तस्वीरों में देखें मस्जिद अल अक़्सा और अक़ीदतमंद जो किसी तोप बंदूक बम से नहीं डरे…

निसार अहमद सिद्दिक़ी

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इस्लामी कैलेंडर के महीने रमज़ान के आख़िरी जुमा को क़ुद्स दिवस मनाया जाता है। इस बार क़ुद्स दिवस के रोज़ फ़िलस्तीनियों और इजरायल की सेना के बीच हिंसक झड़प हुई थी। अब सोशल मीडिया पर मस्जिद ए अक़्सा में नमाज़ अदा करने की तस्वीरें वायरल हो रही हैं। मस्जिद ए अक़्सा मुसलमानों के नज़दीक आस्था के प्रमुख केंद्रों में से एक केंद्र है।

अल-अक़्सा मुसलमानों की दूसरी सबसे मुक़द्दस मस्जिद है। काबतुल्लाह से पहले मुसलमान “मस्जिद-ए-अक़्सा” की जानिब रुख करके नमाज़ पढ़ते थे। क़ुद्स सिर्फ फलिस्तीन या फलिस्तीनियों का मसला नही बल्कि दुनियाभर के दो अरब मुसलमानों का मसला है।

सूरह युनूस में अल्लाह कहता है- “तुमसे पहले कितनी ही नस्लों को, जब उन्होंने अत्याचार किया, हम नष्ट कर चुके हैं। हालाँकि उनके रसूल उनके पास खुली निशानियाँ लेकर आए थे। किन्तु वे ऐसे न थे कि उन्हें मानते। अपराधी लोगों को हम इसी प्रकार बदला दिया करते हैं।” ये वादा अल्लाह का अपने बंदों से है। इसी बुनियाद पर ज़ालिम के सामने डट जाना सच्चा इमान है। बैतुल मुक़द्दस मस्जिद अल अक़्सा पर आज की रात जुटे युवाओं का इमान चीख-चीख गवाही दे रहा है कि वह ज़ालिम की किसी तोप, बंदूक या बम से नहीं डरता।

इसी हौंसले से ज़िंदा है फ़िलिस्तीन। हमें पता है सिर्फ़ अल्लाह ही वो ताक़त है, जो हर जुर्म और बर्बरियत का हिसाब चुकता करेगा। फ़िलिस्तीनी आवाम के क़त्ल पर शुतुरमुर्ग बने दुनिया के ठेकेदारों को इज़राइली बर्बरियत नहीं दिखती। क्योंकि उनको मुस्लिमों का नरसंहार एक जश्न और उत्सव की तरह दिखता है। लेकिन हमें अल्लाह और उसके रसूल की बातों पर पूरा भरोसा है। एक दिन वो सूरज ज़रूर निकलेगा।

हमें पता है “कुल्लू नफ़सीन ज़ायकतुल मौत” यानी हर ज़िंदा शख़्स को मौत का स्वाद चखना है। और मौत भी ऐसी जो हक़ और इंसाफ के लिए हो। इमान के लिए हो। एक मोमिन के लिए इससे शानदार क्या हो सकता है कि उसका खात्मा इमान की हालत में हो।

मस्जिद अल अक़्सा गवाह है उस पल की, जब अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने तमाम नबियों की इमामत की थी। एक दिन हम भी यहां सज्दा करेंगे अपने रब को।