Success Story नीट 2021: खालिद सैफुल्लाह, मदरसा से मेडिकल तक

पहले मदरसे में पढ़ाई की। कुरान कंठस्थ किया, यानि हाफि-ए-कुरान बना। फिर स्कूल में दाखिला लिया और ‘नीट 2021‘ में कामयाबी हासिल कर डॉक्टर बनने की राह पर चल पड़ा है।यह एक अद्वितीय सफलता की कहानी है।पटना के एक युवक खालिद सैफुल्लाह ने इस कहानी को साकार किया है। उसने पटना के ‘रहमानी 30‘ नीट की तैयारी की और अब कामयाब लोगों की सूची में शामिल है।

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दरभंगा के गांव डोभरा जाला के रहने वाले खालिद सैफुल्लाह के अब्बा मौलाना हाफिज  मुहम्मद इस्लाम कासमी पटना की नई अजीमाबाद मस्जिद के इमाम हैं।नीट के नतीजों के साथ जहां देश में अलग-अलग शहरों की प्रतिभाएं सामने आई हैं, वहीं ऐसी कहानियां भी सामने हैं जो कहीं न कहीं सफलता के पीछे के संघर्ष और मेहनत को उजागर करता है। कहीं समाज की सोच बदल जाती है तो कहीं सोच को गलत साबित कर नई मिसाल कायम कर देती है।

दरअसल, कहानी सिर्फ इस युवक के इर्द-गिर्द नहीं घूमती। इसमें एक गरीब इमाम का अपने बच्चों को उच्च शिक्षा प्रदान करने का संघर्ष भी शामिल है, जिन्होंने खालिद सैफुल्ला से पहले अपने बड़े बेटे को बी-टेक और पिछले साल नीट में कामयाब बनाकर एक बेटी को पीएमसीएच में एमबीबीएस का छात्र बनाया है।

मदरसे से बिस्मिल्लाह

इस कहानी का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि खालिद सैफुल्लाह ने न केवल मदरसे में शिक्षा प्राप्त की, वह कुरान को याद करने वाला यानी हाजिफ भी है। कुरान को याद करने के बाद, उसने सातवींक्लास में स्कूल में प्रवेश किया। बुनियादी शिक्षा की इन सभी कमजोरियों को दूर करने के लिए कड़ी मेहनत की।

सफलता पानी के लिए जो जरूरी था वो हासिल किया।अपने सपने को हकीकत में बदला। कहीं न कहीं यह उनके पिता की इच्छा थी कि पहले धार्मिक शिक्षा पूरी की जाए, फिर शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ा जाए। खालिद सैफुल्ला ने पहले मदरसे का रुख किया। फिर स्कूल मंे तालीम हासिल की और नीट में कामयाबी हासिल की है।

कड़ी मेहनत की मिसाल

मदरसे के बाद स्कूल में सातवीं कक्षा में प्रवेश करना आसान नहीं था। खालिद सैफुल्लाह ने आवाज द वाॅयस से कहा कि यह मेरे लिए बहुत मुश्किल था। याद करते हुए कहते हैं। जब बीकन स्कूल के सातवीं कक्षा में कदम रखा, तो पहले छह महीनों तक बहुत मेहनत करनी पड़ी। यह महत्वपूर्ण चरण था। मेहनत करने के अलावा कोई चारा नहीं था।

हद यह है कि एक साल की मेहनत के बाद खालिद सैफुल्लाह ने एक अन्य स्कूल में नौवीं कक्षा में दाखिला लिया। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्हें बचपन से विज्ञान में रुचि थी। एक बहन ने चिकित्सा के क्षेत्र में कदम रखा था, इसलिए खालिद सैफुल्ला को मंजिल तक पहुंचने के लिए दोहरी मेहनत करनी पड़ी।

रहमानी 30 का दौर

उनका कहना है कि रहमानी 30 ने मंजिल तक पहुंचने में अहम भूमिका निभाई है। जहां मैंने ‘नीट‘ की तैयारी की। वहां का माहौल बेहद सकारात्मक और सुखद था। ‘रहमानी 30‘ का दौर मेरे बहुत काम आया। सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों और मार्गदर्शकों ने मेरी बहुत मदद की।

उन्होंने रहमानी 30के साथ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी नीट की तैयारी के लिए आवेदन किया था। उनकी योग्यता का प्रमाण था कि उनका चयन दोनों संस्थानों में हो गया था। लेकिन रहमानी 30इसलिए पसंद आया क्यों कि यह पटना में है। अलीगढ़ जाने पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ता।

खालिद सैफुल्लाह ने बताया कि रहमानी 30में दाखिले के बाद छात्रावास के जीवन में नए अनुभव हुए। शिक्षा के साथ भी बहुत कुछ सीखा। यह सब जीवन में काम आएगा और आ रहा है। जीवन में अनुशासन सबसे महत्वपूर्ण है। रहमानी 30अब उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गया है।

रहमानी 30में खालिद सैफुल्ला की कोचिंग और रहने की जगह सब मुफ्त थी।उसने एक इमाम के एक और सपने को पूरा करने में भी मदद की।

इमाम का संकल्प

मौलाना कासमी साहब अपने बच्चों की शैक्षिक सफलता पर कहते हैं कि मेरा उद्देश्य बच्चों के जीवन में मजहब और दुनिया के बीच संतुलन बनाए रखना है। अगर आपकी नीयत अच्छी है तो अल्लाह आपकी मदद करेगा।

 

मौलाना कासमी कहते हैं कि अगर मैं आपको अपनी सैलरी के बारे में कुछ बताऊं तो आप मेरी बात पर यकीन नहीं करेंगे, लेकिन हर हाल में मैं अल्लाह का शुक्रिया अदा करता हूं। बच्चों की पढ़ाई का खर्चा चलाने के लिए ट्यूशन आदि करता था।

उसके बाद कहीं न कहीं अल्लाह की मदद आई। जब मेरी पहली बेटी शगफ अंजुम ने नीट में सफलता हासिल की, उस समय एक नया कोचिंग सेंटर पीएनबी खुला था। उसके कर्ता धर्ता ने मेरी बेटी को बुलाया। उनका कहना है कि बच्चों को डॉक्टर बनने के लिए इस लिए प्रेरित किया ताकि सभी का इलाज संभव हो सके। आप कमाते हैं और सेवा करते हैं। मानव सेवा की भावना दिल में रखनी चाहिए।

सभार आवाज़ द वायस