आज मुल्क के जो हालात बन रहे हैं, साम्प्रदायिक ताकतें खुलेआम संविधान, कानून व लोकतांत्रिक व्यवस्था को ललकार रही हैं। ध्रुवीकरण अपने चरम पर है। ऐसे हालात में संवैधानिक व्यवस्था और लोकतंत्र से मुहब्बत करने वाले लोग मायूस हैं। और इन मायूस लोगों में सबसे बड़ी तादाद किसी वर्ग या तबके की है, तो वो मुस्लिम समुदाय की है। मुसलमानों का आम तबका, कारोबारी, पढा लिखा, नौकरी पेशा, रिटायर्ड अफ़सर यानी हर मुसलमान एक तरह मायूस है, वो तथाकथित सेक्यूलर ताकतों से अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहा है। बात अपनी जगह सच भी है, लेकिन इतनी सच भी नहीं है कि पूरी तरह से मायूस होकर दिशाहीनता का शिकार बना जाए।
आज भी मुल्क में बेशुमार गैर मुस्लिम लोग हैं जो लोकतंत्र व संविधान की रक्षा की बात करते हैं, जो मुसलमानों के साथ होने वाली नाइन्साफी व ज्यादती के खिलाफ़ बेबाकी से अपनी आवाज़ बुलंद करते हैं। इसलिए दिशाहीन होने की बजाए अपनी सही दिशा तलाश करें, जो आपको तालीम, तिज़ारत व तरक्की की बुलंदियों तक पहुंचा सके। मुल्क के इन हालात के लिए इतना मायूस होने की जरूरत नहीं है, जैसा कि लोग सोशल मीडिया पर कहते रहते हैं कि सभी गैर मुस्लिम एकजुट होकर मुसलमानों के खिलाफ़ हो गए हैं या खिलाफ़ नहीं हैं तो मुसलमानों के मामले में अपना मुंह उस ताकत से नहीं खोलते, जिस ताकत से खोलना चाहिए। मुस्लिम युवा सोशल मीडिया पर कहता है कि देश पर एक तरह से आरएसएस का कब्ज़ा हो गया है, यूपी में गैर मुस्लिमों ने एकजुट होकर भाजपा को वोट दिया है आदि-आदि, यह बातें पूरी तरह से गलत हैं तथा यह बातें हालात को और ज्यादा बिगाड़ने में मददगार साबित होने वाली हैं।
जरा गौर कीजिए कि अगर सभी गैर मुस्लिमों ने भाजपा को एकजुट होकर यूपी में वोट दिया है और मुसलमानों ने सपा, बसपा, एमआईएम, कांग्रेस वगैरह में अपना वोट बांटा है, तो फिर सपा गठबंधन को 36 प्रतिशत के करीब वोट कहाँ से मिला ? यह सच है कि वोटों का बंटवारा व ध्रुवीकरण हुआ है, लेकिन यह भी सच है कि गैर मुस्लिमों की एक बड़ी तादाद भाजपा को पसंद नहीं करती है, यूपी, बंगाल, बिहार, पंजाब, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, दिल्ली आदि राज्यों के विधानसभा चुनाव इस बात के गवाह हैं। इन राज्यों में एकाध को छोड़कर बाकी सभी में भाजपा की बहुत बुरी हार हुई है। पिछले चार साल के विधानसभा चुनावों पर अगर नज़र डालें तो भाजपा बड़े राज्यों में यूपी व असम सिर्फ दो में जीती है, हरियाणा में उसने गठजोड़ कर सरकार बनाई है, तो मध्यप्रदेश व कर्नाटक में खरीद फरोख्त कर दूसरी पार्टियों की सरकारों को गिराकर खुद की सरकारें बनाई हैं। इसलिए यह कहना कि पूरे देश पर भाजपा का कब्ज़ा हो गया है, गलत है, यह सिर्फ आईटी सेल का दुष्प्रचार है। भाजपा विरोधी वोटरों व राजनेताओं को डेमोरलाइज (हौसला पस्त) करने के लिए।
मुसलमानों को इस पहलू पर भी गौर करना चाहिए कि मुल्क के इन हालात और मुसलमानों के साथ हो रही इस नाइन्साफी व ज्यादती के लिए किसी की कोई गलती नहीं है, यह मुसलमानों द्वारा की गई कोताहियों का नतीज़ा है। आरएसएस का तो यह मुस्लिम विरोधी एजेंडा खुली किताब की तरह था, जो उन्होंने 100 साल पहले 100 साल की दूरअंदेशी के साथ तय किया था, जिसके नतीजे आज आ रहे हैं। दोष हमारा (मुसलमानों का) खुद का है। हमने 75 साल में क्या किया ? गैर जरूरी मजहबी बहसें की, नेताओं के नाम पर सियासी चाटुकार पैदा किए, मजहबी व समाजी रहनुमाओं के नाम पर ज्यादातर खुदगर्ज़ ढोंगी पैदा किए। सरकारी नौकरियों को हासिल करने और मय्यारी तालीमी इदारे खोलने के मामले में हम जीरो रहे। इसलिए आज हम एक दिशाहीन, अनुशासनहीन व लावारिश भीड़ में तब्दील हो गए, जिसका कोई धणी धौरी नहीं है।
अगर हम बड़ी तादाद में मय्यारी तालीमी इदारे खोलते, सरकारी नौकरियों पर पूरा फोकस करते, को-ऑपरेटिव कारोबारी तालमेल से क़ौम को मजबूत करते, अपने मीडिया संस्थान खड़े करते और सबसे अहम बात खुद को स्थापित करने के साथ साथ हर इन्सान की बिना किसी तफरीक (भेदभाव) के मदद करते, तो आज तस्वीर का रूख कुछ और होता। इस बेबसी व लाचारी के लिए हम खुद जिम्मेदार हैं और हमें इस अंधेरी खाई में धकेलने वाले ज्यादातर हमारे ही मजहबी, समाजी व सियासी रहनुमा हैं। अब भी वक्त है, जब जगे तभी सवेरा।
एक और ध्यान देने वाली बात है कि हमें पूरा फोकस तालीम, कारोबार, नौकरी, हर जरूरतमंद इन्सान की मदद करने, सियासी ठगों व साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण से दूर रहने और अपने खानदान, रिश्तेदारों व गांव मोहल्ले की तरक्की पर रखना है। हम जो भी काम करें वो पूरी ईमानदारी, वक्त की पाबंदी व शालीनता से करें। सबको यह सन्देश देने की कोशिश करें कि मुसलमान बहुत ही ईमानदार, मेहनती, खुद की खाने वाला, व्यवहारिक व तहजीब याफ्ता होता है। इसके अलावा तमाम विकट परिस्थितियों और नफ़रती गैंग के मुस्लिम विरोध के बावजूद हमें इस ओर भी ख़ास तवज्जोह देनी चाहिए कि मुस्लिम क़ौम की भलाई के नाम पर कुछ भड़काऊ और कट्टर तन्जीमें धीरे-धीरे हमारे मुआशरे में जड़ें जमा रही हैं, जो सोशल मीडिया के जरिए हमारी 15 से 25 साल की नई नस्ल के लिए बहुत बड़ी खतरे की घण्टी हैं। इसलिए उनसे भी सावधान रहें और आगे बढ़ें, एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चलें, रूकें नहीं, क्योंकि मंजिल आपका इन्तजार कर रही है।
(सभार थार न्यूज़-इक़रा पत्रिका)।