हरियाणा के उस नेता की कहानी, दिग्गज जाट नेता देवीलाल को मात देकर बन गए मुख्यमंत्री

29 जून 1979 का दिन हरियाणा ही नहीं, बल्कि पूरे देश की राजनीति में भी अविस्मरणीय रहेगा। इसी दिन चौधरी भजनलाल ने पहली बार देवीलाल सरकार को गिराकर नाटकीय अंदाज में  हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। 6 अक्टूबर, 1930 को जन्में भजन लाल का लंबा राजनीतिक करियर रहा और इस दौरान तीन बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। वह पहली बार 1979 में फिर से 1982 और 1991 में हरियाणा के मुख्यमंत्री बने थे। वह एक बार केंद्रीय कृषि मंत्री भी रहे। 3 जून 2011 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा।

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मंत्री रहते हुए किया था तख्तापलट

दरअसल, लोगों को भजनलाल की असाधारण राजनीतिक क्षमताओं के बारे में तब पता चला जब 1979 में उन्होंने चौधरी देवीलाल की सरकार में डेयरी मंत्री रहते हुए तख्तापलट कर खुद की सरकार बना ली थी। वह भी तब जब खतरे की आशंका के बीच चौधरी देवीलाल ने करीब 42 विधायकों को तेजाखेड़ा के अपने किलेनुमा घर में बंदूक की नोक पर बंद करके रखा था। इनको बाहर आने-जाने की मनाही थी। इसके बावजूद भजनलाल ने ऐसी राजनीतिक चाल चली कि दिग्गज देवीलाल मात खा गए और सीएम बन गए भजन लाल।

देवी को झटका, भजन को शपथ

वर्ष 1977 के विधानसभा चुनाव में हरियाणा में जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई थी। उस समय जनता पार्टी को 75, कांग्रेस को तीन व विशाल हरियाणा पार्टी को पांच सीटें मिली थी। सात निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीते थे। नब्बे सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए सिर्फ 46 की जरूरत थी। लिहाजा देवीलाल को 75 के बहुमत के साथ सत्ता संभालने में कोई मुश्किल नहीं हुई, मगर तब उन्हीं की सरकार में उन्हीं की पार्टी के आदमपुर से विधायक और पशुपालन मंत्री चौधरी भजनलाल ने थोड़े दिनों बाद ही बाजी पलट दी।

भजनलाल ने तीन बार संभाली प्रदेश की सत्ता

उन्होंने अपने समर्थन में विधायक जुटाकर जनता पार्टी को दो फाड़ कर दिया। अपनी सरकार बचाने के लिए चौधरी देवीलाल ने 42 विधायकों को तेजाखेड़ा फार्म पर एकत्रित भी किया, मगर भजनलाल की चतुराई के आगे उनकी दाल नहीं गली। देवीलाल को कुर्सी से हटना पड़ा और 29 जून 1979 को भजनलाल मुख्यमंत्री बन गए। भजनलाल ने देवीलाल के पाले में खड़े 42 में से दो विधायकों को भी अपने साथ मिला लिया था। इसकी लंबी कहानी है, जिसके किस्से चौपालों तक प्रचलित है। बाद में भजनलाल कांग्रेसी बन गए और तीन बार प्रदेश की सत्ता संभाली।

वर्ष 1982 में भी दिखाया भजन ने कमाल

चौधरी भजनलाल ने वर्ष 1982 के चुनाव में भी कमाल दिखाया। भजनलाल के नेतृत्व में कांग्रेस को 36 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि भाजपा से चुनाव पूर्व गठबंधन के साथ मैदान में उतरे भारतीय राष्ट्रीय लोकदल को गठबंधन के साथ 37 सीटें मिली। सब कुछ राज्यपाल पर निर्भर था। राज्यपाल जीडी तपासे ने पहले चौधरी देवीलाल को 22 मई 1982 को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर दिया, मगर चौधरी भजनलाल ने निर्दलीयों की मदद से अपने पाले में 52 विधायक कर लिए। ठोस बहुमत के बल पर भजन दूसरी बार सीएम बने।

भजनलाल को कहा जाता था राजनीति का पीएचडी

इस प्रकरण से चौधरी देवीलाल के क्रोध की सीमा नहीं रही। वह भाजपा विधायकों के साथ राजभवन पहुंचे। कहते हैं राज्यपाल से बहस के दौरान देवीलाल ने आपा खो दिया था। तब तक समीक्षक चौधरी भजनलाल को राजनीति का पीएचडी कहने लग गए थे।

वर्ष 1991 में भजनलाल तीसरी बार सीएम बने, मगर इसके बाद उनकी राजनीति को ग्रहण लग गया। वर्ष 2005 में कांग्रेस को बहुमत मिला तो बाजी भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नाम रही। इसके बाद भजनलाल को गहरा सदमा लगा। उन्होंने बेटे कुलदीप बिश्नोई के साथ हरियाणा जनहित कांग्रेस भी बनाई, मगर जल्दी ही बेटे की घर वापसी हो गई। भजन अब इस दुनिया में नहीं है, मगर जाट केंद्रित राजनीति में उनकी गैर जाट की राजनीति हमेशा चर्चा में रहेगी।

ऐसा कहा जाता है कि भजनलाल अपने पैतृक गांव से पैदल आदमपुर की मंडी में घूमने जाते थे। इस दौरान वह घी बेचते थे। मंडी के एक दुकानदार ने भजनलाल का हुनर देखकर उन्हें अपना पार्टनर बना लिया।

भजनलाल ने अपने करियर की शुरुआत ब्लॉक स्तर के चुनाव से की थी। 1968 में पहली बार हरियाणा की आदमपुर सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। 1972 में दोबारा इसी सीट से जीते।  इमरजेंसी के दौरान  1977 में भजनलाल कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी में शामिल हो गए और हिसार से चुनाव जीता। 1978 वह देवी लाल सरकार में डेयरी व पशुपालन मंत्री बने और फिर तख्ता पलट कर सीएम बन गए।

Janmat Haryana के सौजन्य से