गिरीश मालवीय
सिर्फ एक महीना ही बीता है 2020 का और यह भविष्यवाणी सच होने जा रही है कि 2020 इंडियन इकनॉमी के डिजास्टर का साल है शुरुआती रुझान अब खुलकर दिखाई देने लगे हैं पहले LIC को बेचने के लिए IPO और अब एक बार फिर से FRDI बिल को लाने की बात करना यह स्पष्ट कर देता है कि आने वाले दिन बहुत बुरे साबित होने वाले हैं. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में कहा कि वित्त मंत्रालय विवादित वित्तीय समाधान एवं जमा बीमा (FRDI) विधेयक पर काम कर रहा है उन्होंने कहा कि ‘हम एफआरडीआई विधेयक पर काम कर रहे हैं, लेकिन यह नहीं बता सकते कि इसे संसद में कब रखा जाएगा।’
यह बिल क्या है यह जानने से पहले जान लीजिए कि यह FRDI बिल पिछली बार कब संसद के सामने रखा गया था वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2016-17 बजट भाषण में इस बिल का पहली बार ज़िक्र किया था. इस बजट घोषणा के अनुरूप 15 मार्च, 2016 को वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के अपर सचिव अजय त्यागी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट और ‘द फाइनेशियल रिज्योलूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेसशन बिल, 2016’ नामक प्रारूप कोड पेश किया उस वक्त वित्त मंत्रालय का दावा था कि ये बिल वित्तीय संकट की स्थिति में ग्राहकों और बैंकों के हितों की रक्षा करेगा. लेकिन इस बिल के प्रावधानों का इतना विरोध हुआ कि अगस्त 2017 में इसे सरकार को वापस लेना पड़ा. इस बिल के कुछ प्रावधानों को लेकर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई गई.
यह बिल क्या था इसे संक्षेप में निम्नलिखित तथ्यों की सहायता से समझने का प्रयास कीजिए
FRDI बिल के तहत वित्त मंत्रालय के अधीन एक नए रेजोल्यूशन कॉरपोरेशन बनाया जाएगा. फिलहाल किसी भी बैंक के दिवालिया हो जाने के बाद उसे आर्थिक संकट से बाहर निकलने का काम रिज़र्व बैंक करती है मगर अब नया कॉरपोरेशन यह काम करेगा. यह रेजोल्यूशन कारपोरेशन किसी बैंक या वित्तीय संस्थान के ‘संकटग्रस्त’ क़रार दिए जाने पर प्रबंधन का ज़िम्मा संभालकर एक साल के भीतर संस्थान को फिर से खड़ा करने की कोशिश करेगा बैंक के डूबने की स्थिति में ग्राहकों के पैसे का इस्तेमाल कैसे करना है, इसका फ़ैसला भी यह नया संस्थान करेगा.
नया रेजोल्यूशन कॉरपोरेशन यह तय करेगा कि बैंक में ग्राहकों के डिपॉजिट किए गए पैसे में ग्राहक कितना पैसा निकाल सकता है और कितना पैसा बैंक को उसका एनपीए पाटने के लिए दिया जा सकता है.यानी नया कानून आ जाने के बाद केन्द्र सरकार नए कॉरपोरेशन के जरिए तय करेगी कि आर्थिक संकट के समय में ग्राहकों को कितना पैसा निकालने की छूट दी जाए और उनकी बचत की कितनी रकम के जरिए बैंकों के गंदे कर्ज को पाटने का काम किया जाए
फिलहाल बैंक के बीमार होने के बाद केंद्र सरकार उसे दुबारा खड़ा करने के लिए बेलआउट पैकेज देती है. मगर नए कानून के पास होने के बाद ऐसा नहीं होगा. सरकार अब बैंकों को बेलआउट नहीं करेगी. अब बेल इन किया जाएगा, अभी तक हर बार ऐसा होता है कि एनपीए बढ़ने के बाद बैंक सरकार की शरण में आ जाते थे. और सरकार बॉन्ड खरीदकर बेलआउट करती थी. लेकिन अब सरकार का फोकस बेलआउट की जगह बेल-इन पर होगी. इसमें ज्यादा एनपीए वाले बैंकों को अपने बेलआउट का इंतजाम खुद करना होगा. इस सूरत में बैंकों को अपने बेलआउट का इंतजाम बैंक में जमा रकम से करनी होगी. यानी बैंकों में ग्राहकों का जो पैसा होगा, उसका एक हिस्सा बैंक अपने बेलआउट में करेगी.
2020 में एक बार फिर से इस बिल को लाने की कोशिश बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. बैंकों ने अंबानी, अदाणी, जेपी , रुइया नीरव मोदी ओर विजय माल्या जैसे बड़े पूंजीपतियों को कर्ज़ दिए और ये वापस नहीं आए तो इसमे आम आदमी की क्या गलती है? उसके खून पसीने के कमाई को क्यों दाँव पर लगाया जा रहा है? बैंकों से कर्ज मित्र पूंजीपतियों को दिलवाए गए अब वे इसे वापस नहीं कर रहे तो इसके लिए आम लोगों की मेहनत के पैसों को दांव पर लगा रहे हैं यह अनैतिकता की पराकाष्ठा है.
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)