जेल से छूटकर आज़ादी के आंदोलन से हट गए थे सावरकर, फिर ताउम्र आज़ादी की लड़ाई के विरुद्ध अंग्रेज़ों के साथ रहे

कृष्णकांत

आये दिन सावरकर को लेकर कुछ न कुछ विवाद होता रहता है। संघ परिवारी चाहते हैं कि सावरकर को देश का नायक माना जाए। गांधी-नेहरू के बरक्स सावरकर को हीरो बनाने का प्रयास वैसा ही है जैसे नरेंद मोदी को दरकिनार करके बीजेपी तेजिंदर बग्गा को अपना नायक घोषित कर दे। या कल को बीजेपी कहने लगे कि मोदी को जबरन हीरो बनाया गया जबकि असली नायक तो साक्षी महाराज थे, या देश भर में साध्वी प्रज्ञा की मूर्तियां लगवा दे और कहे कि इस ‘महान’ कार्यकर्ता के साथ बड़ा अन्याय हुआ।

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सावरकर भी क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल थे, कालापानी गए और इसका सम्मान किया जाना चाहिए। उनके उस योगदान के लिए उन्हें पर्याप्त सम्मान मिला भी है। लेकिन ये ध्यान रखना चाहिए कि जैसे बग्गा एक बीजेपी कार्यकर्ता हैं, वैसे सावरकर भी मात्र एक क्रांतिकारी थे जो जेल से छूटकर आंदोलन से हट गए और ताउम्र आजादी की लड़ाई के विरुद्ध अंग्रेजों के साथ रहे या आंदोलन के खिलाफ रहे। उनके जैसे लाखों क्रांतिकारी इतिहास में गुमनाम हैं जिनके साथ आधा दर्जन माफीनामों की शर्म भी नहीं जुड़ी है, न ही उनपर ‘अंग्रेजों का वफादार रहने की प्रतिज्ञा’ का कलंक है।

सावरकर की जो भी भूमिका रही हो, वह गुजरे दौर की बात है। लेकिन बीजेपी और संघ सावरकर को नायक बनाने के चक्कर में सावरकर और नायकत्व दोनों को बार-बार अपमानित करते हैं। पूरे स्वतंत्रता आंदोलन में से एक ऐसे व्यक्ति को चुनकर आप हीरो बनाने का प्रयास कर रहे हैं जिसपर क्रांतिकारियों के साथ गद्दारी करने के अलावा महात्मा गांधी की हत्या तक का आरोप लगा। सावरकर गांधी की हत्या के आरोप से बरी जरूर हुए थे, लेकिन सरदार पटेल की यह बात भी तथ्य है कि ‘संघ ने ऐसा जहरीला माहौल पैदा किया जिसमें गांधी की हत्या सम्भव हो सकी’।

यह भी ऐतिहासिक तथ्य है कि महात्मा का हत्यारा सावरकर का ही प्रोडक्ट था। बीजेपी वाले आज खुद डेढ़ लोगों का नेतृत्व स्वीकार कर रहे हैं लेकिन पूरे देश का समर्थन पाने वाले महात्मा गांधी का नेतृत्व इनकी आंख की किरकिरी है। गांधी को नकारने वाले आसमान पर थूकने का प्रयास कर रहे हैं जो बार-बार लौटकर इनके मुंह पर आ जाता है।

(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)