नई दिल्लीः दिल्ली के खिड़की मस्जिद का निर्माण 14वीं शताब्दी में फिरोज शाह तुगलक के प्रधान मंत्री खान-ए-जहाँ जुनान शाह द्वारा कराया गया था। 1947 में विभाजन के बाद पश्चिमी पंजाब से हजारों शरणार्थी दिल्ली में आए और शहर के प्रसिद्ध स्मारक उनका पहला घर बन गए। एक रिपोर्ट के अनुसार अक्टूबर 1947 तक लगभग 80,000 शरणार्थी पुराना किला के शरणार्थी शिविर में और हुमायूँ के मकबरे में बस गए थे।
जनसत्ता की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ बंटवारे के वक्त एक समय ऐसा आया जब खिड़की मस्जिद के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा, लेकिन इलाके के हिंदुओं ने इस मस्जिद के अस्तित्व को बचाया। विभाजन और उसके बाद हुई सांप्रदायिक अशांति के मद्देनजर गांव के लगभग सभी मुसलमान भाग गए थे। उसके बाद वहां रह रहे हिंदू निवासियों ने सरकार से अपील की कि, खिड़की मस्जिद को शरणार्थी शिविर में परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए। खिरकी गांव में राजपूत ,चौहान, मुस्लिम, ब्राह्मण और दलितों की मिश्रित आबादी शामिल है। इस तरीके से खिड़की मस्जिद के अस्तित्व को बचाने में हिंदुओ का भी हाथ है।
नाथू सिंह कौशिक उस (बंटवारे के वक्त) समय लगभग 15 वर्ष के थे। उनका परिवार पीढ़ियों से खिड़की गांव में रह रहा था। उनका घर इस ऐतिहासिक मस्जिद के आसपास था जिसने गांव को अपना नाम दिया था। जैसे ही सरकार ने शरणार्थियों के लिए जगह बनाने के लिए शहर के स्मारकों को चिह्नित करना शुरू किया, खिड़की की संरचना पर भी विचार किया गया।
नाथू सिंह कौशिक ने याद करते हुए बताया कि उनके प्रिय ‘किला’ के शरणार्थी शिविर बनने की संभावना को लेकर उनके गांव के निवासी कितने चिंतित थे। कौशिक ने बताया कि, “यह संरचना गाँव का एक बहुत ही खास हिस्सा थी। हम नहीं चाहते थे कि यह किसी भी तरह से बर्बाद हो या यह पर शरणार्थियों की भीड़ हो।
कौशिक ने याद किया कैसे सरकार ने मौलाना अबुल कलाम आजाद जो भारत सरकार के पहले शिक्षा मंत्री थे, उन्हें गांव का दौरा करने और यह जांचने के लिए नियुक्त किया था कि क्या वास्तव में संबंधित संरचना एक मस्जिद थी। कौशिक ने बताया कि, “मेरे दादाजी अबुल कलाम आजाद से उनकी यात्रा के दौरान मिले थे। उन्होंने आज़ाद को समझाया कि यह सदियों से एक मस्जिद है, भले ही यहां कोई नमाज़ नहीं होती है। इसका नतीजा ये हुआ कि सरकार को मस्जिद में शरणार्थियों को फिर से बसाने की योजना को छोड़ने पड़ा।”