गाली देकर न अंग्रेज गांधी को न अमेरिका इन्दिरा को डरा पाया

रीता बहुगुणा ने जब मायावती के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और घर जला दिया गया था। कांग्रेस ने रीता से जवाब तलब कर लिया था। मणिशंकर अय्यर ने तो प्रवृति के बारे में कहा था मगर उसे व्यक्तिवाचक बना दिया गया। कांग्रेस ने उन्हें भी सस्पेंड कर दिया था। यह अच्छी बातें हैं। इससे और अच्छी बात यह है कि अभी आसाम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वासरमा के बेहद निकृष्ट श्रेणी के बयान के बाद भी कांग्रेस ने संयम नहीं खोया। शायद ही कोई और पार्टी अपने अध्यक्ष और पूर्व अध्यक्ष, पूर्व प्रधानमंत्री के बारे में ऐसी ओछी बात सुनकर संयम रख सकती थी। यह आजादी के आंदोलन से मिले संस्कार है जब अंग्रेजों के लाख दमन के बाद भी स्वतंत्रता सेनानियों ने शाब्दिक अहिंसा का भी पालन किया।

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आसाम के मुख्यमंत्री ने तो अपनी गंदी मनासिकता दिखा दी। और दूसरी तरफ राहुल ने शांत रहकर और प्रियंका ने बहुत संयमित, गरिमापूर्ण प्रतिक्रिया देकर अपने परिवार का कद और ऊंचा कर दिया। सोनिया गांधी के तो जवाब देने का सवाल ही नहीं। उन पर हिमंता सरमा से कई गुना बड़े भाजपा नेता इस तरह के हमले कर चुके हैं मगर उन्होंने नेहरू गांधी परिवार की प्रतिष्ठा और भारत की महान परंपराओं के अनुरूप हमेशा क्षमा या दरगुजर करने का भाव रखा।

लेकिन सबसे बड़ा अफसोस कांग्रेस के उन नेताओं को लेकर है जिन्हें सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने सब कुछ दिया। मगर आज वे राजीव गांधी और सोनिया पर हुए इतिहास के सबसे गिरे हुए हमले पर चुप हैं। उनकी यह खामोशी उन्हें शायद भाजपा में कुछ दे जाए मगर देश में उनकी जो थोडी बहुत भी प्रतिष्ठा बची होगी वह इस चुप्पी के बाद हमेशा के लिए दाग में बदल जाएगी। कांग्रेसी कभी अपने नेताओं को मां की गाली देने पर भी प्रतिकार नहीं करेंगे यह कभी किसी ने सोचा भी नहीं था। भारत माता के नाम पर ही तो हजारों लोग बरसों अंग्रेजों की जेलों में रहे। जानें कुर्बान कीं। मां की ही तो आज्ञा जब तक नहीं मिली थी गांधी विदेश नहीं गए थे। कांग्रेस का तो इतिहास ही था न गाली दो न गाली सुनो। गांधी को दक्षिण अफ्रिका में गाली देकर ट्रेन से नीचे फेंकना अंग्रेजों को महंगा पड़ गया। वकील गांधी वकालत को छोड़कर आजादी की लड़ाई लड़ने भारत आ गए।

अंग्रेज सबसे ज्यादा क्या गाली देते थे? यही। बास्टर्ड! ब्लडी बास्टर्ड ! सिर्फ उन्हीं को नहीं जो उनके खिलाफ लड़ रहे थे। उन्हें भी जो उनसे बार बार माफी मांगते थे। उन्हें भी जो आजादी की लड़ाई में शामिल नहीं थे और अंग्रेजों की ही मदद कर रहे थे। पूरे भारतीय समाज को। मां की गाली होती ही ऐसी है जो सबको लगती है। जिसे दी है सिर्फ उसी को नहीं। और व्यक्ति अपने संस्कारों, सभ्यता के मुताबिक उसका प्रतिकार करता है।

मगर इस मामले में भाजपा के नेताओं की चुप्पी कोई आश्चर्यजनक नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी खुद कांग्रेस की विधवा, सुर्पणखा और 50 करोड़ की गर्ल फ्रेंड जैसे आपत्तिजनक बयान दे चुके हैं। भारत में जहां इन्दिरा गांधी जैसी साहसी लौह महिला पैदा हुई जिसने एक नया देश बनाकर दुनिया का भूगोल बदल दिया वहां महिलाओं को कमजोर समझकर उन्हें गंदी भाषा के जरिए दबाने की कोशिश कभी सफल नहीं हो सकती। इन्दिरा गांधी की हिम्मत और दृढ़ निश्चय से तो विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका इतना घबराता था कि उसके राष्ट्रपति निक्सन डरी हुई अवस्था में, लाचारी के साथ पीठ पीछे इन्दिरा गांधी को गाली देते थे। इससे किसकी कमजोरी पता चली? किसकी प्रतिष्ठा कम हुई? दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र प्रमुख माने जाने वाले अमेरिकन प्रेसिडेंट की। जलवा किसका बढ़ा? भारत की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी का।

तो भाजपा के मुख्यमंत्री की गाली से सोनिया और राजीव गांधी की प्रतिष्ठा कम नहीं हुई। संस्कार और सभ्यता पर सवाल लगे हैं उनके जो चुप हैं। चाहे वे भाजपा के नेता हों या विपक्ष के दूसरे बड़े बड़े नेता। एक तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव ने जरूर सख्त बयान दिया। और बिना नाम लिए एक बयान यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने। लेकिन सवाल या शिकायत इन सबसे भी ज्यादा नहीं है।

सबसे दुखद, सबसे शर्मनाक रवैया कांग्रेस के जी 23 के नेताओं का रहा। इन नेताओं को हमेशा सोनिया गांधी और राजीव गांधी की सदाशयता और दयालुता की वजह से ऊंचे ऊंचे पद मिलते रहे। जब सरकार थी तो उसमें और जब सरकार नहीं थी तो संगठन में। मगर आज वे अपने इन्हीं दोनों नेताओं के अपमान पर खामोश हैं। इससे भी सोनिया और राजीव गांधी की प्रतिष्ठा में कोई कमी नहीं आएगी। मगर इनकी प्रतिष्ठा जरूर और कम हो गई है।

भाजपा इन्हें कुछ भी दे दे। गुलामनबी आजाद ज्यादा से ज्यादा उप राष्ट्रपति बन सकते हैं। बाकी लोगों को भी राज्यसभा, मंत्री पद या मामलों मुकदमों से बचाया जा सकता है। मगर अपनी पार्टी, अपने नेताओं के साथ संकट में खड़े न होने का जो पाप या नैतिक अपराध ये कर रहे हैं यह जिन्दगी भर इनकी आत्मा पर बोझ बना रहेगा। जैसा कि भारत के इतिहास में जयचंद, विभीषण या जैसे शेक्सपियर के जूलियस सीजर में यू टू ब्रुट्स हैं जो हमेशा एक खलनायक की छवि ही पेश करते हैं, वैसे ही। भारत विभीषणों को कभी नहीं भूलता। विभीषण ने राम का साथ दिया था। मगर भाई के साथ विश्वासघात करने के कारण उसे कभी नेकनामी नहीं मिली।

ऐसा नहीं है कि सोनिया गांधी की आलोचना नहीं होना चाहिए। खूब होना चाहिए। और कांग्रेसियों के द्वारा ही होना चाहिए। मगर सही मुद्दों पर। उन्होंने 15 सालों तक, दस साल तक मुख्यमंत्रियों को कंटिन्यू क्यों रखा? जिन राज्यों आसाम, दिल्ली, हरियाणा में यह किया वहां इतने सालों में कांग्रेस का दूसरी कतार का नेतृत्व ही खत्म हो गया। तीनों जगह 8 साल से कांग्रेस की सरकार नहीं है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी दस साल ज्यादा थे। 2011 से ही वे लड़खड़ाने लगे थे। सरकार लेम डेक हो गई थी। संघ परिवार और केजरीवाल अन्ना हजारे को लेकर आ गए थे। मगर केन्द्र सरकार और कांग्रेस दोनों ही नहीं समझे कि यह 1967, 1977, 1989 जैसी बड़ी योजना है।

सवाल यह होना चाहिए कि उन लोगों को दस साल सरकार और संगठन में पद क्यों दिए जाते रहे जो 2014 का चुनाव हारते ही मोदी जी की तारीफ में लग गए। उनकी अवसरवादिता और पार्टी एवं नेतृत्व के प्रति निष्ठा न होने को पहले क्यों नहीं परखा और पहचाना गया? आखिर उन्हें निष्ठावान और समर्पित नेताओं, कार्यकर्ताओं की कीमत पर ही तो बढ़ाया गया?


आलोचना के मुद्दे बहुत सारे हैं। वायएसआर की दुर्घटना में दुखद मृत्यु के बाद जगन रेड्डी और उनकी मां को किन कांग्रेसी नेताओं के कहने से लगातार जलील किया गया? शिवराज पाटिल, नटवर सिंह, पवन बंसल पर आरोप क्या आज के मंत्रियों के मुकाबले ज्यादा बड़े थे? केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा के किसानों और पत्रकार को कुचलने के आरोप में गिरफ्तार होने के बावजूद मंत्री पिता की कुर्सी बरकरार है। राजनाथ सिंह ने तो 2015 में ही कह दिया था कि यह यूपीए सरकार नहीं जो मंत्रियों के इस्तीफे हो जाएं। एनडीए सरकार है यहां इस्तीफे नहीं होते। उस समय ललित मोदी की मदद करने के आरोप में मंत्री सुषमा स्वराज, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे, उनके बेटे दुष्यंत सिंह, अपनी शैक्षणिक योग्यता को लेकर मंत्री स्मृति ईरानी पर गंभीर आरोप थे।

कांग्रेस की यह समस्या है कि वह अंग्रेजी के मशहूर मुहावरे कि रोम में रहना है तो रोमन की तरह रहो, नहीं कर पाती। जल में रहकर मगरमच्छों से नहीं डरती। समाज, राजनीति बहुत पीछे के दौर में होते हैं और उसका नेतृत्व ज्यादा आदर्शवादी, सैद्धान्तिक व्यवहार करने लगता है। इसकी उसने कीमत भी चुकाई है। लेकिन फिलहाल इस गाली गलौज के माहौल में उसके नेतृत्व की गरिमा ही बढ़ी है। जैसे इन्दिरा गांधी को अमेरिका की गाली से यह साबित हो गया कि वे डर गए ऐसे ही राहुल को गाली देकर भी इन्होंने अपनी घबराहट और भय जाहिर कर दिया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एंव राजनीतिक विश्लेषक हैं)