यादों में स्वर कोकिला: कभी पैसे बचाने के लिए स्टेशन से स्टूडियो तक का रास्ता पैदल तय करती थीं लता

नयी दिल्ली: अपने मधुर गीतों से करोड़ों दिलों पर राज करने वाली स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर के जीवन में एक वह दौर वह भी था जब उनके पास पैसे बहुत कम हुआ करते। पैसे बचाने के लिए वह स्टेशन से स्टूडियो का रास्ता पैदलत तय करती थीं।

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लताजी काफी समय पहले एक टीवी चैनल पर जावेद अख्तर के साथ बातचीत में कहा था,‘‘उस समय मेरे पास पैसे बहुत थोड़े हुआ करते थे। स्टेशन से स्टूडिया की ओर लोग तांगे से जाते थे। मैं पैदल जाया करती थी। पैसे बचाने के लिए। वापसी में बचे हुए पैसे से घर के लिए स्टेशन के पास से भांजी खरीद कर ले जाती थी।”

इसी बातचीत में उन्होंने कहा था, ‘‘स्टूडिया में लोग कैंटीन खोजते थे। वहां कुछ खाने पीने के लिए जाते थे। मैं वहां दिन दिन भर कमरे में रहती थी। खाने को कुछ नहीं लेती थी।’’ जावेद ने उनसे एक सवाल किया था कि आप को कोई गाना मुश्किल लगा हो, ऐसा कभी हुआ? तो लता जी का उत्तर था, ‘‘शुरू-शुरू में। शुरू में किसी किसी गाने को लेकर लगता है कि यह मुश्किल है….।’’

लताजी ने इस संदर्भ में विशेष रूप से सज्जाद जी का नाम लिया और कहा कि वह ‘बहुत पर्टीकुलर’ (विशिष्टता पर बहुत अधिक बल देने वाले ) थे। उनके दिमाग में अरब का संगीत रहता था। वह नहीं चाहते थे कि अलाप बहुत ऊंचा हो।

भारत रत्न से अलंकृत स्वर-सम्राज्ञी ने जावेदजी से बातचीत में इसी संदर्भ में कहा,‘‘ध्यान रखना पड़ता है, म्यूजिक डारेक्टर को यह न लगे कि हमने क्या बनाया, इसने क्या गा दिया।’’ इस बात पर जावेद अख्तर ने उनसे विनोदपूर्ण ढंग से कहा,‘‘आप के हर गाने में तो यही होता था। म्यूजिक डारेक्टर क्या बनता था और आप उसका क्या कर देती थीं।’’ इस पर उन्होंने खिलखिला कर हंसा था। उन्होंने कोई गाना गारे की जावेद साहब की फर्माइश पर बस इतना भर कहा— ये क्या बोलता तू— और दोनों के साथ स्टूडियो में दर्शकों का जोर का ठहाका उभर आया था।

तेरी आवाज़ ही पहचान है…

मेरी आवाज़ ही पहचान है- फिल्म ‘किनारा’ के लिए भूपेंद्र के साथ गाए इस गीत के साथ लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए फिल्म निर्माता बॉबी बेदी ने कहा,‘‘संगीत प्रमियों के साथ लताजी का रिश्ता कभी खत्म नहीं होगा, वह अपने संगीत के साथ करोड़ों लोगों के दिल से जुड़ी रहेगी।’’

बॉबी बेदी ने कहा,“मृत्यु असंभावी है। हर किसी को एक न एक दिन जाना ही होता है । संयोग से आज ऐसी प्राद्योगोगिकी आ गयी है जिससे उनकी आवाज हमारे बीच बनी रहेगी, हमें प्ररित करेगी, हमें भावुक बनाएगी, हमें शांति देगी।’’

उन्होंने लताजी की संगीत-साधना, उनके योगदान, उनके व्यक्तित्व और कृतीत्व पर पर कहा,‘‘ फिल्म उद्योग में गिने चुने लोग ही होते हैं। इंडस्ट्री के लोगों के साथ लताजी काम-काज का संबंध रहा होगा, पर उनका स्वर उन्हें करोड़ों के दिल के साथ जोड़ता है। यह स्वाभाविक है, क्यों कि संगीत हमरे जीवन के हर मौके, हर मूड में हमारे साथ होता है। खुशी हो या गम – हर मौके पर हम संगीत को लताशते हैं, उसे अपने मनो- भाव से जोड़ते और प्रेरित होते है।’’

उन्होंने कहा,“लताजी बहुत अनुशासित थीं। वह शास्त्रीय संगीत की तरफ ही बनी रहीं। वह ‘बहुत ज्यादा पापुलर जोन’ में नहीं गयीं। यह उनकी च्वायस थी , उनका निर्णय था। उनके संगीत निर्देशकों ने भी उनको लेकर वही चीज तय की।”

उन्होंने कहा,‘‘लता मंगेशकर ने चार साल की उम्र में संगीत सीखना शुरू किया। उन्होंने साधना शुरू की पर साधना के साथ साथ नैसर्गिक प्रतिभा से बड़ा फर्क पड़ता है। उन्होंने अपनी गायकी के लिए अपने शरीर को भी साधे रखा। लताजी का गायकी-जीवन जितना लंबा रहा वह बिरला है। किसी गायक के लिए छह सात दशक तक अपने लंग (फेपड़े) को ताकतवर बनाए रखना, अपनी सांस को को लम्बा रखने का दम-खम बरकार रखना कोई साधारण बात नहीं है।”

बेदी ने कहा, “वह किसी को कॉपी नहीं करती थीं। पर उनमें अपनी पर्श्वगायकी में उस कलाकार को दे कर अपनी आवाज के माड्युलेशन, उसको उसके अनुकूल स्वरूप देने की अद्भुत क्षमता थी। उनकी आवाज हल कला कार पर फिट हो जाती थी । इसके विपरीत किशोर कुमार जैसे गायक पहले अपने लिए गाया करते थे फिर उन्होंने देवानंद के लिए गाना शुरू किया उसके बाद राजेश खन्ना के लिए गाया।”

बकौल बॉबी बेदी लताजी की यश चोपड़ा से बहुत पटती थी। यश चोपड़ा ने ही बेदी को एक बार बताया था कि लता का संगीत के प्रति बड़ा स्ट्रांग, बड़ा कड़ा विचार होता था। वह अपना काम अपनी पसंद के हिसाब से करती थीं। वह सफलता और प्रसिद्धि की जिन ऊंचाइयों पर पहुंच चुकी थी उसमें पैसे का कोई मायने नहीं रहता। कोई लालच नहीं रह जाती है। उन्होंने संगीत की दुनिया और इस देश के लिए बहुत कुछ किया।

बॉबी बेदी ने कहा,‘‘उन्होंने हर हर तरह के गीत गाएं, विभिन्न भाषाओं में गाए। भक्ति के गीतों का गायन किया। उनकी प्रतिभा निराली थी। वह भावना के साथ गाती थी। उन्होंने गुरुवाणी का जो स्वर दिया है वह सुनते बनता है। उन्होंने नए गायकों को भी प्रोत्साहित किया पर अपने जमाने में उनका राज चलता था। उस समय गिनती के पर्श्वगायक हुआ करते थे जिनका नाम था।”

बकौल बेदी आज संगीत मकैनिकल (यांत्रिक) हो चुका है। नयी पीढ़ी अलग तरह का संगीत सुनना चाहती है। पर लताजी की आवाज़ ने करोड़ों लोगों के दिलो के साथ भावनाओं का जो रिश्ता कायम किया है वह कहीं नहीं जाएगा।