एक-एक कर अफगानिस्तान के शहरों पर कब्ज़ा कर रहे हैं तालिबान

नई दिल्लीः ताजिकिस्तान की ओर से जारी किए गए एक बयान में कहा गया है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में अफगान फौजियों पर अफगान तालिबान द्वारा हमलों और हिंसा के कारण 1,000 से अधिक अफगान सरकारी बलों ने सीमा पार करके ताजिकिस्तान में पनाह ली है। समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, ताजिकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि अफगानिस्तान और ताजिकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में अफगान बलों और तालिबान के बीच हुई झड़पों के बाद, सुरक्षा बलों ने ‘जान बचाने के लिए’ अफगानिस्तान की सीमा पार ताजिकिस्तान में प्रवेश किया है।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

एएफपी के अनुसार, अफगान तालिबान ने सीमावर्ती प्रांत बदख्शां में मुख्य सीमा गलियारे के अलावा कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है, जबकि ताजिक प्रशासन अफगान शरणार्थियों के संभावित आगमन की तैयारी कर रहा है। अफगान तालिबान द्वारा हिंसा में वृद्धि ने इस आशंका को हवा दी है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की पूरी तरह वापसी अफगान सुरक्षा बलों की दुर्दशा को बढ़ा सकती है।

पाकिस्तान में अफगानिस्तान के पूर्व राजदूत डॉ उमर ज़खिलवाल ने बीबीसी के कार्यक्रम में बोलते हुए दावा किया कि एक के बाद एक ज़िला तालिबान के नियंत्रण में आ रहा है और ऐसा लग रहा है कि कोई योजना ही नहीं बनाई गई है, अब ऐसा लग रहा है कि चीजें गड़बड़ा रही हैं। उन्होंने कहा कि अफगानों को उम्मीद थी कि अमेरिका अपनी फौज की पूरी तरह से वापसी से पहले अफगानिस्तान में शांति सुनिश्चित करेगा, लेकिन यह संभव नहीं हो सका।

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि तालिबान के बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता, फिलहाल वे बिना किसी प्रतिरोध के उन जिलों पर कब्जा कर रहे हैं जहां पहले से ही मजबूत थे, सुरक्षा बल हतोत्साहित हैं. उन्होंने कहा, “यह सिर्फ कुछ जिलों की बात नहीं है, तालिबान का डर शहरों तक पहुंच गया है। सुरक्षा बलों का मनोबल गिर गया है और वे बिना किसी प्रतिरोध के आत्मसमर्पण कर रहे हैं।”

तय समय के बाद किसी विदेशी सैनिक को देश में नहीं रहने देंगे

इससे पहले, तालिबान ने कहा था कि अगर नाटो बलों की वापसी के लिए सितंबर की समय सीमा के बाद अफगानिस्तान में कोई विदेशी सैनिक रहता है तो वे खतरे में पड़ जाएंगे। तालिबान का यह बयान उन खबरों के बीच आया जब ख़बर आई थी कि अफगानिस्तान में अपने राजनयिक मिशन और काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की सुरक्षा के लिए 1,000 अमेरिकी सैनिकों को तैनात किया जा सकता है। अफगानिस्तान में नाटो का 20 साल का सैन्य मिशन समाप्त हो रहा है, लेकिन तालिबान के अधिक क्षेत्र पर कब्जा करने के कारण देश में हिंसा बढ़ती जा रही है।

अफगान सेना अकेले सुरक्षा की कमान संभालने की तैयारी कर रही है, लेकिन काबुल के भविष्य को लेकर चिंताएं बढ़ती जा रही हैं। कतर में तालिबान के कार्यालय से बात करते हुए, प्रवक्ता सोहेल शाहीन ने कहा कि वापसी पूरी होने के बाद देश में कोई भी विदेशी सैनिक जिसमें कई सैन्य कॉंन्ट्रेक्टर भी शामिल हैं, वे देश में नहीं रहने चाहिए। उन्होंने बीबीसी से कहा, “अगर वे दोहा समझौते का उल्लंघन करते हुए अपनी सेना को पीछे छोड़ते हैं, तो यह तय करना हमारे नेतृत्व पर निर्भर करेगा कि हम कैसे आगे बढ़ते हैं। हम जवाब देंगे और अंतिम निर्णय हमारे नेतृत्व द्वारा किया जाएगा।”

सोहेल शाहीन ने इस बात पर भी जोर दिया कि राजनयिकों, गैर सरकारी संगठनों और अन्य विदेशियों को निशाना नहीं बनाया जाएगा, इसलिए देश में किसी सुरक्षा बल की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, “हम विदेशी सैन्य बलों के खिलाफ हैं, लेकिन राजनयिकों, गैर सरकारी संगठनों, दूतावासों और उनमें काम करने वालों के खिलाफ नहीं हैं क्योंकि उन्हें हमारे लोगों की जरूरत है। हम उनके लिए खतरा नहीं होंगे।”

सोहेल शाहीन ने पिछले हफ्ते अफगानिस्तान में सबसे बड़े अमेरिकी सैन्य अड्डे बगराम एयर बेस से विदेशी सैनिकों की वापसी को “ऐतिहासिक क्षण” बताया। संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके नाटो सहयोगी तालिबान के साथ एक समझौते के तहत सभी सैनिकों को वापस लेने पर इस वादे के बदले सहमत हुए हैं कि तालिबान अल-कायदा या किसी अन्य चरमपंथी समूह को अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में काम करने की अनुमति नहीं देगा।

20 साल पहले सत्ता से बेदखल हुए थे तालिबान

अफगानिस्तान के एक सांसद ने कहा है कि विदेशी सैनिकों की वापसी गैर-जिम्मेदाराना तरीके से की जा रही है। सांसद रिजवान मुराद ने बीबीसी को बताया कि सरकार बातचीत और युद्धविराम के लिए तैयार है और तालिबान को अब यह साबित करना होगा कि वे शांति के लिए प्रतिबद्ध हैं। सोहेल शाहीन ने इस बात से भी इनकार किया कि देश में हालिया हिंसा में तालिबान की कोई भूमिका है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अफगान सैनिकों द्वारा लड़ने से इनकार करने के बाद कई जिले मध्यस्थता के माध्यम से तालिबान के नियंत्रण में आ गए। रविवार को तालिबान ने दक्षिणी प्रांत कंधार में एक और इलाके पर कब्जा कर लिया। तालिबानों का कहना है कि अब तक उनका देश के लगभग 400 जिलों के एक चौथाई हिस्से पर नियंत्रण है।

सोहेल शाहीन ने यह भी कहा कि तालिबान और अफगान सरकार के बीच चल रही बातचीत में अभी चुनाव के मुद्दे पर चर्चा नहीं हुई है। जानकारी के लिये बता दें कि अक्टूबर 2001 में अमेरिकी सेना ने तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया था। तालिबान पर आरोप था कि संयुक्त राज्य अमेरिका में 9/11 के हमलों में शामिल ओसामा बिन लादेन और अल कायदा के अन्य सदस्यों को शरण दे रहा था।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि अमेरिकी बलों ने सुनिश्चित किया है कि अफगानिस्तान एक बार फिर पश्चिम के खिलाफ साजिश रचने वाले आतंकी समूह का अड्डा नहीं बन सकता। दूसरी ओर, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि देश के सुरक्षा बल उग्रवाद को नियंत्रित करने में पूरी तरह सक्षम हैं, लेकिन कई लोगों का मानना ​​है कि विदेशी सैनिकों की वापसी से देश तालिबान के नियंत्रण में वापस आ सकता है।