उत्तरप्रदेश में एक बहुत खतरनाक कानून लागू कर दिया गया है। इसका नाम है ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020’। यह नया कानून हिन्दू राष्ट्रवादियों के इस आरोप पर आधारित है कि मुस्लिम पुरुष षड़यंत्र के तहत हिन्दू महिलाओं को अपने प्रेमजाल में फंसा कर सिर्फ इसलिए उनसे विवाह करते हैं ताकि उन्हें मुसलमान बनाया जा सके। इस दावे के समर्थन में कोई आंकड़े या तथ्य उपलब्ध नहीं हैं। परन्तु उत्तर प्रदेश सरकार इस सफ़ेद झूठ का लगातार प्रचार-प्रसार कर रही है। अध्यादेश के अंतर्गत जो व्यक्ति दोषी पाया जायेगा उसे 10 साल तक की कैद की सजा हो सकती है। सम्बंधित अपराध को गैर-जमानती घोषित किया गया है। इस अध्यादेश के अंतर्गत अगर दो अलग-अलग धर्मों के व्यक्ति परस्पर विवाह करने चाहते हैं तो उन्हें जिला मजिस्ट्रेट को दो महीने पहले नोटिस देना होगा।
यह अध्यादेश भयावह इसलिए है क्योंकि 28 नवम्बर 2020 को इसके जारी होने के बाद से ऐसे अनेक मुसलमान पुरुषों और हिन्दू महिलाओं को परेशान किया जा रहा है जिन्होंने अपने मूल अधिकार और स्वतंत्रता का उपयोग करते हुए अपनी इच्छा से आपस में विवाह किया है। ऐसे पुरुषों और महिलाओं के परिवारों को भी प्रताड़ित किया जा रहा है। यह कानून मुस्लिम-विरोधी तो है ही वह महिलाओं के अपने जीवन के सम्बन्ध में स्वयं निर्णय लेने के अधिकार और स्वतंत्रता का हनन भी करता है।
उत्तर प्रदेश में जिस तरह इस कानून पर अमल किया जा रहा है उससे साफ़ है कि सरकार द्वारा अंतर्धार्मिक दम्पतियों के मूल अधिकारों का हनन करने के लिए इस कानून का मनमाना उपयोग किया जायेगा। पिछले 21 दिसंबर तक इस कानून के अंतर्गत 11 मामले दर्ज किये जा चुके हैं और 34 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है। ये सभी मामले ऐसे आम नागरिकों के साथ भेदभाव और प्रताड़ना की कहानी कहते हैं जिन्होंने अपनी शर्तों पर अपना जीवन जीने का साहस दिखाया है। ये मामले संवैधानिक मूल्यों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन हैं। परस्पर सहमति से होने वाले विवाहों को रोका जा रहा है, पति-पत्नी को एक दूसरे से अलग किया जा रहा और एक मामले में नफरत की इस सियासत ने एक महिला के अजन्मे बच्चे के बलि ले ली है।
आईये हम देखें कि इस कानून का किस तरह से क्रियान्वयन हो रहा है और किस तरह से उसने उन दम्पत्तियों के जीवन को प्रभावित किया है जो इसके शिकार बने हैं। इन मामलों का विवरण अख़बारों और वैकल्पिक मीडिया में प्रकाशित सामग्री कर आधारित है।
परस्पर सहमति से विवाहों को रोकना
दो दिसंबर 2020 को उत्तर प्रदेश पुलिस ने लखनऊ की डूडा कॉलोनी में एक 24 वर्षीय मुस्लिम पुरुष और 22 वर्षीय हिन्दू महिला की शादी नहीं होने दी। यह विवाह दोनों परिवारों की सहमति से हिन्दू रीति-रिवाज़ों से होना वाला था। पुलिस ने राष्ट्रीय युवा वाहिनी नामक एक संस्था की शिकायत पर कार्यवाही करते हुए भावी पति-पत्नी से कहा कि वे अपने विवाह के लिए जिला मजिस्ट्रेट से अनुमति प्राप्त करें। दोनों में से कोई भी अपना धर्मपरिवर्तन नहीं कर रहा था। महिला की मां ने कहा, “मेरी लड़की किससे शादी कर रही है इससे किसी का कोई लेनादेना नहीं है। हमारी पूरी ज़िन्दगी ऐसे मोहल्लों में बीती है जहाँ सभी धर्मों के लोग रहते थे। हम लोगों की मुस्लिम परिवारों से मित्रता रही है। फिर मेरी लड़की किसी मुसलमान से शादी क्यों नहीं कर सकती? वह भी नहीं चाहता कि मेरी लड़की अपना धर्म बदले….मुझे नहीं मालूम कि इस बारे में पुलिस को किसी ने शिकायत की है या पुलिस ने अपने-आप कार्यवाही की है।”
एक अन्य मामले में पुलिस को टेलीफोन पर जानकारी मिली कि एक मुसलमान युवक, एक हिन्दू लड़की का धर्म परिवर्तित करवाने के बाद उससे विवाह कर रहा है। पुलिस ने कुशीनगर में होने जा रहे इस विवाह को रुकवा दिया। बाद में पूछताछ करने पर पता चला कि दूल्हा और दुल्हन दोनों मुसलमान थे। आरोप गलत निकला और अगले दिन दोनों ने विवाह कर लिया। हैदर अली, 39, जो विवाह के बंधन में बंधने जा रहे थे ने बताया कि पुलिस वालों ने कास्या पुलिस स्टेशन ले जाकर उन्हें चमड़े के बेल्ट से पीटा और तरह-तरह से शारीरिक यंत्रणा दी।
“शबीला और मैंने मंगलवार की दोपहर शादी की। शादी के बाद घर में एक छोटी सी पार्टी चल रही थी। तभी पुलिसवाले वहां पहुंचे और बोले कि हमारा निकाह तो हुआ ही नहीं है। वे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। हमें शाम करीब 7।30 बजे पुलिस स्टेशन ले जाया गया। मौलवी ने अपना बयान बदल दिया और कहा कि हमारा निकाह अभी पूरा नहीं हुआ है। इससे बाद उन्हें जाने दिया गया,” अली ने बताया। अली के गाँव कुशीनगर जिले के गुर्मिया के चौकीदार ने बताया कि उसने कुछ हिन्दू युवकों के कहने पर पुलिस को फ़ोन किया था। अरमान खान नामक एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता, जो विवाह में मध्यस्थ था, ने बताया कि पुलिस के आने से पहले हिन्दू युवा वाहिनी के कुछ सदस्यों ने दंपत्ति से ‘पूछताछ’ की थी।
पूर्वव्यापी प्रभाव से कानून लागू करना
किसी भी कानून के अंतर्गत किसी कृत्य को कानून के लागू होने के बाद की तारिख से ही अपराध घोषित किया जा सकता है। कानून के लागू होने के पहले किए गए कृत्यों को उसके तहत अपराध घोषित नहीं किया जा सकता। ऐसा करना न्याय और विधि की आत्मा पर चोट करना होगा। परन्तु इस अध्यादेश को इसके लागू होने के पहले हुए विवाहों पर भी प्रभावी कर दिया गया है।
पांच दिसंबर 2020 को पुलिस ने धर्मपरिवर्तन निषेध कानून के अंतर्गत सीतापुर में सात व्यक्तियों को गिरफ्तार किया। उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने एक 19 वर्षीय महिला का अपहरण किया है। इस मामले को कथित अपराध के घटित होने के दो दिन बाद और नए कानून के अधिसूचित होने के दो दिन पहले, 26 नवम्बर को, महिला के पिता की शिकायत पर दर्ज किया गया। महिला के पिता ने एफआईआर में अपने पड़ोसी जिब्राइल सहित सात लोगों पर उनकी बेटी का अपहरण करने का आरोप लगाया। कुछ स्थानीय निवासियों के हवाले ने पिता ने यह आरोप भी लगाया कि उनकी लड़की को मुसलमान बना दिया गया है।
मुरादाबाद के कुख्यात मामले में 22 साल के राशिद और उसके 25 साल के भाई सलीम को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें दो हफ्ते बाद तब छोड़ा गया जब राशिद की पत्नी पिंकी ने यह बयान दिया कि उसने अपनी इच्छा से बिना किसी के दबाव में विवाह किया है। पांच दिसंबर को राशिद और पिंकी अपने विवाह का पंजीकरण करवाने जा रहे थे। रास्ते में उन्हें बजरंग दल के कुछ लोगों ने घेर लिया। उन्होंने राशिद पर ‘लव जिहाद’ करने का आरोप लगाया और दोनों को पुलिस स्टेशन ले गए। उस समय सलीम भी उनके साथ था। पुलिस ने राशिद और सलीम को गिरफ्तार कर लिया और पिंकी को एक शेल्टर होम में भेज दिया। पिंकी ने मीडिया, पुलिस और अदालत के सामने कई बार बयान दिए कि उसने अपनी मर्ज़ी से राशिद से शादी की है और वह अपने पति के परिवार के साथ रहना चाहती है। विडंबना यह है कि दोनों का विवाह इस कानून के लागू होने से बहुत पहले, जुलाई में, हुआ था और दिसंबर में वे केवल अपने विवाह का पंजीकरण करवाने जा रहे थे। बजरंग दल के कार्यकर्ता पिंकी के परिवारजनों को भी पुलिस स्टेशन ले आए। वहां दम्पति से कई तरह के असहज करने वाले प्रश्न पूछे गए और उन्हें परेशान किया गया। पुलिस इस सब की मूकदर्शक बनी रही। इस घटना के बाद पिंकी का गर्भपात हो गया। राशिद ने कहा, “मैंने बजरंग दल के लोगों को बताया कि मेरी पत्नी गर्भवती है। इसकी बाद भी वे हमें गलियां देते रहे। वे हमें ज़बरदस्ती पुलिस थाने ले गए और मेरी ससुराल वालों को भी वहां बुलवा लिया। हमें हवालात में बंद कर दिया गया और फिर एक क्वारंटाइन सेंटर में भेज दिया गया। मैं अपनी पत्नी से नहीं मिल सका।”
मुसलमानों की प्रताड़ना
उत्तर प्रदेश पुलिस ने ऐटा में मुहम्मद जावेद के परिवार के सभी 11 सदस्यों, जिनमें तीन महिलाएं शामिल हैं, को आरोपी बनाया। जावेद की पत्नी हिन्दू थीं और करीब एक महीने पहले उन्होंने इस्लाम अपना लिया था। पुलिस ने महिला के पिता की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की थी। पिता को जावेद के वकील से पत्र मिला था जिसमें यह बताया गया था कि उनकी लड़की ने जावेद के साथ विवाह कर लिया है और वह मुसलमान बन गयी है। जावेद के परिवार के छह सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया है और पांच ‘फरार’ हैं। इन पाँचों की गिरफ्तारी पर 25-25 हज़ार का पुरस्कार घोषित किया गया है।
जाहिर है कि मुसलमान युवकों को अकारण या निहित स्वार्थों की पूर्ति हेतु प्रताड़ित करने के लिए इस कानून का इस्तेमाल होने की प्रबल आशंका है। एक अन्य घटना में, शाहजहांपुर के पुलिस अधीक्षक ने बताया कि मुहम्मद सईद नामक एक मुस्लिम युवक को अपना धर्म छुपा कर एक महिला का यौन शोषण करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने कहा कि युवक पर बलात्कार करने और जबरन पैसे वसूल करने का आरोप है। उस पर यह आरोप भी है कि उसने महिला के अंतरंग फोटो लिए और उनका इस्तेमाल उसे ब्लैकमेल करने के लिए किया। पुलिस ने यह दावा भी किया कि महिला से पैसे वसूल करने के अलावा वह उसे यह धमकी भी दे रहा था कि वह मुसलमान बन कर उससे शादी करे। महिला ने विश्व हिन्दू परिषद के एक पदाधिकारी राजेश अवस्थी के साथ पुलिस थाने जाकर एक काज़ी सहित 12 लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई।
कन्नौज में भी एक मुसलमान पुरुष पर अपनी धार्मिक पहचान छुपाकर एक हिन्दू महिला से शादी करने के आरोप में मामला दर्ज किया गया। इस मामले में एक व्यक्ति ने यह शिकायत कि थी कि उसकी लड़की के साथ एक पुरुष ने अपना नकली नाम बताकर शादी की है। ऐसा बताया जाता है कि भाजपा के कुछ नेता भी शिकायतकर्ता के साथ रपट दर्ज करवाने पुलिस स्टेशन गए और उसे हर प्रकार की सहायता उपलब्ध करवाने का आश्वासन दिया।
खुल्लमखुल्ला भेदभाव
उत्तर प्रदेश पुलिस इस नए कानून को भेदभावपूर्ण ढ़ंग से लागू कर रही है। बरेली में पुलिस ने एक महिला के पिता की इस शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं की कि उसने अपना धर्म बदल कर एक हिन्दू पुरुष से शादी कर ली है। पुलिस का कहना है कि उसने महिला के इस बयान के आधार पर कोई कार्यवाही नहीं की कि उसने इस कानून के लागू होने से पहले, सितम्बर में, विवाह किया था। इसके विपरीत, मुरादाबाद में ऐसे ही मामले में कार्यवाही की गयी। मुरादाबाद में पति मुसलमान था जबकि बरेली में हिन्दू। बरेली के मामले में किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया। बाईस साल की अलीशा के पिता शाहिद मियां ने बरेली के प्रेमनगर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाई कि उसकी लड़की का तीन लोगों ने अपहरण कर लिया है और अपहर्ताओं में उस फर्म का मालिक भी शामिल है जिसमें उसकी लडकी काम करती थी। शाहिद मियां ने सिद्धार्थ सक्सेना उर्फ़ अमन (24), जिसने अलीशा से विवाह किया था, उसकी बहन चंचल, जो अलीशा की सहकर्मी थी और फर्म के मालिक मनोज कुमार सक्सेना के खिलाफ रपट लिखाई। एफआईआर में अलीशा के पिता ने दावा किया कि अलीशा 1 दिसंबर को अपने घर से यह कहकर निकली कि वो अपना बकाया वेतन लेने अपने ऑफिस जा रही है। उसके बाद वह घर नहीं लौटी। उसका फ़ोन स्विच ऑफ पाकर, शाहिद मियां उसके दफ्तर पहुंचे और मनोज सक्सेना से मिले। मनोज ने शाहिद मियां से कहा कि उसे अलीशा के बारे में कोई जानकारी नहीं है। शाहिद मियां ने आरोप लगाया कि अमन उनकी लड़की पर उससे शादी करने के लिए दबाव डाल रहा था जिसके चलते उसने अपने दफ्तर जाना बंद कर दिया था। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि मनोज कुमार और अंचल, अलीशा पर अमन से शादी करने के लिए दबाव डाल रहे थे। बरेली में पुलिस वालों ने अलीशा को सक्सेना के घर ले जाकर छोड़ दिया। मुरादाबाद में पिंकी को शेल्टर होम भेज दिया गया जहाँ उसका गर्भपात हो गया।
पुलिस और हिन्दू धर्म के स्वनियुक्त ठेकेदारों की सांठगांठ
अधिकांश मामलों में हिन्दू राष्ट्रवादियों और हिन्दू धर्म के स्वनियुक्त ठेकेदारों की प्रमुख भूमिका रही है। वे सम्बंधित परिवारों और पुलिस को सूचनाएं देते हैं और बिना किसी खौफ के दम्पत्तियों को पकड़ लेते हैं। कुछ मामलों में वे हिन्दू महिला के परिवारजनों को पुलिस में रिपोर्ट करते के लिए उकसाते हैं और कभी-कभी उन्हें मजबूर भी करते हैं। यह आश्चर्यजनक परन्तु अपेक्षित है कि पुलिस, हिन्दू संगठनों के सदस्यों को दम्पत्तियों और उनके परिवारों को धमकाने देते हैं। हिन्दुत्ववादी, पुलिस के सामने अंतरधार्मिक दम्पत्तियों के खिलाफ हिंसा करते हैं और उन्हें धमकाते हैं और पुलिस मूकदर्शक बनी रहती है। यह अत्यंत चिंताजनक स्थिति है। पुलिस का काम कानून और व्यवस्था बनाए रखना और निर्दोष नागरिकों की रक्षा करना है। पर इस मामले में पुलिस शासक दल और उसके संरक्षण में काम कर रहे संगठनों के साथ मिल कर काम कर रही है।
निष्कर्ष
धर्मपरिवर्तन निषेध अध्यादेश, दरअसल, शासक दल को मुसलमानों और उन महिलाओं, जो अपनी ज़िन्दगी के बारे में स्वयं निर्णय लेने का साहस दिखतीं हैं, को परेशान करने का हक़ देने वाला कानून है। जहाँ विभिन्न उच्च न्यायालयों ने लगातार यह कहा है कि अपने जीवनसाथी का चुनाव करना हर व्यक्ति का मूल अधिकार है, जिसकी गारंटी हमारा संविधान देता है। परन्तु उत्तर प्रदेश सरकार इस मूल अधिकार को कुचलने में लगी हुई है। अन्य भाजपा-शासित प्रदेश भी इस तरह के कानून बना रहे हैं। ये कानून भेदभाव को संस्थागत स्वरुप देते हैं और धर्म और जीवन की स्वतंत्रता के मूल अधिकार का उल्लंघन करते हैं।
(अंग्रेजी से अमरीश हरदेनिया द्वारा अनूदित)