भारत में हिजाब को लेकर विवाद जारी है। यह विवाद कर्नाटक के उडुप्पी से शुरू हुआ था। जहां एक स्थानीय कॉलेज ने हिजाब पहनकर कॉलेज आने वाली छात्राओं को कॉलेज आने से रोक दिया था। जिसके बाद छात्राओं ने कॉलेज के द्वार पर ही प्रदर्शन किया। उसके बाद इस विवाद ने राजनीतिक रूप अख्तियार कर लिया, दक्षिणपंथी हिंदुत्तववादी संगठनों से जुड़े छात्र हिजाब के विरोध में भगवा गमछा गले में डालकर कॉलेज आने लगे। यह विवाद इतना बढ़ा कि कर्नाटक सरकार को राज्य के स्कूल/कॉलेज भी बंद करने पड़े।
अभी यह विवाद थमा नहीं है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने हिजाब को प्रतिबंध करने का जो जो फैसला दिया है उसके ख़िलाफ मुस्लिम संगठन सुप्रीम कोर्ट गए हैं। ऐसे में भाजपा एंव दूसरे अन्य संगठनों की ओर से ऐसे भी बयान आए कि हिजाब तरक़्की की राह में रुकावट है। ऐसे में हम यहां पर विश्व की उन चार महिलाओं का उल्लेख कर रहे हैं जिनकी तरक़्की में हिजाब कभी आड़े ही नहीं आया।
मेरी कामयाबी पर बात करें, हिजाब पर नहीं
तुर्की की क़ुबरा दागली की उम्र 25 वर्ष हैं। वे ताइक्वांडो के freestyle duo poomsae category की वर्ल्ड चैंपियन हैं। उन्होंने हेडस्कार्फ़ पहनकर प्रतिस्पर्धा करके महिलाओं और खेल के बारे में रूढ़िवादिता को चुनौती देने की शुरुआत की है। तुर्की के इस्तांबुल की कुबरा दगली ने 2016 में पेरू के लीमा में विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था। एक खेल रोल मॉडल के रूप में दागली की कामयाबी इसलिये भी अहम है कि आधुनिक तुर्की की सेक्युलर राज्य के रूप में स्थापना के दौरान हिजाब पर तंज कसा गया था, और बहुत से लोगों ने, इसे ‘पिछड़ेपन’ के संकेत के रूप में देखा था।
लेकिन कुबरा ने गोल्ड मेडल जीतकर बता दिया कि आधुनिकता की राह में हिजाब कभी बाधा नबीं बनता। अपनी कामयाबी पर कुबरा ने कहा था कि “वो मेरी कामयाबी की बात नहीं करते, बल्कि मेरे सर पर स्कार्फ़ की बात करते हैं। मैं ये नहीं चाहती. बहस मेरी कामयाबी पर होनी चाहिए।”
ऐसे प्रतिबंध भी प्रतिबंधित होने चाहिए
इंदिरा कालजो अमेरिका की मशहूर बास्केटबॉल प्लेयर हैं. इन्होंने साल 2015 में International Basketball Federation (FIBA) के ज़रिए मैच के दौरान हिजाब बैन को लेकर एक मुहिम चलाई. साल 2017 में Indira Kaljo की जीत हुई. FIBA ने हिजाब पहनकर खेलने की इजाज़त दे दी.
2013-14 के आसपा महिला मुस्लिम बास्केटबॉल खिलाड़ी इंदिरा कलजो ने हिजाब पहनकर खेलना चुना। लेकिन बोस्नियाई-अमेरिकी खिलाड़ी ने जल्दी ही महसूस किया कि वह यूरोप में पेशेवर रूप से नहीं खेल पाएगी क्योंकि बास्केटबॉल के आधिकारिक खेलों के दौरान हिजाब, पगड़ी या यरमुलकेस सहित किसी भी प्रकार के हेडगियर के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था।
2014 में, उन्होंने एक ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान शुरू किया, जिसमें लगभग 70,000 हस्ताक्षर एकत्र किए। इस अभियान ने प्रतिबंध की ओर दुनिया भर का ध्यान आकर्षित किया। इंदिरा कहती हैं, स्कार्फ पर उनके इस अभियान ने अंतर्राष्ट्रीय बास्केटबॉल महासंघ, या FIBA को प्रभावित किया। जिसके बाद सितंबर 2014 में, FIBA ने घोषणा की कि महिलाओं को दो साल की अनंतिम अवधि के लिए घरेलू बास्केटबॉल खेलों में धार्मिक सिर ढकने की अनुमति होगी। कल्जो शिकायत करती हैं, “जब मैं उन महिलाओं के बारे में सुनती हूं, जिन्होंने हिजाब पहनने का फैसला करने के बाद खेलना बंद कर दिया है, तो मुझे बहुत दुख होता है।”
इंदिरा का मानना है कि “मुझे लगता है कि मुस्लिम महिलाओं को अपनी त्वचा में आराम से रहना चाहिए, चाहे वे हिजाब पहनें या नहीं, ढके हुए हों या नहीं।” कल्जो का मानना है कि इस प्रतिबंध को भी अन्य नियमों की तरह हटा दिया जाना चाहिए जो दैनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी को प्रतिबंधित करते हैं।
उसने दिल बदला क्या उसके लिये दिमाग़ बदलेगा
सोमालिया की रहने वाली मरियम नूर ने ऐसा कारनामा किया है जिसकी पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है। मरियम नूर ने एक ऐसी मेडिकल डिवाइस तैयार की है जो इंसानी दिल को ख़ून के बहाव को बेहतर बनाने और संभावित तौर पर दिल की सर्जरी की ज़रूरत को ख़त्म करने में मदद करेगी। मरियम सोमालिया की रहने वाली हैं, और इन दिनों डेनमार्क के Aarhus University में पीएचडी स्टूडेन्ट हैं।
सवाल है कि मरियम ने तो अपनी क़ाबिलय के दम पर ऐसा कारनामा करके अपना पताका फहरा दिया है। लेकिन उस मानसिकता को क्या कहें जो आए दिन हिजाब को पिछड़ेपन, कट्टरपंथ से जोड़ती रहत है। क्या मरियम की कामयाबी देखकर उस वर्ग की मानसकिता बदलेगी?
प्रभावशाली बनने में आड़े नहीं आया हिजाब
बात जब हिजाब पर शुरू हुई तो ऐसे में डॉक्टर हिना शाहिद का ज़िक्र किये बिना यह बात मुकम्मल नहीं हो सकती। दरअस्ल भारत में मीडिया और सोशल मीडिया पर बहस हुई कि हिजाब नहीं किताब दो। ऐसे में यह बताना जरूरी है कि हिजाब किताब से नहीं रोकता। लंदन स्कूल ऑफ हाइजिन एंड ट्रॉपिकल मेडिसीन से पब्लिक हेल्थ में एमएससी डॉक्टर हिना शाहिद की कामयाबी इस बात की दलील है।
डॉक्टर हिना शाहिद का शोध-पत्र संयुक्त राष्ट्र के एक प्रोजेक्ट का हिस्सा था. डॉक्टर हिना शाहिद को 2017 में British Awards for Services to Medicine से भी नवाज़ा गया। इसके अलावा 2018 में इंग्लैंड के 100 influential Muslims की फ़हरिस्त में डॉक्टर हिना शाहिद का नाम आया था।