदने को बोला जा रहा है। अभी तक जो योजना सामने आई है उसके तहत बैंकों और वित्तीय संस्थाओं का एक कंसोर्टियम SBI के नेतृत्व में यस बैंक में निवेश कर सकता है. इसमे भी SBI यस बैंक में सिर्फ 2450 करोड़ रुपये निवेश की हामी भर रहा है जबकि जरूरत बहुत ज्यादा की है. आपको यह बात अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए आज से पहले जितने भी बैंको को बचाया गया है उन्हें किसी न किसी बड़े बैंक में मर्जर कर के बचाया गया है लेकिन यस बैंक के स्टेट बैंक में मर्जर की कोई योजना नही है भारतीय स्टेट बैंक ने भी स्पष्ट किया है कि यस बैंक का स्टेट बैंक के साथ विलय नहीं होगा।
एसबीआई के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा, “SBI शुरू में 2,450 करोड़ रुपये का निवेश करेगा, बाद में यह निवेश अंतिम मूल्यांकन, निवेशकों की रूचि और पूंजी की जरूरत के आधार पर 10,000 करोड़ रुपये तक बढ़ाया जा सकता है।”
यह कब होगा? कैसे होगा?
येस बैंक को संकट से निकालने के लिए तुरन्त 20 हजार करोड़ रुपये की जरूरत है.आपको मालूम होना चाहिए कि यस बैंक में एसबीआई के निवेश की घोषणा के बाद एसबीआई के शेयर्स में 12 फ़ीसदी की गिरावट आ गई थी. ऐसे में कौन सा निवेशक इसमे ओर पैसे लगाने को तैयार होगा?
मार्केट को खबर है कि यस बैंक अब डूबता हुआ जहाज है इसलिए सरकारी बैंक को उसे बचाने को आगे किया जा रहा है भारत में डूबते बैंक को सिर्फ़ सरकारी कंपनियां ही बचा सकती है उसके बाद भी यहाँ प्राइवेटाईजेशन की महिमा झांझ मंजीरे बजा कर सुनाई जाती है. अच्छा जरा सोचिए!…. कि अब SBI के अलावा ऐसी कौन सी सरकारी संस्था है जो यस बैंक में निवेश करने को तैयार होगी? एलआईसी को तो खुद सरकार बेचने की घोषणा कर चुकी है अपुष्ट सूत्रों के द्वारा बताया जा रहा है कि यस बैंक की कुछ प्रतिशत हिस्सेदारी LIC के पास पहले से है, तो फिर कैसे LIC से इस डूबते जहाज यस बैंक में निवेश करने को कहा जाएगा?
दरअसल सच तो यह है जिस प्रकार अमेरिका में 2008 में लेहमैन संकट आया था भारत का मौजूदा संकट भी कुछ वही रूप अख्तियार कर चुका है यहाँ भी अमेरिका की तरह सबसे पहले NBFC के डूबने से शुरुआत हुई है सबसे पहले IL&FS डूबा है फिर DHFL फिर इंडिया बुल्स, लगभग ढाई लाख करोड़ की रकम इन कंपनियों में फंसी हुई है मार्च क्लोजिंग के चक्कर सभी वित्तीय संस्थाओं को जिसमे बैंक भी शामिल है अपनी एन्युअल रिपोर्ट जारी करनी है… इसी कारण यस बैंक भी निपट गया है और दूसरे प्राइवेट बैंक भी कतार में है.
नोटबन्दी ओर GST के बाद अर्थव्यवस्था की रफ्तार लगातार धीमी हो रही है, सुस्त होती अर्थव्यवस्था और डूबते वित्तीय संस्थान – बैंक ऐसा कॉकटेल बना रहे है जो बेहद खतरनाक है. और इस संकट से निपटने में मोदी सरकार अक्षम साबित होने जा रही हैं. यस बैंक का संकट जितना ऊपर से नजर आ रहा है दरअसल उससे कहीं ज्यादा बड़ा है अभी तो शुरुआत हुई हैं.
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार एंव स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)