नवेद शिकोह
अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हार के जख्म पर उनके देश की मीडिया कोड़े मार रही है। यूनाइटेड स्टेट के पत्रकारों ने ये अदा शायद भारतीय मीडिया से सीखी है। जब ट्रंप का हारना लगभग तय हो गया तो मीडिया ने उनके झूठ की नुमाइश शुरू कर दी। पहले तो राष्ट्रपति की ब्रीफिंग का लाइव प्रसारण रोका गया फिर चैनलों, अखबारों और वेब मीडिया पर ट्रंप के चार वर्षों के झूठ के आकड़े पेश करके उन्हें दुनिया के झूठों का सरदार साबित किया जाने लगा।
इस बात को नहीं झुठलाया जा सकता कि इधर कुछ वर्षों से अमेरिका जैसे बड़े और शक्तिशाली राष्ट्रों की मीडिया की तुलना में भारतीय मीडिया पिछड़ता जा रहा है। हम निष्पक्षता में कमज़ोर होते जा रहे हैं। दो हिस्सों में विभाजित भारतीय मीडिया का एक हिस्सा भाजपा सरकारों की पीआर एजेंसी बन गया है। और एक धड़ा केवल विरोध का एजेंडा चलाकर कुछ ज्यादा ही आक्रामक है। यहां संतुलित और निष्पक्ष पत्रकारिता दाल मे नमक के बराबर बची है।
इधर ट्रंप के कार्यकाल मे अमरीका की मीडिया ने खूब वाहवाही लूटी। यूएसए के पत्रकार चार वर्षों के दौरान ट्रंप की आंखों में आंखे डालकर कड़वे सवाल पूछते रहे। कुछ चैनल्स को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति ने ये भी कह दिया कि ये हमारी सरकार को लेकर दुर्भावना रखते हैं। किंतु ऐसे पत्रकारों, चैनलों और अखबारों इत्यादि को सरकार ने किसी किस्म का नुकसान नहीं पंहुचाया।
इधर चुनावी मतगणना के दौरान बीते शुक्रवार को चैनलों द्वारा ट्रंप के चुनाव संबंधित बयान का लाइव टेलीकास्ट रोक दिया। और कहा कि वो झूठी और गलत बात बोल रहे थे। जिसके के बाद कहा जा रहा है कि भारतीय मीडिया अमेरिकी मीडिया से ऐसा जज्बा और साहस सीख ले। जबकि मेरा मानना है कि यहां यूएसए की मीडिया को हिम्मत की दाद नहीं देना चाहिए है। बल्कि यहां तो अमरीका के पत्रकारों ने भारतीय मीडिया से ही मरे को मारने की ये अदा सीखी है। लगभग हारने के बाद ट्रंप के झूठे बयानों का टेलीकास्ट रोकने वाले बहुत पहले से ही ये हिम्मत करते तब ये काबिले तारीफ बात होती।
भारत की मीडिया में लम्बे समय से ये देखा जाता रहा है कि किसी सरकार की हार निश्चित लगने लगे तो सब मीडिया वाले मिलकर उसे बुरी तरह रगड़ देते हैं। ताकि नया सत्ताधारा मीडिया को अपनी गोद मे बिठाकर शाबाशी दे। जैसे बीते कल अमेरिकी मीडिया ने ट्रंप की ब्रीफिंग को झूठ बताकर लाइव टेलीकास्ट रोक दिया था। और कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव कौ लेकर झूठा बयान दे रहे थे।
मुख्य बात ये है कि क्या पिछले चार वर्षों के दौरान अमरीका के किसी न्यूज चैनल ने राष्ट्रपति ट्रंप की लाइव फ्रीफिंग को इससे पहले कभी बीच में रोक कर कहा कि वो झूठ बोल रहे थे इसलिए ये लाइव प्रसारण रोकना पड़ा। जबकि अब ये आंकड़े बताये जा रहे हैं कि ट्रंप ने अपने कार्यकाल में झूठ बोलने का कीर्तिमान स्थापित किया। कौन सी गलत बात राष्ट्रपति ने कितनी हजार बोली।
सवाल ये उठता है कि ट्रंप के झूठे बयानों को अमरीका की मीडिया ने तब दिखाना बंद किया जब ये तय हो गया कि वो हार जायेंगे। हिम्मत थी तो अमरीका और दुनिया की जनता को दिग्भ्रमित करने वाले ट्रंप के झूठे बयानों को मीडिया पहले ही दिखाना बंद कर देती।