शकील शमसी का सवाल: रामचंद्र जी की छवि को कौन बिगाड़ रहा है?

हिंदू संप्रदाय के अवतार और भगवान राम चंद्र जी को  वह भी  लोग सम्मान देते हैं जो उन्हें देवता या अवतार नहीं मानते, क्योंकि राम जी एक आदर्श पुरुष  रहे हैं, इसी कारण से हिंदू उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम  कहते हैं। ऐसा इसलिए है कि  जब वह राज्य  पाने वाले थे, तो उनकी सौतेली माँ कैकई ने उन्हें वनवास  पर  भिजवा दिया और वह  चुपचाप वनवास पर चले गए, जहां रावण की बहन ने शूर्पणखा ने उनको बहुत परेशान किये जिस के बाद शूर्पणखा  के नाक कान काटने की घटना हुई इस के  प्रतिशोध में, रावण ने रामजी की पत्नी सीता जी का अपहरण कर लिया। जिस पर रामजी की सेना ने लंका पर आक्रमण किया और रावण को मार डाला, लेकिन चौदह वर्ष  बाद जब राम चंद्र जी वापस अयोध्या आये  तो उन्हें शांति नहीं मिली क्योंकि अयोध्या के लोग सीता जी पर तरह-तरह के आरोप लगा रहे थे और इन आरोपों के झूठा साबित करने के लिए  सीता जी को अग्नि परीक्षा देनी पड़ी, फिर भी बात खत्म नहीं हुई, अंतत:  सीता जी को अयोध्या छोड़ कर  महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहना पड़ा जहां उनहोंने जुड़वां बेटों लव और  कुश को  जन्म दिया इतना ही नहीं बाद में लव कुश और राम चंद्र जी के सेना के बीच टकराव  भी हुआ।

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इन सभी घटनाओं में रामचन्द्र सर्वत्र एक आदर्श व्यक्तित्व के रूप में दिखाई पड़े । उनका मिजाज इतना सरल था  कि मुहावरा बन गया। इसी कारण (उर्दू भाषा में राम का अर्थ  ठंडे मन वाले व्यक्ति के रूप में होने लगा आज भी   यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे के क्रोध को ठंडा कर लेता है तो उक्त व्यक्ति कहता है मैं ने उस को राम कर लिया। यह राम के प्रति सम्मान की निशानी रही है कि हिंदू लोग जब किसी के साथ अन्याय होता हुआ  देखते थे तो अपने कानों पर  हाथ रखते थे और हे राम या  “राम राम” कहते थे । इसलिए भारत में रहने वाले सभी संप्रदाय उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। प्रसिद्ध शायर  इकबाल ने अपनी एक कविता में उन्हें इमाम हिंद के रूप में संबोधित करते हुए कहा है।

है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़

अहले नज़र समझते है उनको इमाम ए हिन्द 

लेकिन अफ़सोस की बात है कि आज हिंदुओं के एक वर्ग ने रामजी की छवि को कुछ ऐसा बना दिया है जैसे रामचंद्र जी कोई आदर्श देवता या अवतार नहीं बल्कि उत्पीड़न करने वालों  के नेता हैं। आज खुद को हिंदू कहने वाले  एक वर्ग ने राम जी के नाम को  मार काट के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।  रामचंद्र जी  के नाम को कुछ लोग  हत्या और आतंक का प्रतीक बनाने पर उतारू हैं । जिन  लोगों ने  रामचंद्र जी के बारे में पढ़ा या सुना वह  यह सब देख कर  काफ़ी हैरान हैं।

रविवार को  दिल्ली के जंतर मंतर पर एक रैली के दौरान तथाकथित राम भक्तों द्वारा लगाए गए नारे सुनकर हर वह भारतीय छुब्द है जो राम जी के जीवन से परिचित है । असल बात तो यह है की यह सब देख कर लगता है कि  जिन लोगों ने जंतर-मंतर पर मुसलमानों को काटे जाने और हत्या के डर  से उन्हें जय श्री राम कहने पर मजबूर करने के अपने इरादों को  ज़ाहिर किया है  उन्होंने रामजी को  हत्यारों और ठगों का देवता बनाने की कोशिश की है।

वास्तव में जब कोई वर्ग  अपने धर्म के सच्चे  रास्ते को  भूल जाता है, तो वह अपने घिनौने विचारों  का श्रेय अपने आराध्य से जोड़ने लगता है। हमें ऐसा लगता है कि इन लोगों ने रामचंद्र जैसे महान व्यक्ति के महत्व को कम करने के लिए इन लोगों ने  किसी से सुपारी ली  है।  वैसे, जो कोई भी उनके कार्यों को देखेगा उस को यह समझने में देर नहीं लगेगी  कि ये लोग राम चंद्र के नहीं बल्कि नाथू राम  के भक्त हैं।  सच तो यह है कि  राम चंद्र जी के नाम पर निहत्थों की हत्या करने का दम  भरने वाले लोग हिन्दू धर्म की वैसी ही तस्वीर बना रहे हैं जैसी अलक़ायदा, इस्लामिक राज्य, जैश ए  मोहम्मद और लश्करे तैयबा जैसे आतंकी संगठनों ने इस्लाम की छवि बनाई है।

इस बीच दिल्ली पुलिस ने जंतर मंतर पर मुस्लिम विरोधी नारे लगाने वाले  छह  लोगों को  गिरफ्तार किया है, जिसमें भाजपा के पूर्व प्रवक्ता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय और उनके पांच सहयोगी शामिल हैं। हालांकि अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि  मुसलमानों को काटे जाने के धमकी भरे  नारे किसने लगाए उन्हें  नहीं पता, लेकिन कोई उन पर विश्वास नहीं कर सकता क्योंकि भारत जोड़ो रैली के नाम पर उन्होंने ही  भारत तोड़ो  नाम की एक रैली का आयोजन किया था. हमें लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ वकीलों को अश्विनी उपाध्याय द्वारा आयोजित इस रैली का वीडियो मुख्य न्यायाधीश और बार काउंसिल ऑफ इंडिया के सामने पेश करना चाहिए और उन्हें बताना चाहिए कि यह रैली  सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले व्यक्ति के इशारे पर बुलाई  गई  थी  और इस में  घृणित और हृदयविदारक नारे लगाए गए हैं, इसलिए इस व्यक्ति को भारत के किसी भी न्यायालय में अभ्यास करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

(लेखक शकील हसन शमसी उर्दू रोज़नामा इंक़लाब के संपादक हैं)