मानवता को सलाम: एक ऐसा पत्रकार जिसने दुश्मन देश के बच्चों के लिये बेच दिया अपना नोबेल पुरुस्कार

न्यूयॉर्कः नोबेल पुरस्कार दुनिया के सर्वेश्रेष्ठ और प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है। इसे पाने वाला न सिर्फ जिनीयस होता है बल्कि वह इंसानों और उसकी जिंदगी के बेहतरी के लिए कोई न कोई योगदान जरूर देता है। लेकिन अगर नोबेल पुरस्कार विजेता कोई शख्स अपना मेडल भी किसी दूसरे का दुःख-दर्द दूर करने के लिए बेच दे तो उसे आप क्या कहेंगे? हम, बात कर रहे हैं, रूस के एक पत्रकार दमित्री मुरातोव की, जिन्होंने शांति के लिए मिले अपने नोबेल पुरस्कार को बेच दिया है, वह भी किसी दुश्मन देश के लिए!

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10.35 करोड़ डॉलर में बेच दिया पुरस्कार

ज़ी सलाम की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पत्रकार दमित्री मुरातोव ने यूक्रेन के बच्चों की मदद करने और धन जुटाने के लिए अपने नोबेल पुरस्कार की नीलामी कर दी है। यह पुरस्कार सोमवार की रात को 10.35 करोड़ डॉलर में बेच दिया गया। नीलामी से मिलने वाली रकम का इस्तेमाल यूक्रेन में युद्ध से विस्थापित हुए बच्चों के कल्याण पर खर्च होगा। हालांकि, नीलामी का आयोजन करने वाले ‘हेरिटेज ऑक्शन्स’ के प्रवक्ता ने यह जानकारी नहीं दी की इस पुरस्कार को किसने खरीदा है? माना जा रहा है कि किसी दूसरे देश के शख्स ने इसे खरीदा है। करीब तीन सप्ताह तक चली नीलामी प्रक्रिया ‘विश्व शरणार्थी दिवस’ के दिन खत्म हुई।  इससे पहले 2014 में जेम्स वॉटसन का नोबेल पुरस्कार सबसे ज्यादा 47.60 लाख डॉलर में बिका था। उन्हें डीएनए की संरचना की सह खोज के लिए यह पुरस्कार दिया गया था।

पांच लाख डॉलर करेंगे दान

मुरातोव ने एक इंटरव्यू में कहा कि मुझे इस बात की तो उम्मीद थी कि मेरे इस मुहिम को समर्थन मिलेगा, मगर मुझे इतनी बड़ी राशि मिलने की उम्मीद नहीं थी। मुरातोव ने पुरस्कार की नीलामी से मिलने वाली 5,00,000 डॉलर की नकद राशि परमार्थ के लिए दान करने का ऐलान किया था। उन्होंने कहा कि यह राशि सीधे यूनिसेफ को जाएगी। नीलामी खत्म होने के फौरन बाद यूनिसेफ ने कहा कि उसे रकम हासिल हो गई है। ऑनलाइन नीलामी प्रक्रिया एक जून को प्रारंभ हुई थी।

इस काम के लिए मिला था नोबेल

अक्टूबर 2021 में स्वर्ण पदक से सम्मानित मुरातोव ने स्वतंत्र रूसी अखबार ‘नोवाया गजेटा’ की स्थापना की थी और वह मार्च में अखबार के बंद होने के वक्त इसके प्रधान संपादक थे। यूक्रेन पर रूस के हमले के मद्देनजर सार्वजनिक विरोध को दबाने और पत्रकारों पर रूसी कार्रवाई के चलते यह अखबार बंद कर दिया गया था।