निशा वारसी की मां की आंखों से छलके आंसू, बोलीं बस एक ही तमन्ना थी “अल्लाह भारत को जीत दे”

नई दिल्लीः भारतीय महिला हॉकी टीम टोक्यो ओलंपिक में इतिहास बनाते-बनाते रह गई। ब्रॉन्ज़ मेडल के लिए मुकाबला कर रही भारतीय टीम को ब्रिटेन के हाथों 4-3 से हार का सामना करना पड़ा। सोनीपत में निशा वारसी के परिजन टीवी पर टिकटिकी लगाए मैच को देखते रहे, निशा वारसी बेहद ग़रीब परिवार से हैं, उन्होंने अभाव और सीमित साधन के बावजूद ओलंपिक जाने वाली भारतीय हॉकी की महिला टीम में जगह बनाई। निशा की माँ मेहरुन भारत की जीत की दुआ करती रहीं, उनकी बस एक ही तमन्ना थी कि “अल्लाह भारत को जीत दे”।

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हालांकि भारतीय हॉकी की महिला टीम ने अपना दम ख़म दिखाते मज़बूती से मुक़ाबला करते हुए हार गई। निशा वारसी सोनीपत के रामनगर इलाक़े की एक कॉलोनी में बेहद ग़रीब परिवार में रहती हैं। निशा के मोहल्ले वाले इस बात से भी खुश हैं कि उनके गांव की बेटी बेहद सीमित संसाधनों के बावजूद ओलंपिक तक पहुंची। उनके पड़ोसी बताते हैं कि हार जीत तो लगी रहती है, खेल के दो ही पहलू होते हैं, एक हार और एक जीत, हार जीत लगी रहती है, निशा की टीम हार गई, इसका कोई मलाल नहीं है, बल्कि खुशी है कि इस बेटी ने बेहद सीमित संसाधनों के बावजूद ग़रीबी से जूझते हुए देश का नाम रोशन किया।

मां की आंखों में आंसू

निशा की मां की आंखों में आंसू, ये आंसू खुशी के हैं या ग़म के साफ तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। उनके घर मीडिया के लोग पहुंच रहे हैं, उनके माता, पिता, पड़ोसियों का इंटरव्यू कर रहे हैं। निशा की मां आंखें पौंछते हुए रुंधे हुए गले के साथ बस इतना ही कह पाईं कि वे अल्लाह से भारत की जीत दुआ मांग रहीं थीं। एक तरफ जहां उन्हें भारत की हार का दुःख हैं, वहीं उन्हें इस बात की खुशी भी है कि उनकी बेटी उस टीम का महत्तवपूर्ण हिस्सा है जिसने ओलंपिक में अपने प्रदर्शन से सबको आकर्षित किया है।

बेटी के लिये माता-पिता का संघर्ष

निशा वारसी को ओलंपिक तक का सफर तय करने में काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा है। उनके लिये सोनीपत के रामनगर से जापान की राजधानी टोक्यो ओलंपिक तक का सफर आसान नहीं था। निशा के पिता सोहराब अहमद दर्जी थे। साल 2015 में उन्हें लकवा मार गया और उन्हें काम छोड़ना पड़ा। हालांकि वे बेटी को हॉकी खेलने के लिए प्रोत्साहित करते रहे। वहीं निशा की मां महरून ने एक फोम बनाने वाली कंपनी में काम किया, ताकि निशा हॉकी स्टार बन सके।

सामाजिक बाधाएं

रिपोर्ट के अनुसार, निशा जब पैदा हुई तो पड़ोसियों ने ताने मारे। एक रिपोर्ट के अनुसार, निशा के पिता सोहराब वारसी ने बताया कि जब घर में लड़की (निशा) पैदा हुई तो कई लोगों ने ताने मारे थे। वहीं गांव का माहौल होने के कारण निशा की जिंदगी में कई सामाजिक बाधाएं भी थीं। हालांकि इस दौरान कोच सिवाच ने निशा का साथ दिया। इसके बाद वर्ष 2018 में निशा का चयन भारतीय टीम के कैंप के लिए हुआ। उस वक्त निशा के लिए घर छोड़ने का फैसला आसान नहीं था।

निशा ने नहीं मानी हार

निशा की ज़िंदगी में बहुत सी परेशानियां आईं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। निशा ने अपना पहला इंटरनेशनल डेब्यू वर्ष 2019 में हिरोशिमा में FIH फाइनल्स में किया। इसके बाद से निशा अब तक 9 बार भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। निशा के पिता सोहराब ने बेटी के लिए कुछ पैसा अलग से जमा किया था। इसी पैसे से निशा को टूर्नामेंट के लिए यात्रा करने में मदद मिली। अब निशा ने टोक्यो ओलंपिक में पूरे भारत का नाम रोशन किया है।