सरदार अजीत सिंह: पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन के सर्वेसर्वा को जब उनकी पत्नी ने ही पहचानने से इंकार कर दिया

राजेन्द्र गोदारा

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अजीत सिंह जिन्होंनें आज ही के दिन 23 फरवरी 1907 को पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन की हूंकार भरी थी वैसे उन्हें इस आंदोलन की वजह से कम और शहीद ए आजम भगत सिंह के चाचा होने की वजह से ज्यादा जाना जाता है उनकी जिंदगीं की इससे बड़ी त्रासदी क्या होगी की जब वे 07 मार्च 1947 को 38 साल का देशबदर काटकर भारत लौटे तो उनकी पत्नी व भगत सिंह की चाची हरनाम कौर उन्हें अपना पति मानने से इन्कार कर दिया तो आइये देखें सरदार अजीत सिंह की अजीबो गरीब जिंदगीं की बायोग्राफी

अंग्रेजों द्वारा लाये गये तीन कृषि काले कानून जिनमें एक में उसे खुद उसकी जमीन का मालिक नहीं माना गया था के खिलाफ आज ही के दिन से शुरु किये गये पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन के मुख्य आंदोलनजिवी अजीत सिंह को इस आंदोलन के दौरान दीनबंधू सर छोटूराम व बाल गंगाधर तिलक का अभूतपूर्व साथ मिला 1905 में तिलक ही के साथ इन्हें राजनितिक विद्रोही बताया गया इसी आंदोलन पर उन्हें और तिलक को देशबदर की सजा मिली पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन की देशव्यापी सफलता के कारण अंग्रेज सरकार झूकी और तीनों काले कानून वापिस लिये।

इसी दौरान 21 अप्रेल 1907 को अजीत सिंह ने रावलपिंडी में वो एतहासिक भाषण दिया जिससे उनपर अंग्रेज सरकार ने बागी और देशद्रोही के तहत धारा 124ए लगाई इसपर उन्हें 06 महिने के लिए बर्मा कघ मांडल जेल में डाल दिया गया इसी समय लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने उन्हें आजाद भारत का पहला राष्ट्रपति कहा ध्यान रहे इस समय अजीत सिंह की आयु महज 25 साल थी।

अजीत सिंह की जेल से रिहाई व भगत सिंह का जन्म

28 सितम्बर 1907 को अजीत सिंह जेल से छूटे और इसी दिन भगत सिंह का जन्म हुआ तब भगत को बड़े भागवाला बच्चा बताकर भगतसिंह नाम मिला 1909 में सरदार अजीत सिंह अपना घरबार छोड़ बिना किसी को कुछ बताये विदेश चले गये इरान के रास्ते तूर्की,जर्मनी,ब्राजिल,स्वीटजरलैंड व इटली जापान आदि देशों में रहकर क्रांति के बीज बोये व आजाद हिंद फौज की स्थापना की। कहा जाता है उन्होंने ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस को हिटलर व मुसोलिनी से मिलवाया ( हालांकि नेताजी के जीवन पर लिखी किसी भी किताब में सरदार अजीत सिंह द्वारा मिलवाने का उल्लेख नहीं मिलता ) मुसोलिनी ने उन्हें अपना खास व दिल के नजदीक वाला व्यक्ति बताया था उन दिनों कहते है अजीत सिंह को 40 भाषाओं का ज्ञान था रोम रेडियो को अजीत सिंह ने ही नया नाम आजाद हिंद रेडियो दिया 1918 में अजीत सिंह के गदर पार्टी से नजदीकी सबंध बताये गये बताया गया कि 1914 में वे ब्राजिल चले गये जहा वो 18 साल तक रहे ये तो वो सामान्य बातें है जो सरदार अजीत सिंह के बारे में हम जानते है पर इस दौरान।

सरदार भगत सिंह के परिवार ने अजीत सिंह के बारे में क्या कहा

सरदार भगत सिंह ने जब से क्रांतिकारी की राह पकड़ी तो उन्होंनें जब जब लिखा अपनी दोनों चाची के दुखों का वर्णन किया भगत सिंह के पिता तीन भाई थे एक भगत सिंह के पिता किशन सिंह जिनका निधन आजादी के बाद 1951 को हुआ दूसरे अजीत सिंह जिनकी ये कहानी चल रही है व तीसरे स्वर्ण सिंह जिनका निधन बहुत कम उम्र में 1910 में ही हो गया था।

भगत सिंह लिखते है एक चाची को तो जब से होंस संभाला है सदैव विधवा देखा पर दूसरे चाचा अजीत सिंह की पत्नी हरनाम कौर की दशा सबसे खराब थी जो ना सधवा थी ना विधवा। भगतसिंह लिखते है दोनों चाची सुबह चार बजे उठकर पशूओं को चारा डालने से दिन की शुरुआत करती दिनभर खेतों में काम करती और काम करते समय चूपचाप रहती या जमीन पर देखती रहती जैसे विधवा होना अभिशाप हो और पति का गायब होना उससे भी बड़ा श्राप।

भगतसिंह जब भी घर पर खत लिखते हमेशा लिखते बड़ी चाची कैसी है ? क्या चाचा अजीत सिंह का कोई खत या पत्र मिला या किसी और माध्यम से उनका कोई समाचार मिला। भगत सिंह डरते थे की कहिं उनके चाचा विदेश में ही ना गुजर जाये और उनकी चाची या परिवार को उनके गुजर जानें की खबर भी नां लगे वे अपने मित्रों को और विदेशी संपर्कों को भी लिखा करते अगर उनके चाचा अजीत सिंह का पता ठिकाना या उनके बारे में कोई खबर मिलें तो उन्हें या उनके परिवार को हरहाल में सुचित करें।

वैसे अजीत सिंह के बारे में दो बातें या दो जानकारी किताबों में उपलब्ध है एक अजीत सिंह ने 1912 में अपने ससुर धनपत राय जी को पत्र लिखा था पर पत्र में क्या लिखा ये जानकारी उपलब्ध नहीं है दूसरी भगतसिंह के अपने चाचा के बारे में जानकारी देंनें की मित्रों से की गई अपील पर प्रसिद्ध लेखिका व भारतीय क्रांतिकारीयों की हमदर्द एगनेश स्मेडली ने 1928 में बीएस संधू लाहोर के नाम लिखे पत्र में अजीत सिंह का ब्राजिल का पता एड्रेस बताया पर इसके बाद भी अजीत सिंह के वहां होने की कोई अधिकारिक पुष्टी नहीं हो सकी।

अजीत सिंह की बायोग्राफी के अनूसार द्वितय विश्वयुद्ध के समापन के पश्चात अजीत सिंह के खराब स्वास्थय के बावजूद उन्हें जर्मनी की जेल में भेज दिया गया 1946 में जब ये तय हो गया कि भारत के अंतरिम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु होंगें तब पंडित नेहरू ने खराब स्वास्थय के आधार पर अजीत सिंह की रिहाई का दबाव बनाकर उनकी जेल से रिहाई सुनिश्चित की और खराब सेहत के कारण अजीत सिंह के दो महिने लंदन में रहने व इलाज का प्रबंध किया और ये सब उस नेहरु ने भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह के लिए किया जिस नेहरू को आज भगत सिंह का विरोधी बताया जाता है।

इसके बाद अजीत सिंह 07 मार्च 1947 को भारत आये तो पंडित नेहरु ने स्वंय हवाई अड्डे पर उनका स्वागत किया इस दौरान पंडित नेहरू ने अजीत सिंह को व्यक्तिगत मेहमान का दर्जा दिया 09 अप्रेल 1947 को अजीत सिंह लाहौर गये जहां उनका भावभीना स्वागत किया गया।

अजीत सिंह का पत्नी हरनाम कौर से मिलन

इस दौरान जब अजीत सिंह अपने परिवार से मिलने गये तो सरदारनी हरनाम कौर ने उन्हें अपना पति अजीत सिंह मानने से इन्कार कर दिया 38 साल से विधवा जैसा जीवन बसर कर रही हरनाम कौर ने उनपर सवालों की झड़ी लगा दी भगतसिंह के पिता किशन सिंह व माता विधावति के सामने हरनाम कौर ने उनसे अजीत सिंह होने के सबूत मांगें और उनसे 1909 में गायब होने से पहले के परिवार से सबंधित कई सवाल पूछे उन्होंने जिवित होने के बावजूद परिवार को कभी कोई पत्र या समाचार ना भेजने के बारें में प्रश्न किया और अंत में तो ये तक कहा कि उनके प्यारे भतिजे भगत सिंह के फांसी पर झूलने के बाद भी परिवार को कोई सांत्वना ना भेजना वाला उनका पति अजीत सिंह वो हो ही नहीं सकता।

इसके बाद अजीत सिंह की तबियत फिर खराब हो गई तो उन्हें मशहूर पर्यटक स्थल डलहौजी ले जाया गया जहां स्वतंत्रता के दिन 15 अगस्त 1947 को सुबह 3.30 बजे उनका निधन हो गया कहते है वो देश का विभाजन का दर्द ना सह सके और आजादी के बाद आधी रात को प्रधानमंत्री पंडित नेहरु का भाषण सुनकर जयहिंद कहा और हमेशा के लिए आंखें मूंद ली डलहौजी के पंचपूला में आज भी सरदार अजीत सिंह की समाधी है।

दो दो अजीत सिंह

कहते है सरदारनी हरनाम कौर ने जब अजीत सिंह से आमने सामने बात की तो अजीत सिंह अपने 40 भाषा का ज्ञान दिखाने के लिए कोई विदेशी भाषा में बोलकर धौंस जमानी चाही इसपर हरनाम कौर ने कहा उसका पति अजीत सिंह तो जालंधर व लाहौर के सरकारी स्कुल में पढा पंजाबी बोलने वाला सरदार था हरनाम कौर ने उन्हें अपना पति अजीत सिंह ना मानकर कोई और अजीत सिंह बताया और कहा वो अजीत सिंह हो सकता है आजादी के लिए लड़ने वाला सिपाही हो सकता है पर उसका पति या शहीद भगत सिंह का चाचा अजीत सिंह नहीं हो सकता। अजीत सिंह वाकई दो थे या सरदारनी हरनामकौर ने 38 साल के वैधव्य जीवन से तंग आकर उन्हें अपना पति नहीं माना ये वो यक्ष प्रश्न है जिसका जवाब मेरे पास तो नहीं है अगर आपके पास हो तो।