CAA आंदोलन में पुलिस की गोली से गई थी शफीक़ की जान, APCR की कोशिश से जगी न्याय की उम्मीद

लखनऊ/नई दिल्ली: देशभर में नागरिकता कानून के विरोध में पुलिस का हिंसक रूप धीरे-धीर सामने आ रहा है यूपी पुलिस ने तो इस प्रदर्शन को दबाने के लिए खुद हिंसक रूप धारण कर लिया था प्रदर्शनकारियों पर गोलियों चलीं जिसमें 23 निर्दोष मारे गए थे, हज़ारों घायल हुए और लगभग 5000 नामित और 100,000 से अधिक अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को लेकर लगभग 350 एफआईआर दर्ज की गईं और हजारों निर्दोष लोगों को जेलों में भर कर उत्पीड़न किया गया।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

उत्तर प्रदेश का फिरोजाबाद जिला उन क्षेत्रों में शामिल है, जहां सीएए, एनआरसी के खिलाफ हालिया विरोध प्रदर्शनों के दौरान सबसे ज्यादा मौतें हुईं। राज्य में हुई 23 मौतों में से सात की मौत इसी जिले से हुई थी जिसमे फिरोजाबाद के शफ़ीक़, मुकीम, अरमान, राशिद, हारून, अबरार, नबी जान शामिल हैं।

पुलिस पर आरोप है कि उसने मनमाने तरीके से जनवरी 2020 में कम संगीन भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत प्राथमिकी दर्ज की और जांच को बहुत धीमी गति से चलाया। पुलिस पर अभियुक्तों को लाभ पहुंचाने के लिए मनमाने बयान अंकित करने और महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्रित ना करने का भी आरोप है, जिससे पुलिस की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर सवाल खड़े होते हैं। अंत में, जांचकर्ताओं ने क्लोजर रिपोर्ट दायर कर यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रदर्शन के दौरान सभी मृतक अन्य प्रदर्शनकारियों की गोली से ही मरे हैं और काफी समय बीत जाने के कारण अभियुक्तों को चिन्हित नहीं किया सकता है।

न्यायालय मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, फिरोजाबाद ने सीएए आंदोलन के दौरान कथित तौर पर पुलिस की गोली से मरने वाले मोहम्मद शफीक (36) पुत्र अब्दुल रशीद कुरैशी के मामले (817/19) में प्रेषित अंतिम रिपोर्ट (87/20) खारिज करते हुए अग्रिम विवेचना का आदेश प्रभारी निरीक्षक रसूलपुर को दिया है। उन्होंने यह आदेश इस मामले में पुलिस की अंतिम रिपोर्ट के खिलाफ दाखिल की गई प्रोटेस्ट अर्जी संख्या 431/2021 पर दिया है। अदालत में यह अर्जी शफीक के भाई निसार ने APCR की कानूनी मदद से दाखिल की थी। इससे पहले हम न्यायालय के समक्ष विवेचक और प्रगति रिपोर्ट को तलब करा कर संबंधित मुकदमे में भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) की बढ़ोत्तरी करा चुके हैं।

एपीसीआर का दावा है कि फ़िरोज़ाबाद में नागरिकता कानून के विरोध में हुए प्रदर्शन में मोहम्मद शफ़ीक़ नाम के शख्स को पुलिस ने सीधे सर में गोली मार दी थी जबकि वो 20 दिसम्बर 2019 को काम से घर लौट रहा था और उस प्रदर्शन का हिस्सा भी नहीं था।

एपीसीआर के वकील सगीर खान जो की इन मामलों की पैरवी कर रहे हैं ने उत्तर प्रदेश पुलिस पर केस वापस लेने का पीड़ित परिवारों और स्वयं उन पर दबाव बनाने का आरोप लगाया जिसकी शिकायत वे उच्च अधिकारियों सहित नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन में भी कर चुके हैं।

उनका कहना है की एपीसीआर की मदद से उन्होंने मृतक शफीक और अरमान की प्रोटेस्ट पिटीशन दाखिल की थी जिसमे शफीक की पिटीशन में पुनः जांच के आदेश हो चुका है और जल्द ही वे दूसरे मृतकों की भी पिटीशन दाखिल करने की तैयारी कर रहे हैं।

एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) पुलिसिया दमन का शिकार पीड़ितों की कानूनी सहायता के साथ-साथ इन पर हुई हिंसात्मक कारवाइयों का डॉक्यूमेंटेशन भी निरंतर कर रहा है। पिछले महीने, हम ने उत्तर प्रदेश में समान नागरिकता के लिए हुए लोकतांत्रिक विरोधों प्रदर्शनों पर बर्बर कार्रवाई के रूप और विस्तार को उजागर करती और उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा सभी संवैधानिक आदर्शों और मूल्यों को दरकिनार कर शांतिपूर्ण असंतोष व असहमति के दमन के लिए राज्य की सरकारी मशीनरी की मनमानी कार्येशेली पर प्रकाश डालती एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की है।

हम न्यायालय से उम्मीद करते हैं कि वे समान नागरिकता आंदोलन के दमन और उत्पीड़न के सभी मामलों में निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच कराएगी और सभी दोषियों पर उचित वैधानिक कार्यवाही कर पीड़ितों को न्याय देने का काम करेगी।