पलश सुरजन
जम्मू-कश्मीर में निर्दोष लोगों की हत्या का सिलसिला रुक ही नहीं रहा है। इस बार आतंकवादियों ने कुलगाम के एक बैंक में घुसकर मैनेजर की गोली मारकर हत्या कर दी। इस घटना का सीसीटीवी फुटेज भी सामने आया है, जिसमें दिख रहा है कि एक शख़्स हाथ में एक झोला लेकर बैंक में घुसा है और फिर बंदूक निकालकर केबिन की तरफ गोली चला दी। जितनी आसानी से उसने इस काम को अंजाम दिया, उससे यही समझ आता है कि इस केंद्र शासित प्रदेश में काम करने वाले सरकारी कर्मचारी कितने असुरक्षित हैं। कोई भी शख़्स हथियारों के साथ कहीं भी घुसकर हमला कर सकता है। इस घटना से पहले मंगलवार को आतंकियों ने कुलगाम में ही एक सरकारी स्कूल की टीचर रजनी बाला की गोली मारकर हत्या कर थी। और उससे भी पहले बडगाम में एक कर्मचारी राहुल भट की तहसील परिसर में घुसकर की हत्या कर दी गई थी। इन तमाम घटनाओं के बाद आम लोग सरकार के सुस्त और संवेदनहीन रवैये के प्रति नाराज़गी जता रहे हैं। उनका कहना है कि यदि सरकार द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है तो वह यहां से पलायन कर जाएंगे।
बैंक मैनेजर की हत्या से पहले कश्मीर घाटी में इस साल जनवरी से अब तक पुलिस अधिकारियों, शिक्षकों और सरपंचों सहित कम से कम 16 हत्याएं इस तरह हो चुकी हैं, जिसमें चुनकर लोगों को मारा गया है। इस पूरे मामले पर जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीजीपी दिलबाग सिंह ने एक अख़बार से बात करते हुए बताया कि अल्पसंख्यकों, नागरिकों और सरकार में लोगों को निशाना बनाने वाले ‘केवल डर फैलाना चाह रहे हैं, क्योंकि स्थानीय निवासियों ने उनके फरमान का जवाब देना बंद कर दिया है’। यह सही बात है कि इस तरह की हत्याओं का मकसद डर फैलाना होता है, तभी इसे आतंकवाद कहा जाता है। लेकिन इस वक्त जम्मू-कश्मीर के लोगों को आतंकवाद की परिभाषा जानने में दिलचस्पी नहीं है, उनकी चिंता ये है कि उनकी सुरक्षा के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है। अनुच्छेद 370 हटाने के वक्त जो दावे किए गए थे कि अब इस प्रदेश में आतंकवाद पर रोक लगेगी, जनजीवन सामान्य होगा, विकास की धारा बहेगी, ऐसा तो कुछ होता नज़र नहीं आ रहा। बल्कि कश्मीरियों का ख़ून ही सड़कों पर बह रहा है, जो चिंताजनक है।
केंद्र सरकार ने दावा किया था कि आतंकवाद और अलगाववाद का खात्मा अनुच्छेद 370 को हटाने से हो जाएगा। लेकिन 2019 से लेकर 2022 आधा बीत गया और कश्मीर के हालात में कोई तब्दीली नजर नहीं आ रही। बल्कि तस्वीर पहले से बदतर हो गई है। जम्मू-कश्मीर में तकलीफें थीं, लेकिन कश्मीरी पंडितों की हत्याओं का सिलसिला थमा हुआ था। तब कश्मीरियों को कम से कम यह तसल्ली थी कि उनके साथ राजनैतिक स्तर पर धोखा नहीं हुआ है। मगर अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से यह भावना मजबूत हो रही है कि आज़ादी के बाद भारत में विलय के फैसले के बदले जम्मू-कश्मीर के लोगों से जो वादा अनुच्छेद 370 के रूप में किया गया था, वो बड़ी चालाकी से भारत सरकार ने एकतरफा तोड़ दिया और इसकी भनक भी पहले नहीं लगने दी गई।
इस फ़ैसले के बाद सरकार ने लोगों के आक्रोश को काबू में करने के लिए लंबे अरसे तक कर्फ्यू और इंटरनेट पर पाबंदी जैसी रणनीतियां अपनाईं। प्रेस की आजादी पर भी अघोषित सेंसरशिप लागू रही। विपक्ष के नेताओं और कश्मीर के दूसरे दलों के नेताओं पर पहरेदारी रही, लिहाजा आक्रोश किसी भी तरह व्यक्त नहीं हो पाया। सरकार की यह कोशिश कामयाब रही, मगर अब अलगाववादी और आतंकवादी इस बात को अपने लिए भुनाते हुए हिंसा पर उतारू हो गए हैं। अगस्त 2019 से पहले उनकी लड़ाई भारत सरकार और उसके आदेश पर काम करने वाले सशस्त्रबलों से थी। लेकिन अब वे उन लोगों को निशाने पर ले रहे हैं, जो सरकार के लिए काम करते हैं। इन हत्यारों को मदद और प्रशिक्षण सीमा पार से मिल जाता है, जिसको वे अब मासूम लोगों पर आजमा रहे हैं।
कश्मीरी पंडित, कश्मीरी मुसलमान और भारत के दूसरे राज्यों से काम करने आए लोग, सभी उनके निशाने पर हैं। हर हत्या के बाद पुलिस प्रशासन का दावा होता है कि हम दोषियों को सजा देंगे, आतंकवादियों को चुन-चुनकर मारेंगे, और बहुत से आतंकवादियों को मारा भी गया है। मगर फिर भी हत्या का सिलसिला थम नहीं रहा, तो इसका यही मतलब है कि या तो असली कातिल मारे नहीं जा रहे, या फिर एक आतंकवादी की हत्या के बाद दो नए आतंकवादी पैदा हो रहे हैं। दोनों ही स्थितियां आम लोगों के लिए घातक हैं। अनुच्छेद 370 के फैसले पर अपनी पीठ ठोंकने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह क्या कभी अपने फ़ैसले पर गौर करेंगे।
(लेखक देशबन्धु अख़बार के संपादक हैं)