सर्वप्रिया सांगवान
धर्म संसद में दिए बयान सिर्फ़ मुसलमानों नहीं, पूरे देश की सुरक्षा और शांति के लिए ख़तरा हैं। इन पर कार्रवाई नहीं होगी तो दुनिया भर में देश और धर्म को किस निगाह से देखा जाएगा, सोच लीजिए। इतना ही ट्विटर पर लिखा और जिसे विस्तार से पढ़ने का बड़ा मन है तो यहाँ पढ़ ले। हर सोशल मीडिया प्लैट्फ़ॉर्म का एक कल्चर होता है और ट्विटर पर टॉक नहीं सिर्फ़ ट्रेंड, टैग, टार्गेट, ट्रोल होता है।
धर्म संसद पर सवाल उठा तो फिर बदले में असद्दुदीन ओवैसी के भाषण पर सवाल उठ रहे हैं। ओवैसी ने अपनी सफ़ाई में ट्विटर पर लिखा है कि वे यूपी में पुलिस के जुल्मों को गिनाते हुए बोल रहे थे कि जब ये सरकार बदलेगी तब तुम्हें कौन बचाएगा।
अगर किसी को उनकी सफ़ाई पर यक़ीन नहीं तो उन पर कार्रवाई की माँग कर सकते हैं, पुलिस में शिकायत कर सकते हैं। उमर ख़ालिद, शरज़ील, मुनव्वर फ़ारूक़ी, आज़म ख़ान की भी शिकायत हुई थी और उन्हें जेल भेजा गया। तो ऐसा तो नहीं है कि ओवैसी को केंद्र सरकार या योगी सरकार से कोई समर्थन मिल रहा है और उनकी शिकायत पर कार्रवाई नहीं हो सकती। कार्रवाई उन पर नहीं होती जिनके पाँव मंत्री छुए, जो खुद मंत्री हो या मंत्री के बेटे हों तो वहाँ तो लोग कार्रवाई की माँग करते हैं, कर रहे हैं। ओवैसी पर नहीं हो रही तो पुलिस और सरकार से सवाल पूछिए।
कोई कहता है कि बहुत सोच-समझ के, शब्द चुन कर ट्वीट लिखा है, नाम बोलो कौनसा धर्म। अगर किसी को मुद्दा पता ना हो तो आपको विस्तार से बताऊँ। दूसरी बात ये कि पत्रकार को या किसी भी नागरिक को सोच समझ कर ही बोलना चाहिए। किसी को भड़काने, generalise करने का काम तो नहीं है अपना। अपने हर शब्द की क़ीमत समझते हैं। वही तो नहीं करने लगेंगे जिसके ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं।
कोई कहता है कि ग़रीबों को इस बात से मतलब नहीं। मिडल क्लास से जुड़ा मुद्दा है और वो इस तरह के लोगों और नेताओं को इस सबके बाद भी सपोर्ट करेंगे। अगर हमारे साथी नागरिक अपने को ख़तरे में महसूस कर रहे हैं, देश में हिंसा की आशंका है, समर्थन की गुहार लगा रहे हैं तो क्या करें। उन्हें आश्वस्त तो कर सकते हैं, फिर चाहे कोई सुने ना सुने। कौन किसको सपोर्ट कर रहा है, उससे आपकी बात का क्या ताल्लुक़। आपका ताल्लुक़ सिर्फ़ मानवाधिकार, लोकतंत्र और संविधान से होना चाहिए जिनकी बदौलत हम सब हैं।
(लेखिका जानी-मानी पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)