सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को त्रिपुरा पुलिस के साइबर सेल को त्रिपुरा में मुस्लिम विरोधी हिंसा पर कार्यकर्ता समीउल्लाह ख़ान के ट्वीट के खिलाफ़ कार्रवाई करने पर रोक लगाई। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और ए एस बोपन्ना की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने ट्विटर पर त्रिपुरा पुलिस के नोटिस के तहत सभी कार्यवाही पर रोक लगा दी। इस नोटिस में ट्विटर से समीउल्लाह ख़ान के ट्वीट को हटाने के लिए कहा था। पुलिस ने ट्विटर से उनके खिलाफ़ आपराधिक मामले की जांच के लिए समीउल्लाह ख़ान का आईपी एड्रेस और फोन नंबर भी देने को कहा था। फ़ैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि हिंसा के बारे में चर्चा करना हिंसा में योगदान देने से अलग है।
इससे पहले नवंबर में सर्वोच्च न्यालय ने पुलिस को एडवोकेट अंसार इंदौरी, एडवोकेट मुकेश और पत्रकार श्याम मीरा सिंह के खिलाफ़ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया था। इन तीनों पर त्रिपुरा हिंसा मामले में कठोर UAPA कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था।
त्रिपुरा पुलिस ने हिंसा से संबंधित ‘विकृत और आपत्तिजनक’ सामग्री पर अंकुश लगाने के बहाने ट्विटर से कई सोशल मीडिया यूज़र्स के अकाउंट सस्पेंड करने और उनके पोस्ट हटाने को कहा था। उन्होंने सोशल मीडिया यूज़र्स के खिलाफ़ यूएपीए और आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत एफ़ आई आर भी दर्ज की थी।
इस मामले में समीउल्लाह ख़ान को क़ानूनी सहायता प्रदान करने वाले एसोसिएशन फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राइट्स (एपीसीआर) के महासचिव मलिक मोतसिम ख़ान ने कहा, “यह मामला यूएपीए जैसे कठोर कानूनों के दुरुपयोग का एक उदाहरण है। नागरिकों के खिलाफ़ राज्य द्वारा यूएपीए लगाना न केवल व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन करता है बल्कि जनता के मन में सोचने और स्वतंत्र रूप से बोलने के लिए भी डर पैदा करता है।”
उन्होंने आगे कहा, “हमें उम्मीद है कि आज का फैसला सुप्रीम कोर्ट में 2019 से लंबित UAPA की संवैधानिक वैधता के खिलाफ़ हमारी याचिका में हमारे पक्ष को मज़बूत बनाएगा । हमारा विश्वास है कि UAPA को समाप्त या निरस्त किया जाएगा।”
एसोसिएशन फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राइट्स के राष्ट्रीय सचिव नदीम ख़ान ने कहा, “इस फ़ैसले ने त्रिपुरा पुलिस का पर्दाफाश कर दिया है, जो सांप्रदायिक नरसंहार के संवेदनशील समय में त्रिपुरा के मुसलमानों के संरक्षण और समान व्यवहार के संवैधानिक वादे को निभाने में बुरी तरह विफल रही थी।”
एपीसीआर सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता शाहरुख आलम के माध्यम से समीउल्लाह ख़ान और कई अन्य लोगों को मुफ़्त कानूनी सहायता प्रदान कर रहा है ताकि 100 से अधिक निर्दोष व्यक्तियों को अभिव्यक्ति के अपने अधिकार का प्रयोग करने के लिए किसी भी तरह के मनमाने मुकदमे से बचा जा सके।
समीउल्लाह ख़ान ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का तहे दिल से स्वागत किया है। उन्होंने कहा, “मैं माननीय अदालत से एक अनुकूल आदेश प्राप्त करने के कारण राहत महसूस कर रहा हूं। मैं अदालत में कानूनी प्रतिनिधित्व और समर्थन प्रदान करने के लिए एपीसीआर और उसके पदाधिकारियों का आभारी हूं।”
स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ इंडिया (एसआईओ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सलमान अहमद, जिन्हें त्रिपुरा हिंसा के बारे में अपने ट्विटर पोस्ट के लिए भी इसी तरह के नोटिस का सामना करना पड़ा था, ने कहा, “हम पहले दिन से ही कह रहा थे कि त्रिपुरा में मुस्लिम विरोधी हिंसा के खिलाफ बोलने के लिए त्रिपुरा पुलिस कर्तव्यनिष्ठ नागरिकों को दंडित कर रही है, और सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही कहा है कि हिंसा के बारे में बात करने की तुलना कभी भी हिंसा में योगदान के साथ नहीं की जा सकती।
उन्होंने आगे कहा, “हम यह भी महसूस करते हैं कि अदालत को और भी आगे जाना चाहिए और ‘विशेष कानूनों’ की पूरी अवधारणा पर पुनर्विचार करना चाहिए, यह कानून जनता को चुप कराने के लिए राज्य के हाथ में विशेष हथियार से ज़्यादा कुछ नहीं रह गए हैं। त्रिपुरा मामले में, हिंसा होने देने में पुलिस की मिलीभगत और फ़िर इस बात से इनकार करने के लिए प्रचार अभियान चलाने की भी जांच की जानी चाहिए।”