यह खबर ‘द टाईम्स ऑफ़ इंडिया,’ (भोपाल संस्करण) के दिनांक 2 मार्च 2021 के अंक में पृष्ठ 5 कालम 1 पर प्रकाशित हुई है। खबर के अनुसार देश के वैज्ञानिकों ने केन्द्र सरकार के इस निर्णय पर सख्त एतराज किया है कि नई शिक्षा नीति के संबंध में जागरूकता फैलाने का कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को सौंपा गया है। संघ की एक आनुषांगिक संस्था को इस उद्धेश्य से सेमिनार/वेबिनार आयोजित करने का उत्तरदायित्व दिया गया है। इस संस्था का नाम है भारतीय शिक्षण मंडल।
वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह अफसोस की बात है कि नई शिक्षा नीति के संबंध में जानकारी देने की जिम्मेदारी संघ से जुड़े संगठन को दी गई है। वैज्ञानिकों ने इस बात पर भी ऐतराज किया है कि संघ से जुड़े इस संगठन को नीति आयोग की स्टेंडिंग कमेटी के एक उपसमूह में शामिल किया गया है। ऐसा करना इसलिए गलत है क्योंकि संघ का शिक्षण के क्षेत्र में कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं है। सच पूछा जाए तो संघ का शिक्षण से कुछ भी लेना-देना नहीं है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि शिक्षा मंत्रालय ने सभी शैक्षणिक संस्थाओं को एक सर्कुलर के द्वारा यह आदेश दिया है कि वे शिक्षण मंडल द्वारा आयोजित गतिविधियों में शामिल हों। शिक्षण मंडल ने यह भी सूचित किया है कि उसे नीति आयोग ने शिक्षाविदों और शैक्षणिक संस्थानों से जुड़कर पूरे देश में नई शिक्षा नीति के बारे जानकारी और जागरूकता का प्रसार करने का उत्तरदायित्व सौंपा है।
ब्रेकथ्रू साईंस सोसायटी ने केन्द्र सरकार से इस निर्णय को रद्द करने का अनुरोध किया है। “हमें यह जानकर गहन अफसोस हुआ कि इतना महत्वपूर्ण कार्य एक निजी एजेन्सी को सौंपा गया है। सामान्यतः यह कार्य किसी ऐसी शासकीय एजेन्सी को सौंपा जाना था जिसके पदाधिकारी और सदस्य प्रतिष्ठित शिक्षाविद् हों।”
साईंस सोसायटी के अध्यक्ष ध्रुव ज्योति मुखोपाध्याय ने कहा कि “यह संदेह करने की गुंजाइश है कि नई शिक्षा नीति के माध्यम से शिक्षा में हिन्दुत्व के विचार को थोपा जा रहा है। नई शिक्षा नीति में अनेक स्थानों पर हिन्दू युग की शिक्षा व्यवस्था का उल्लेख है। अब लगता है कि पूरी शिक्षण व्यवस्था का भगवाकरण करने का इरादा है।”