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नबी ﷺ के अपमान का मामला: प्रदर्शन के मुद्दे को ग़ायब कर दूसरी ओर निशाना साधते अख़बार

संजय कुमार सिंह

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नुपुर शर्मा के खिलाफ कार्रवाई की मांग पर देश भर में प्रदर्शन हुआ आज के सभी अखबारों में इससे संबंधित खबर है लेकिन कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है या उस दिशा में क्या हो रहा है उसपर कोई खबर मुझे नहीं दिखी। दिल्ली में (केंद्र)सरकार समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होना अब कोई दबा-छिपा मामला नहीं है और मांग करने वालों का विरोध अखबारों में सोशल मीडिया पर आम है। दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय पर हमले की आरोपी  के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई तो बात आई-गई हो गई लेकिन पैगम्बर मोहम्मद के खिलाफ बोलने वाले के खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी तो मांग ज्यादा और तेज होगी इसमें कोई शक नहीं है। वही हो रहा है पर बहुत लोगों को यह अजूबा लग रहा है और सबकी अपनी व्याख्या है।

दूसरी ओर, हिंसा या पत्थरबाजी निश्चित रूप से गलत है लेकिन अपनी बात रखने का दूसरा तरीका क्या है। विकल्प क्या है। कार्रवाई की मांग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई और उसके नाम पर आंख में धूल झोंकने से ज्यादा कुछ नहीं हुआ। उसका विरोध कैसे किया जाए और क्यों नहीं किया जाए। ठीक है हिंसा और पत्थरबाजी गलत है और जब तक कोई सही रास्ता नहीं मिले हिंसा नहीं होनी चाहिए। पर पुलिस कार्रवाई के साथ तो ऐसा नहीं है। वहां तो कायदा कानून सब ठीक है और ज्ञात है। फिर गलती या देरी सच कहिये तो दोनों क्यों हो रही है। कहने की जरूरत नहीं है कि वीडियो में पुलिस भी पत्थर फेंकती दिखती है। क्या इसे सही कहा जाएगा। क्या इसके लिए कार्रवाई की मांग का कोई घोषित और मान्य तरीका है जिसपर कार्रवाई हुई हो, होती हो। मेरे ख्याल से नहीं। इसलिए मुझे नहीं लगता है कि स्थिति ठीक होने वाली है या ठीक करने की कोई इच्छा है। इसलिए समझना उन्हें ही होगा जो हिंसा कर रहे हैं। नुकसान भी उनका ही तो हो रहा है।

हेडलाइन मैनेजमेंट के लिए जानी जाने वाली सरकार और उसके प्रचारक अनुकूल शीर्षक के लिए क्या नहीं करते हैं और जो किया गया है वह भी गुप्त नहीं है। फिर भी आज के शीर्षक चिन्ताजनक और पर्याप्त गंभीर लगते हैं। दूसरी तरफ अगर सरकार फिर भी सतर्क नहीं होती है और इसे ठीक करने की जायज कोशिश नहीं होती है तो क्यों नहीं मानना चाहिए कि सरकार ऐसा चाहती है। उदाहरण के लिए आज के शीर्षक पर गौर करें

शाह टाइम्स

नुपूर व नवीन के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन (मुख्य शीर्षक), देश भर में जुमे की नमाज के बाद सड़कों पर उतरे मुस्लिम समाज के लोग (उपशीर्षक)

अमर उजाला

यूपी से कश्मीर तक जुमे की नमाज के बाद हिंसा, प्रयागराज में तीन घंटे बवाल (मुख्य शीर्षक) दिल्ली, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में हंगामा, रांची में हवाई फायरिंग, यूपी में 136 लोग हिरासत में (उपशीर्षक)

(हिन्दुस्तान टाइम्स) 

जुम्मे की नमाज के बाद देश भर में विरोध

द हिन्दू में पहले पन्ने पर एक फोटो है जिसका शीर्षक है, प्रदर्शन बढ़ता जा रहा है कैप्शन है, उत्तर प्रदेश आग में : पैगम्बर मोहम्मद के खिलाफ भाजपा के दो निलंबित पदाधिकारियों द्वारा किए गए विवादास्पद बयान पर शुक्रवार को रांची, झारखंड में प्रदर्शन के दौरान ठेलों में आग लगा दी गई।

टाइम्स ऑफ इंडिया

जुम्मे की नमाज के बाद कई राज्यों में अशांति, घायलों में 40 पुलिस वाले  

नया इंडिया

जुम्मे की नमाज के बाद सुलगा देश

कहने की जरूरत नहीं है कि विरोध प्रदर्शन का कारण चाहे जो हो अखबार बता रहे हैं कि हालत बहुत खराब है और आप जो कारण बता रहे हैं उसे जनता को नहीं बताया जारहा है। या छिपाकर बताया जा रहा है। ऐसे में सरकार ज्यादाती भी करेगी तो उसे बुरा नहीं माना जाएगा बल्कि जरूरी समझा जाएगा। प्रदर्शन को आप जायज मानिए या गलत, पुलिस और सरकार की कार्रवाई को भी आप अपने अनुसार सही, गलत या वाजिब मानने के लिए स्वतंत्र हैं पर जब नियंत्रण में ही नहीं हैं तो जबरदस्ती करनी ही पड़ेगी और आज की खबरों से मुझे ऐसा ही माहौल बनता लग रहा है।

कायदे से खबर यह होनी चाहिए थी कि नुपूर और जिन्दल के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने से नाराजगी पर वो तो नहीं के बराबर छपा है। ज्यादातर अखबार यही बता रहे हैं कि प्रदर्शनकारी अनियंत्रित हो गए हैं। जहां तक नुपुर शर्मा के खिलाफ कार्रवाई की बात है, अखबारों में उसकी चर्चा नहीं के बराबर है, कई दिनों से। बाकी प्रदर्शन करने वालों के साथ भी कोई एंटायर पॉलिटिकल साइंस वाला हो तो ठीक नहीं तो कौन, जेल जाएगा और किसके घर बुलडोजर जानें।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)