सोशल मीडिया ट्रोल्स को भी लगता है कि डेमोक्रेसी नहीं होनी चाहिए। नीति आयोग वाले अमिताभ कांत को भी लगता है कि देश में डेमोक्रेसी थोड़ी ज्यादा हो गई है। यानी बात अब ट्रोल्स से आगे बढ़ गई है। जिस विचार को अब तक आप ‘फ्रिंज एलीमेंट्स’ और ‘ट्रोल्स’ के विचार समझते आए हैं, उसे अब मुख्यधारा मानने का वक्त है। योजना आयोग को भंग करके जब नीति आयोग बनाया गया था, तब ऐसा दिखाया गया कि योजना आयोग जैसे कोई आलू छीलने वाली संस्था थी और उसकी जगह नीति आयोग देश के लिए धुआंधार नीतियां बनाएगा।
नीति आयोग ने अब तक क्या किया, ये मेरी समझदारी से परे का मामला है इसलिए इसे छोड़ते हैं। नीति आयोग के मुखिया अमिताभ कांत को लगता है कि देश में डेमोक्रेसी बहुत ज्यादा हो गई है इसलिए देश में सुधार संभव नहीं है! अब इसका मतलब हुआ कि देश में नीतिगत सुधार या विकास से पहले डेमोक्रेसी से निपटना पड़ेगा। काट छांट कर से छोटा करना पड़ेगा।
डेमोक्रेसी रहती है तो वाकई नेताओं के लिए बड़ा संकट रहता है। खराब कानूनों का विरोध होता है, खराब नीतियों का विरोध होता है, भ्रष्टाचार का विरोध होता है, लूट का विरोध होता है, जनता तरह तरह की मांगें रखती है, जनता में असंतोष पनपता है, जनता अपना मत जाहिर कर सकती है। नेता की आंख से देखें तो डेमोक्रेसी में वाकई बड़ी गड़बड़ी है। जनता अगर कुछ नहीं कर सकती है तो प्रधानसेवक की पीठ पर पूंजीपति का हाथ रखने वाला मीम ही बनाकर शेयर कर देती है। जनता लाख मजबूर हो, लेकिन दबे छुपे पूछ ही लेती है कि जो अरबों रुपये दबा रहे, जो खरबों उड़ा रहे हो, ये कहां से आ रहा है।
इसलिए, अमिताभ कांत की बात पर सरकार को तेजी से अमल करते हुए डेमोक्रेसी को बर्खास्त करके राजतंत्र बहाल कर देना चाहिए। देश की अर्थव्यवस्था ऐसे ही नहीं डूबी है। बहुत मेहनत की जा रही है। अमिताभ कांत जैसे लोगों के महान विचारों को पहचानिए जो लोकतंत्र में सर्वोच्च पदों पर बैठकर लोकतंत्र को ही सुधार में बाधा मान रहे हैं। ऐसी विद्वता पर हजारों एडम स्मिथ और कार्ल मार्क्स कुर्बान!
(लेखक युवा पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)