सोफिया अपने ज़माने की सबसे खूबसूरत और सफल अभिनेत्री

अशोक पांडेय

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

अपने करियर के शुरू में ही सोफिया समझ गयी थी कि एक अभिनेत्री के तौर पर उसे हॉलीवुड में भी सफलता मिलनी ही है. उसने भाषाएँ सीखना शुरू कर दिया – अंग्रेजी और फ्रेंच. उसने अकल्पनीय तेजी के साथ अंग्रेजी सीख ली. बहुत जल्द वह अपने ट्यूटर की मदद से टी. एस. इलियट की कविताएं पढ़ रही थी. 1960 के आते आते वह दुनिया भर में अपने समय की सबसे खूबसूरत और सफल अभिनेत्री  के रूप में स्थापित हो चुकी थी. उसी साल बनी इटैलियन फिल्म ‘टू वीमेन’ से पहले उसने तमाम कमर्शियल सिनेमा किया था जिसने दुनिया भर में कीर्तिमान रचे थे. यह अलग बात थी कि उनमें से किसी भी फिल्म में वैसी क्लास नहीं थी जिस पर उसका हक़ था. ‘टू वीमेन’ के बाद भी उसने कमर्शियल सिनेमा में काम करना जारी रखा और एक के बाद एक सुपरहिट दीं और हर फिल्म से एक मिलियन डॉलर की फीस वसूली जिसकी वह हकदार भी थी.

‘टू वीमेन’ में उसका काम उसी स्तर का है जैसा ‘ला स्त्रादा’ में एंथनी क्विन का. दोनों ने संसार को दिखाया कि वे जितने बड़े स्टार हैं उतने ही बड़े अभिनेता-अभिनेत्री भी. अल्बेर्तो मोराविया के उपन्यास पर आधारित ‘बाइसिकल थीफ’ फेम वाले निर्देशक वितोरियो डी सिका की फिल्म ‘टू वीमेन’ दूसरे विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी थी. फिल्म में अपनी युवा बेटी को युद्ध की विभीषिका से बचाने में लगी एक स्त्री की मर्मस्पर्शी कथा कही गयी है.

‘टू वीमेन’ में काम करते हुए उसे बार-बार अपने बचपन और दूसरे विश्वयुद्ध की त्रासदी को दोबारा जीने पर मजबूर होना पड़ा. बहुत सारे दृश्यों को फिल्माते हुए ऐसा भी हुआ कि शूटिंग रोक देनी पड़ी क्योंकि फिल्म की कहानी उसे बहुत मानसिक त्रास देती थी. जब वह उस भूखी माँ का किरदार निभा रही होती जो बम से तबाह कर दिए गए अपने घर को लौट रही है, उसे सिर्फ अपने बचपन को याद करना होता था.

अभिनय में दिखती थी वास्तविकता की झलक

शूटिंग शुरू होने के पहले ही दिन से हर कोई जानता था कि इस फिल्म के साथ कुछ ख़ास बात अवश्य है. सोफिया के अभिनय में एक वास्तविकता थी, एक सघनता थी – ऐसा तभी होता है जब अभिनय समाप्त होता है और असल कला उभर कर आती है. इस बात पर आलोचक भी एकमत हुए. सोफिया ने कान फिल्म फेस्टीवल में बेस्ट ऐक्ट्रेस का खिताब जीता. न्यूयॉर्क फिल्म क्रिटिक्स सर्कल और ब्रिटिश फिल्म अकादमी ने भी उन्हें यही सम्मान दिया.

लेकिन किसी भी विदेशी फिल्म को इससे पहले ऑस्कर नहीं मिला था. और 1961 के ऑस्कर्स में मुकाबला बहुत मुश्किल था. ‘ब्रेकफास्ट ऐट टिफैनीज़’ में हॉली गोलाइटली का रोल करने के बाद ऑड्री हेपबर्न सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री की दौड़ में सबसे आगे चल रही थीं और उन्हें ऑस्कर मिलना पक्का था. मुकाबले में जेराल्डीन पेज (समर एंड स्मोक), नताली वुड (स्प्लेंडर इन द ग्रास) और पाइपर लॉरी (द हस्लर) जैसी अभिनेत्रियों का यादगार काम था.

नॉमिनेट किये जाने के बावजूद सोफिया का जीतना असम्भव माना जा रहा था – सोफिया खुद इस कदर विश्वस्त थी कि उसने समारोह के लिए हॉलीवुड न जाने का फैसला किया. उसके पास समय की भी कमी थी क्योंकि उसने रोम में ‘बोकैसियोज़ 70’ की शूटिंग शुरू कर दी थी.

लेकिन अकादमी अवार्ड्स की रात वह जागी रही ताकि वायरलेस पर लेटेस्ट ख़बरें जान सके. जब बेस्ट ऐक्ट्रेस का अवार्ड घोषित हुई वह इस कदर बौरा गयी कि उसे आसपास जो भी दिखा-मिला, उसने उसे चूम लिया. इटली के एक छोटे से गाँव से निकली उस दुबली सी लड़की ने सिनेमा का सर्वश्रेष्ठ हासिल कर लिया था जिसे किसी जमाने में टूथपिक के नाम से पुकारा जाता था.

ग्रेटा गार्बो का चलता था राज

टूथपिक वाली कहानी थोड़ा लम्बी है और मैं उसे पहले लिख चुका हूँ. एक बार फिर पढ़ लीजिये क्या हर्ज है। जिस दौर में फिल्मों की दुनिया में हॉलीवुड की पहली सुपरस्टार अभिनेत्री ग्रेटा गार्बो का राज चलता था, 1932 में इटली में एक प्रतियोगिता हुई – आयोजकों को ग्रेटा गार्बो जैसा दिखने वाली किसी लड़की की तलाश थी. 18 साल की खूबसूरत रोमिल्दा विलानी विजेता घोषित हुई और इनाम के तौर पर उन्हें हॉलीवुड का टिकट और मुफ्त स्क्रीन टेस्ट का मौका हासिल हुआ.

उसकी जैसी तमाम लड़कियों के लिए यह किसी सुनहरे ख़्वाब के पूरा हो जाने जैसा था. लेकिन रोमिल्दा के माँ-बाप ने उसे हॉलीवुड भेजने से इनकार कर दिया. फिल्मों में अभिनय कर पाने का उसका सपना छितर गया. वह अच्छा पियानो बजा लेती थी और उसकी यही प्रतिभा आड़े समय में उसके काम आई.

कुछ साल बाद रोमिल्दा की एक बेटी हुई. बेटी के पिता ने रोमिल्दा से शादी करने से मना कर दिया. आर्थिक रूप से भयानक संघर्ष कर रही रोमिल्दा को परिजनों ने सलाह दी कि बच्ची को अनाथालय में भरती करा दिया जाय लेकिन वह अपनी बहन और बेटी के साथ अपनी माँ के गाँव चली आयी जहाँ पियानो के ट्यूशन देकर किसी तरह उसने अपना और बच्ची का पेट पाला. फिर विश्वयुद्ध शुरू हो गया और उसकी मुश्किलें बढ़ती चली गईं.

गरीबी, हताशा, अपमान और युद्ध के बीच भी उसने अपनी बेटी को बड़ा किया. अस्तित्व के लिए लड़ रही इस माँ-बेटी के लिए इन मुश्किल सालों ने चुम्बक का काम किया. दोनों का प्रेम घना होता गया. युद्ध के बाद परिवार ने अपने उस लिविंग रूम में पब चलाना शुरू किया जहाँ घर पर बनी चेरी की शराब परोसी जाती थी और जहाँ के तार-तार हो चुके पर्दों के पार खूबसूरत नीला समुन्दर दिखाई देता था. रोमिल्दा ग्राहकों के लिए पियानो बजाती जबकि बेटी वेट्रेस का काम करने के अलावा बर्तन वगैरह धोती थी. घर के नजदीक तैनात अमेरिकी फ़ौज की एक टुकड़ी के सिपाहियों के बीच इस जगह ने अच्छी लोकप्रियता हासिल कर ली और घर का काम चल पड़ा.

बच्ची बहुत दुबली थी और स्कूल में सब उसे टूथपिक कहकर बुलाया करते थे. उसका जीवन इस तथ्य से और भी मुश्किल बन गया था कि स्कूल में सभी को यह भी मालूम था कि वह अनब्याही माँ की संतान है. लड़कियों के तानों से बचने के लिए वह स्कूल शुरू होने के ठीक पहले वहां पहुंचा करती थी. जाहिर है वहां उसकी एक भी सहेली नहीं बन सकी. उसकी माँ ही उसकी सबसे बड़ी सहेली थी. अपने सपने को अपनी बेटी में जी रही माँ ने ही उसे पियानो बजाना सिखाया और सभ्य समाज के तौरतरीकों से वाकिफ कराया.

युद्ध समाप्त होने के बाद 1948 में उनके शहर में एक ब्यूटी कांटेस्ट हुआ. रोमिल्दा की युवा बेटी अब टूथपिक नहीं रही थी. उसने प्रतियोगिता जीत ली और इनाम में रोम के दो टिकट मिले. यह शुरुआत थी. फिल्मों के इतिहास में महानतम अभिनेत्रियों की किसी भी लिस्ट को निकाल कर देख लीजिये, आग, निर्धनता और बम के धमाकों के बीच पकी-बढ़ी रोमिल्दा विलानी की इस असाधारण प्रतिभावान और खूबसूरत बेटी – सोफिया लॉरेन – का नाम उनमें जरूर होगा.