तेजस्वी यादव
नेता प्रतिपक्ष, बिहार
आपकी पार्टी के द्वारा नागरिकता संशोधन क़ानून के विरुद्ध 21 दिसंबर, 2019 को बिहार बन्द का एलान किया गया था। इस बन्द को सफ़ल बनाने के लिए बिहार के गांव-मौहल्लों तक मे लोग सक्रिय रहे थे। बन्द के दौरान कई अलग-अलग घटनायें हुई। फुलवारीशरीफ में आरएसएस के लोगों के द्वारा गोलीबारी भी हुई। प्रशासन का रवैया भी पक्षपातपूर्ण रहा। फलस्वरूप फुलवारीशरीफ में आमिर हंजला नामक एक किशोर के गुमशुदगी का मामला पेश आया और बाद में मृतक पाया गया। परिजनों ने आपसे सहायता लेने की कोशिश किया। मगर आप राबड़ी जी को लेकर दिल्ली चिकित्सा जांच में जा रहे थे और आपने बाद में मिलने का आश्वासन दिया। जबकि बिहार बन्द से एक दिन पूर्व आपका ऑन रिकॉर्ड स्टेटमेंट है ‘हमलोग 21 को शांतिपूर्ण तरीके से प्रतिरोध करेंगे। बिहार बंद करेंगे। पार्टी की ओर से भी कार्यकर्ताओं को निर्देशित कर दिया गया है। फिर भी अगर पुलिस ने किसी पर बल प्रयोग किया, नीतीश कुमार ने कुछ चालाकी दिखाने की कोशिश की, तो अंजाम बुरा होगा।’ इसके बावजूद भी बन्द के दौरान शहीद हुए आमिर हंजला के परिवार को आपके या पार्टी की तरफ़ से किसी भी प्रकार का कोई मदद नहीं की गयी। बल्कि फुलवारीशरीफ के निवासी और पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी ने परिजनों को DGP गुप्तेश्वर पांडेय से मिलाने का काम किया और क़ानूनी मदद दिलाने का काम किया।
उस बिहार बंदी के बाद अचानक से आपकी नींद खुलती है और सीमांचल के मुस्लिम बहुल जिलों में आपका दौरा शुरू होता है। जबकि सच्चाई यही है कि किशनगंज में बिल पास होने से पूर्व ही CAB को लेकर असद ओवैसी की रैली हो गयी थी। उसके बाद उनकी पार्टी के नेताओं के द्वारा पूर्णिया, अररिया और किशनगंज में कई रैली हो चुकी थी। इस दौरे में भी आपके भाषण का केंद्रबिंदु केवल ओवैसी होते है। यानी कि CAA के आंदोलन के बहाने आप सीमांचल के मुसलमानों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। मुझें इस बात को लेकर कोई आपत्ति नहीं है। एक राजनेता के लिए राजनीतिक लाभ के बारे में सोचना कोई बुराई नहीं है। लेकिन आपत्ति तब होती है जब मुस्लिम बहुल सीमांचल के बाद बिहार के अन्य हिस्सों, गया छोड़कर, में CAA के मुद्दा पर आपकी एक भी दूसरी सभा नहीं हुई। आख़िर क्यों?
मुझें लगता है कि भाजपा सरकार के आने के बाद CAA/NRC/NPR एकमात्र ऐसा मुद्दा है जिसपर सरकार व्यापक स्तर पर जनविरोध झेल रही है। लाख कोशिशों के बावजूद भी भाजपा बहुसंख्यक हिन्दू समाज के लोगों को आंदोलन के विरोध में खड़ी नहीं कर सकी। इसलिए बिहार के मुसलमानों को इस बात की उम्मीद थी कि तेजस्वी यादव जब बिहार के प्रत्येक जिला का भ्रमण करेंगे तब बड़े स्तर पर इस आंदोलन को जनसमर्थन हासिल होगा और मुद्दा साम्प्रदायिक नहीं हो सकेगा। मगर लोगों को विशेषरूप से मुसलमानों को आपसे निराशा हाथ लगी है।
सुनने में आरहा है कि आप फ़रवरी के अंतिम सप्ताह में रथ पर सवार होकर बेरोजगारी यात्रा पर निकलने वाले है। रथ का मॉडल भी बनकर तैयार है। माना कि बेरोजगारी एक बड़ा मसला है मगर जो लोग भी गोलवलकर और सावरकर को पढ़ें होंगे वह भलीभांति जानते होंगे कि संघ/भाजपा की कोशिश है कि मुसलमान सहित दलितों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाकर रखा जाये। कल होकर बेरोजगारी भी दूर हो सकती है, अर्थव्यवस्था भी ठीक हो सकती है और GDP में भी सुधार हो सकता है। मगर इस बात की क्या गारंटी है कि संघ अपने एजेंडा पर काम नहीं करेगी? इसलिए बेहतर यह होता कि CAA/NRC/NPR को वापस करने के लिए और संघ के एजेंडा का भंडाफोड़ करने के लिए इस बेरोजगारी यात्रा के माध्यम से ही राज्य स्तर पर मुहिम चलायी जाये। हो सकता है कि आपके मन मे यह मुद्दा हो मगर उस रथ पर एक जगह भी NRC/NPR/CAA नहीं लिखा हुआ है।
मुसलमान युवाओं के भीतर एक बेचैनी है। वह लालू यादव के बाद से ही एक राजनीतिक विकल्प खोजने में लगा है। इसीलिए कभी ओवैसी की तरफ़ देख रहा है तो कभी कन्हैया की तरफ़ तो कभी पप्पू यादव की तरफ़ देखता है। अब मुस्लिम युवाओं ने भी विश्विद्यालय जाना शुरू कर दिया है इसलिए समाज मे ऐसे युवाओं की स्वीकार्यता भी बढ़ी है। यह अपने समुदाय को प्रभावित करने की पूरी क्षमता रखते है। इसलिए अब आसानी से किसी को भी यह समाज मसीहा मानने को तैयार नहीं है। इनके लिए CAA/NPR/NRC अस्मिता/स्वाभिमान/वजूद का प्रश्न बन चुका है। यह युवा मूल्यांकन कर रहे है कि उनके इस मुद्दे के साथ मज़बूती से कौन खड़ा हुआ है। इसलिए समय और संयोग देखतें हुए फ़ैसला कर लीजिये।
(लेखक तारिक़ अनवर चंपारणी सोशल एक्टिविस्ट एंव राजनीतिक विश्लेषक हैं)