दीपक असीम
नगालैंड के मोन ज़िले में धारा 144 लगा दी गई है क्योंकि वहां पर अर्धसैनिक बलों ने निर्दोष नागरिकों पर अंधाधुंद गोलियां चलाईं। बाद में सेना और नागरिकों के बीच संघर्ष हुआ जिसमें कुछ और जाने गईं। नगालैंड के मोन में धारा 144 का औचित्य है, मगर कोई बता सकता है कि मध्य प्रदेश के शहर इंदौर में ऐसा क्या हुआ है, जो यहां बारहमासी धारा 144 रहती है। पिछली अठारह नवंबर को यहां धारा 144 लगाई गई है, जो अगले महीने अर्थात 17 जनवरी 2022 तक प्रभावी रहेगी। नवंबर में ऐसी कौनसी घटना हुई जिसके कारण धारा 144 लगाना उचित समझा गया? सच तो यह है कि इंदौर में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसके कारण यहां धारा 144 लगाई जाए। तो सवाल उठता है कि धारा 144 लगाए रखने का कारण क्या है? हम अनुमान लगा सकते हैं कि इंदौर को किस कारण से सदैव धारा 144 के दायरे में रखा जाता है।
किसी शहर को लगातार और बिना उचित कारण धारा 144 के साये में रखना उस शहर के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है। धारा 144 कायम रखने का मतलब है कि इस शहर के लोग प्रशासन की अनुमति के बगैर रैली, जुलूस, धरना, प्रदर्शन आदि नहीं कर सकते जो किसी भी नागरिक समूह का लोकतांत्रिक अधिकार है। फर्ज कीजिए कि आप मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी की किसी नीति से असहमत हैं और इसके खिलाफ धरना देना चाहते हैं या प्रदर्शन करना चाहते हैं। तो इसके लिए पहले आपको एसडीएम से परमिशन लेनी पड़ेगी। क्या कोई भी कलेक्टर या एसडीएम आपको सरकार के खिलाफ धरना देने की अनुमति देगा? ज़ाहिर है नहीं देगा। आप बिना अनुमति धरना देंगे या प्रदर्शन करेंगे तो प्रशासन आपके खिलाफ अनेक धाराओं में कार्रवाई कर सकता है। जेल भेज सकता है। पिछले कई दिनों से इस शहर में कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ तो इसका कारण यही धारा 144 है। शहर का सारा विरोध प्रदर्शन अब केवल कमिश्नर को ज्ञापन देने तक सीमित होकर रह गया है। अनेक नेता हैं जिन पर धारा 144 के हनन के बीसियों मुकदमे चल रहे हैं।
शहर में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है। इसके कई नेता धारा 144 के शिकार हैं और मुकदमे झेल रहे हैं। खुद शहर अध्यक्ष विनय बाकलीवाल के खिलाफ अनेक मामले लंबित हैं। इसके बावजूद कांग्रेस में धारा 144 के खिलाफ कोई चेतना नहीं है। शहर के लोकतांत्रिक मिज़ाज के लिए यह धारा स्लो पाइजन के जैसी है। सबसे जागरूक और संवेदनशील इस शहर को नपुंसक बनाया जा रहा है। प्रशासन से सवाल पूछना होगा कि बिना कारण धारा 144 क्यों? पुरानी कांग्रेस होती तो नमक के कानून की तरह धारा 144 जानबूझकर तोड़ती और जेल भरो आंदोलन करती। वर्तमान कांग्रेस में लोकतांत्रिक सजगता की बेहद कमी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)