स्मृति शेष: चौधरी खुर्शीद अहमद को क्यों कहा जाता है मेवात का विकास पुरुष और दूरदर्शी नेता?

नूंह व तावडू से विधायक, कैबिनेट मंत्री व फरीदाबाद लोकसभा से सांसद रहे मरहूम चौधरी खुर्शीद अहमद की आज दूसरी बरसी है, मेवात में मौजूद अधिकांश परियोजनाएं उन्हीं की देन रही हैं। वो मेवात की नूंह व तावडू सीट से 5 बार विधायक, फरीदाबाद लोकसभा से एक बार सांसद रहे थे। 17 फरवरी 2020 को उनका 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। आज मेवात ही नहीं देश भर के लोग उन्हें खिराजे अकीदत पेश कर रहे हैं।उन्हें हरियाणा व मेवात के विकास के लिए हमेशा याद रखा जाएगा।

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मरहूम चौधरी खुर्शीद अहमद की राजनीतिक विरासत को उनके बड़े बेटे चौधरी आफताब अहमद आगे बढ़ा रहे हैं, जो वर्तमान में नूंह से विधायक और कांग्रेस विधायक दल हरियाणा के उप नेता हैं। दूसरे बेटे महताब अहमद परछाई की तरह आफताब अहमद का साथ दे रहे हैं, छोटे बेटे अंजुम अहमद हाई कोर्ट में वकील हैं और पूर्व में ए ए जी रहे हैं, बेटी रुकसाना अहमद ग्रहणी हैं।

आफताब अहमद 2009 में भी विधायक चुने गए थे और पहली बार में कैबिनेट मंत्री बने, ये रिकॉर्ड मेवात में सिर्फ चार लोगों के नाम है चौधरी खुर्शीद अहमद, चौधरी तैयब हुसैन, कंवर सूरज पाल और चौधरी आफताब अहमद।

क्या क्या परियोजनाएं दी चौधरी खुर्शीद अहमद ने

मेवात विकास बोर्ड का गठन कराया, नगीना में निजी कॉलेज खोला जिसे बाद में सरकार को सौंप दिया, फिरोजपुर नमक में प्रदेश की पहली जेबीटी, बतौर शिक्षा मंत्री जे बी टी संस्थान में उर्दू विषय के लिए अलग से सीटें निर्धारित की, फिरोज़पुर नमक हरियाणा का पहला मॉडल गांव, उटावड बहु तकनीकी संस्थान, रोज़का मेव इंडस्ट्रियल एरिया, हथीन इंडस्ट्रियल एरिया, मेवात में हर ब्लॉक में पीएचसी और सीएचसी केंद्र बनवाए, प्रदेश भर में पीएचसी सीएचसी बनवाए। अल आफिया अस्पताल मांडिखेडा, सिंचाई पंप हाउस, कोटला पंप हाउस आंकेडा, कामेंडा बांध,मेवात में सिंचाई के लिए ड्रेन बनवाए, उजीना डाइवर्जन ड्रेन, मेवात कैनाल परियोजना, भूमि संरक्षण के लिए तावडू व अन्य जगहों पर बांध निर्माण, हरद्वारी लाल कॉलेज तावडू।

डीएलएफ गुडग़ांव के चेयरमैन केपी सिंह खुद मानते हैं कि चौधरी खुर्शीद अहमद ने विकास परियोजनाओं को पूरा सहयोग दिया और आज दिख रहे विकास में उनकी भूमिका सराहनीय रही थी। गुडग़ाव व हरियाणा के शहरीकरण और उपनिवेशीकरण में खुर्शीद अहमद का बड़ा योगदान रहा है और गुड़गांव भारत का सबसे विकसित शहर भी बना।

एक बार मुख्यमंत्री का पद भी ठुकराया

साल 1979 में एक वक्त ऐसा भी आया जब चौधरी खुर्शीद अहमद के पास प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का मौका भी और ऑफर भी आया लेकिन उन्होंने शालीनता से उस ऑफर को ठुकरा दिया। दरअसल 1979 में चौधरी देवीलाल सरकार हरियाणा में गिर गई थी और चौधरी भजनलाल मुख्यमंत्री बने थे, उसी दरम्यान चौधरी खुर्शीद अहमद को मुख्यमंत्री पद ऑफर हुआ लेकिन उन्होंने नकार दिया।

तेज तर्रार वक्ता व अधिवक्ता के रूप में थी पहचान

चौधरी खुर्शीद अहमद पढ़ाई में अव्वल रहने के साथ साथ एक तेज़ तर्रार वक्ता भी थे, अपने छात्र जीवन में ही वो दिल्ली विश्वविध्यलय में जुबली हाल के प्रधान चुने गए। मंझते मांझते वे हरियाणा प्रदेश की राजनीति में एक स्तंभ की तरह बन गए, सरकारें बनाने व गिराने का दम रखते थे। महज 28 साल की उम्र में संयुक्त पंजाब असेंबली के लिए चुने जाने पर उन्होंने अपनी वाक्पटुता और सौम्य वक्तव्य शैली से तत्कालीन मुख्य मंत्री प्रताप सिंह कैरू पर गहरा प्रभाव छोड़ा था। पार्टी में प्रदेश में जिला प्रधान से लेकर प्रदेश उपाध्यक्ष रहे और संगठन में बड़ी जिम्मेदारी भी निभाई। सरकार में उनके पास स्वास्थ, शिक्षा, वित्त, सहकारिता, शहरी निकाय सहित कई मंत्रालय रहे, और उनके कार्य सराहनीय रहे।

गांधीवादी विचारधारा व ग़रीबों के साथी रहे

चौधरी खुर्शीद अहमद गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित रहे और हमेशा ग़रीब लोगों को प्राथमिकता देते थे और उनके काम करते थे। धर्म से मुस्लिम होने के बावजूद सभी धर्मों का ख़ूब आदर करते थे और पूरे राजनेतिक जीवन में सभी धर्मों के लोगों को साथ लेकर चलते रहे और हिन्दू मुस्लिम भाईचारे के बड़े पैरोकार थे।

मुश्किल वक्त भी आया

चौधरी खुर्शीद अहमद की गिनती उस वक्त के संयुक्त पंजाब व हरियाणा के पढ़े लिखे प्रभावशाली नेताओं में प्रमुख रूप से होती थी। राजनीती में उनके स्थानीय विरोधी नेता हमेशा उनकी टांग में लटके नजर आते थे। एक बार उन पर टाडा जैसे कानून भी थोपे गए हालांकि कोर्ट ने उन्हें बाइज्जत टाडा कानून से निकाल दिया। स्थानीय लोग मानते हैं कि उस वक्त अगर विरोधी नेता चौधरी खुर्शीद अहमद की टांग खींचने के बजाय इलाके के विकास को प्राथमिकता देते तो बहुत कुछ अच्छा हो जाता।

निजी पद से बड़ा मानते थे लोगों के हितों को

साल 1976, 1986, 1989 में ऐसे मौके भी आए जब चौधरी खुर्शीद अहमद ने नसबंदी, इमर्जेंसी व मेवात से भेदभाव के कारण अपने पद को जन हित में त्याग दिया था। वो मेवात के पहले नेता हैं जिन्होंने सांसद के पद से भी जनता के मुद्दों पर इस्तीफा दे दिया था। 1975 में पंजाब वक्फ बोर्ड में अनियमितताओं के खिलाफ भी सदस्य पद से इस्तीफा दिया था। अपनी दमदार राजनेतिक हैसियत व हिम्मत के कारण वो सरकारों पर कुछ हावी ही रहा करते थे, मेवात के हितों के लिए वो सरकार से मजबूती से काम भी करा लेते थे। दूसरा उनकी छवि व फैसले लेने की छमता बेजोड़ थी, इसीलिए 56 साल के राजनीतिक जीवन में उनका दामन मेला नहीं हुआ। इस दौरान बड़े राजनेतिक हैसियत के नेताओं से भी कई बार जन हित में दो दो हाथ राजनीती के मैदान में करते रहे।

क्या कहते हैं चौधरी आफताब अहमद, विधायक नूंह

वालिद साहब को गुजरे हुए 2 साल हो गए, उनकी कमी बहुत खलती है। उनको याद करता रहता हूं और कोशिश करता हूं कि लोगों की सेवा करके अपने वालिद के निशानों पर चलता रहुं। मेवात के लिए उनका योगदान उल्लेखनीय रहा, तालीम, स्वास्थ, कृषि व मूल भूत ढांचे के क्षेत्र में बड़ा काम किया।

एक बेटे के रूप में मैं भाग्यशाली रहा कि मुझे एक पिता के रूप में एक राजनेता के अलावा एक ईमानदार, काबिल, सेल्फ मेड, इलाके के लिए दर्द रखने वाले व्यक्ति मिले जिनसे न केवल राजनीति सीखने को मिली बल्कि ईमानदारी, वफादारी और जबान की बात को निभाने की सीख मिली। हम उनके विचारों, कार्यों और सोच को और आगे बढ़ाते रहेंगे।