भारत में मान्यता यह है कि भले ही दस गुनहगार बच जाएं, लेकिन किसी बेगुनाह को सज़ा नहीं मिलनी चागिए। लेकिन इसी देश में सुरक्षा एजेंसियों के ‘शक’ और पूर्वाग्रह का शिकार होने वाले मुस्लिम नौजवानों की कहानियां कुछ और ही दास्तां बयां करतीं हैं। हाल ही में दिल्ली की एक अदालत ने पांच लोगों को आतंकवाद के आरोपों से बरी कर दिया। ये तमाम लोग लगभग नौ साल से जेल में बंद थे। राशिद राशिद और शाहिद उन पांच लोगों में शामिल हैं जिन्हें यूएपीए के तहत नौ साल बाद बरी किया गया है।
मोहम्मद राशिद के पिता को अपनी दुकान बंद करनी पड़ी क्योंकि उनके लोग उन्हें “आतंकवादी” और “जिहादी” कहते थे। मोहम्मद शाहिद को अभी तक नौकरी वापस नहीं मिली है, जो उनके परिवार के लिए आजीविका का एकमात्र साधन थी। उनकी यह नौकरी उस वक्त छूट गई जब पुलिस नौ साल पहले उनके दरवाजे पर दस्तक दे रही थी। बरी होने के कुछ दिनों बाद 35 वर्षीय मोहम्मद राशिद ने कहा, “उन भयानक वर्षों की भरपाई कोई नहीं कर सकता जब मुझे आतंकवादी होने के टैग के साथ जीना पड़ा, जब मेरे परिवार को समाज द्वारा बहिष्कृत कर दिया गया था।”
गिरफ्तारी के वक्त शाहिद की उम्र वह 22 वर्ष थी। शाहिद कहते हैं कि “मैं जेल में अपने सेल में बहुत रोता था, अपने भाग्य के बारे में सोचता था, सोचता था कि क्या मैं अपने परिवार को फिर कभी देख पाऊंगा,” उ पर तीन अन्य लोगों के साथ दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 2013 में कड़े गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के साथ संबंध रखने और शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया था। उन पर आरोप लगाया गया था कि वे भारत में आतंकी कृत्यों को अंजाम देने के लिए पैसे जुटाने के लिए फिरौती के लिए एक व्यापारी का अपहरण करने की योजना बना रहे थे।
इसी महीने 9 मई को इन सभी पांचों को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने बरी कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष “किसी भी विश्वसनीय सबूत के बजाय अनुमानों और अनुमानों” पर आधारित था।
कैसे मिटेगा कलंक
मोहम्मद राशिद हरियाणा के मेवात क्षेत्र के नूंह जिले में एक स्कूल शिक्षक के रूप में काम करते थे। उन्होंने 2013 में अपनी गिरफ्तारी के समय से लेकर इस महीने की शुरुआत में बरी होने तक नौ साल जेल में बिताए हैं। राशिद जेल में बिताए लंबे अरसे के बारे में बताते हैं कि “मैं एक स्कूल में शिक्षक के रूप में काम करता था और घर पर ट्यूशन भी लेता था। पुलिस ने मुझे झूठे मामले में फंसाया, इस दौरान मैंने अपनी जिंदगी महत्वपूर्ण वर्ष गंवा दिए।”
तिहाड़ जेल के अंदर एक छोटी सी कोठरी में बिताए समय के बारे में बात करते हुए, राशिद ने कहा कि बरी होने की बात तो दूर, उन्हें कभी भी जमानत मिलने की उम्मीद खो गई थी। राशिद कहते हैं कि “मैं अपने परिवार को याद करता और सोचता कि वे एक आतंकवादी के परिजन होने के कलंक से कैसे निपट रहे होंगे। मेरे रिश्तेदारों और हमारे पड़ोसियों ने मेरे परिवार से सारे संबंध तोड़ लिए। मैं अपने दादा-दादी को भी आख़री बार नहीं देख सका।”
राशिद बताते हैं कि उसकी गिरफ्तारी के बाद ग्राहकों ने उसके पिता की किराना दुकान पर आना बंद कर दिया। उनके पिता को “आतंकवादी” और “जिहादी” कहा जाने लगा। राशिद कहते हैं कि “मेरे पिता को आखिरकार अपनी दुकान बंद करनी पड़ी क्योंकि जो हो रहा था वह उनके लिये असहनीय होने के साथ-साथ अत्याधिक दुःखदायी था।”
जेल में कैसा सलूक
राशिद बताते हैं कि “जेल में साथी कैदियों ने मुझे एक खूंखार अपराधी के रूप में देखा। मेरे जैसे व्यक्ति के लिए, जो अपने जीवन में कभी अदालत तक नहीं गया था या जिसने गिरफ्तारी से पहले तक कभी जेल भी नहीं देखी था, यह बहुत पीड़ादायक था।”
शाहिद मेवात के नूंह के मेओली गांव में इमाम के रूप में काम करते थे। जिस दिन उन्हें गिरफ्तार किया गया था, उस दिन को याद करते हुए बताते हैं कि, “मैं जुमे की नमाज़ की तैयारी कर रहा था जब पुलिस मेरे घर आई। उन्होंने कहा कि उन्हें किसी के फोन पर मेरे खिलाफ कुछ सबूत मिले हैं और वे मुझे गिरफ्तार करने आए हैं। उन्होंने मुझे मेरी नमाज़ तक भी पूरी नहीं करने दी।”
मोहम्मद शाहिद 2018 में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जमानत पाने वाले पांच लोगों में से एकमात्र व्यक्ति थे। उन्होंने कहा कि गिरफ्तारी के एक महीने बाद तक उन्हें उस मामले का पता भी नहीं चला जिसके तहत उन पर मामला दर्ज किया गया था। शाहिद कहते हैं “तिहाड़ जेल के कानूनी सहायता केंद्र के वकीलों ने हमें बताया कि हम पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है और जमानत मिलना बहुत मुश्किल है।”
बरी होने के बाद की ज़िंदगी
मोहम्मद राशिद कहते हैं कि अपनी बेगुनाही साबित करने की कोशिश में खोए हुए नौ महत्वपूर्ण वर्षों का एक भी लम्हा वापस नहीं लाया जा सकता। राशिद कहते हैं कि “मेरी भतीजी और भतीजे मुझे पहचानते नहीं। इतने सालों के बाद घर लौटना एक ही अजीब लगता है। अदालत अब कहती है कि हमारे खिलाफ कोई सबूत नहीं है, लेकिन हम जिस आघात और पीड़ा से गुजरे हैं, उसका क्या? राशिद ने बताया कि उन्हें अभी भी अपनी शिक्षण नौकरी वापस नहीं मिली है।
वहीं पिछले चार वर्षों से जमानत पर बाहर होने के बावजूद, शाहिद को अदालती सुनवाई में भाग लेना पड़ा, शाहिद एक इमाम के रूप में अपनी नौकरी वापस पाने में नाकाम रहे। शाहिद कहते हैं कि “मेरी नौकरी ही मेरे परिवार की आजीविका का एकमात्र स्रोत थी। अब जबकि मुझे सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया है, मैं ड्यूटी पर लौटने की कोशिश करूंगा।”