गोदी मीडिया और झूठ बोलने वाले प्रचारक मंत्रियों के राज में

संजय कुमार सिंह

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केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी का कहना कि ‘विदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले 90% भारतीय भारत में योग्यता परीक्षा उत्तीर्ण होने में नाकाम रहते हैं’ यह पूरी तरह बकवास है। यह एक हताश प्रशासन द्वारा फैलाया गया झूठा विवरण है। यह उस प्रशासन की हताशा है जिसने छात्र समुदाय को हर मोर्चे पर विफल कर दिया है। इनमें से प्रत्येक छात्र ने वास्तव में नीट क्वालीफाई किया है और विदेशी मेडिकल कॉलेजों में इन्हें नीट के रैंक के आधार पर दाखिला मिलता है।

नीट भारतीय छात्रों के साथ खेला जाने वाला मजाक है। 2021 के लिए, क्वालीफाइंग अंक संभावित 720 अंकों में से 138 थे। यह 19% है जो आपको 10वीं कक्षा की परीक्षा भी पास नहीं करा सकता है। इस योग्यता को इसलिए नीचे रखा गया है ताकि अधिक छात्र योग्यता परीक्षा पास करें और 1.25 करोड़ से 1.5 करोड़ तक फीस दे सकने वाले ‘योग्य’ छात्रों की संख्या बढ़ जाए। अगर आप योग्यता को 35% कर दें तो अधिकांश कॉलेज अपनी सीटें नहीं भर पाते हैं। एनएमसी एक भ्रष्ट नियामक संस्था है जो गुणवत्ता के नाम पर कचरे की आपूर्ति को नियंत्रित करता है, कम सीटों की अनुमति देता है, ज्यादा शुल्क लेता है और छात्रों को विदेश भेज देता है।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने जब नीट लागू किया तो तो 90% प्राइवेट कॉलेजों ने एक दिन के भीतर कम से कम 600% फीस बढ़ा दी। जो पहले एक बार में दिया जाने वाला दान था वह अब 5 वर्षों में दी जाने वाली फीस है। 2020 में, परीक्षा देने वाले 15.4 लाख छात्रों में से लगभग 8.7 लाख छात्र क्वालीफाई हुए और 7.5 लाख रैंक वाले छात्र को भी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में जगह मिली। इस छात्र को 21% अंक मिले हैं और यह जल्द ही आपका डॉक्टर होगा। बेहतर रैंक के साथ बेहतर छात्र लेकिन जरूरी नहीं है टॉप किए हों, इस समय यूक्रेन में हैं। क्योंकि, हमने चिकित्सा शिक्षा को पहुंच के बाहर कर दिया है।

हमें बस इतना करने की जरूरत है कि दरवाजे खोलें, योग्यता संरचना, शिक्षण आदि के लिए शर्तें तय करें और घोषणा करें कि केवल 5 साल में सिर्फ 50 लाख रुपये लेने वालों को कॉलेज स्थापित करने की अनुमति दी जाएगी। भीड़ लग जाएगी। लाइसेंस राज ध्वस्त हो जाएगा। कम आपूर्ति से कमाने वाले मारे जाएंगे। सुविधा दीजिए और छात्रों को भारत को प्राथमिकता देने दीजिए। पर दरवाजे नेशनल मेडिकल कौंसिल द्वारा नियंत्रित किये जाते है जो भारत सरकार द्वारा नियंत्रित है।

इसे छोटे-छोटे देशों में बड़ी-बड़ी मूर्ति वाले देश के छात्रों द्वारा दी जाने वाली भारी फीस और राज्य सरकारों से देश में चिकित्सा महाविद्यालयों को जमीन सुलभ कराने की ‘उम्दा नीति’ बनाने की प्रधानमंत्री की अपील के आलोक में पढ़ें और समझें। बाकी दो रुपए वाले ट्रोल भी अपना ज्ञान लुटा रहे हैं।

(Peri Maheshwer की इस टिप्पणी का अनुवाद संजय कुमार सिंह द्वारा किया गया है।)