सद्दाम हुसैन की बेटी रग़द हुसैन ने इराक़ के लोगों से की ये अपील

इराक़ के राष्ट्रपति रहे सद्दाम हुसैन को 30 दिसंबर को फांसी दी गई थी। सद्दाम हुसैन की मौत के 15 साल बाद उनकी बेटी रग़द हुसैन ने इराक़ के लोगों से एकजुट होने और अरब दुनिया में बदलाव लाने में भूमिका अदा करने के लिए कहा है।

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अपने पिता की बड़ी तस्वीर के आगे बैठकर रग़द ने इराक़ के लोगों से कहा कि वे एक दूसरे से शत्रुता भुलाकर एकजुट हो जाएं। रग़द ने कहा कि संप्रदाय और अपनी पृष्ठभूमि को पीछे छोड़ एक-दूसरे को माफ़ कर दें। रग़द ने अपने हालिया संबोधन में कहा है, ”इराक़ को अरब के किसी गुट में शामिल नही होना चाहिए। मैं आपसे गुज़ारिश करती हूँ कि आपसी मतभेद को भुला दें। सबकी ताक़त एकजुट होगी तभी हम इराक़ के लिए कुछ कर सकते हैं।” रग़द ने अपने पिता की मौत की 15वीं बरसी पर एक रिकॉर्डेड संदेश जारी किया है।

रग़द हुसैन ने भविष्य में इराक़ की राजनीति में आने से इनकार नहीं किया है। रग़द ने कहा कि जिन्होंने अक्टूबर क्रांति में अपनों को खोया है, उन्हें इसके दोषियों को माफ़ नहीं करना चाहिए। रग़द इराक़ी सुरक्षा बलों या ईरान समर्थित विद्रोहियों की प्रर्दशनकारियों पर गोलीबारी का हवाला दे रही थीं।

रग़द हुसैन कौन हैं?

इराक़ के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन की बड़ी बेटी रग़द हुसैन जब स्कूल में पढ़ती थीं, तभी उनकी शादी हो गई थी। तब उनकी उम्र महज़ 15 साल थी। शादी के वक़्त इराक़ और ईरान में जंग चल रही थी। फ़रवरी 1996 में 25 साल की उम्र में रग़द ने अपने परिवार वालों के कहने पर तलाक़ लिया और तलाक़ के दो दिन बाद उनके पति की हत्या कर दी गई।

सद्दाम हुसैन अपनी बेटी रग़द और राना के साथ

रग़द की शादी सद्दाम हुसैन के चचेरे भाई हुसैन कैमेल अल माजिद से हुई थी। हुसैन कैमेल तब सद्दाम हुसैन की सुरक्षा में लगे थे। सद्दाम की दूसरी बेटी राना सद्दाम की शादी भी हुसैन कैमेल के भाई सद्दाम कैमेल अल माजिद से हुई थी।

दोनों बेटियों की शादी, तलाक़ और इनके पतियों की हत्या की बहुत ही दुखांत कहानी है। 2018 में रग़द सद्दाम हुसैन का नाम तत्कालीन इराक़ी सरकार ने मोस्ट वॉन्टेड की लिस्ट में डाल दिया था। रग़द सद्दाम हुसैन ने इसी साल फ़रवरी में अल-अरबिया को दिए इंटरव्यू में अपने निजी जीवन की कई अहम बातें कही थी। रग़द से पूछा गया था कि इस शादी के लिए उन्हें उनके पिता सद्दाम हुसैन ने दबाव डाला था या अपने मन से किया था?

जवाब में रग़द ने कहा था, ”मेरे पिता ने अपने पाँच में से किसी भी बच्चे पर शादी का दबाव नहीं डाला। उनकी बेटियों के सामने किसी ने शादी के लिए प्रस्ताव भी रखा, तो उन्होंने हमलोगों से पूछा कि क्या करना है। उन्होंने पूरी आज़ादी दी थी। मैं तब किशोरी थी। गर्मी के दोपहर का वक़्त था। मेरे पिता ने दरवाज़ा खटखटाया और रूम में आए। मैं झपकी ले रही थी और उन्होंने बहुत प्यार से जगाया। वो मेरे बगल में बिस्तर पर बैठ गए। उन्होंने हालचाल पूछा। फिर उन्होंने पूछा कि तुम्हारा एक प्रेमी है? उन्होंने उसका नाम भी बताया।”

रग़द ने कहा था कि शादी तो परिवार के भीतर ही होनी थी, इसलिए यह बहुत असहज स्थिति नहीं थी। ‘मेरे पिता ने कहा कि तुम रिश्ता स्वीकार करने या ठुकराने के लिए स्वतंत्र हो। जब वो ये सब कह रहे थे, तो मैं लजा रही थी। तब उन्होंने कहा कि बेटी तुम अपना फ़ैसला अपनी माँ को बता देना। हुसैन कैमेल अल-माजिद मेरे पिता के रक्षा दल में थे, इसलिए उनकी मुलाक़ात सद्दाम हुसैन से रोज़ होती थी। मेरे पिता बाक़ी के अंगरक्षकों को लंच पर बुलाते थे, जिसमें ये भी शामिल रहते थे।”

सद्दाम हुसैन की बड़ी बेटी रग़द सद्दाम हुसैन अपने पति हुसैन कैमेल अल माजिद के साथ. हुसैन कैमेल की 1996 में हत्या कर दी गई थी

”हम दोनों एक दूसरे को प्यार करने लगे थे। मेरी माँ को पता था। तब मैं बच्ची ही थी, लेकिन प्यार जल्दी ही शादी में तब्दील हो गया। मैं तब स्कूल में ही पढ़ती थी। शादी के बाद भी मैंने पढ़ाई जारी रखी और ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी की। मेरे पति पढ़ाई के पक्ष में नहीं थे लेकिन मैंने पढ़ाई पूरी की। शायद मेरे पति ने ऐसा ईर्ष्या के कारण किया हो। इराक़ में तब सुरक्षा को लेकर कोई दिक़्क़त नहीं थी इसलिए स्कूल नहीं जाने देने की ज़िद करने के पीछे ये कोई कारण नहीं हो सकता। हालाँकि मेरे पति मुझे प्यार और आदर दोनों देते थे। वे मेरे माता-पिता का भी आदर करते थे।”

‘पिता की मोहब्बत की तुलना नहीं’

रग़द ने कहा था, ”मेरे पिता मुझे बेपनाह प्यार करते थे। इसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। उन्होंने जितना प्यार दिया, उसकी तुलना न तो पति से की जा सकती है और ना ही मेरे बच्चों से।”

अपनी पत्नी, बेटियों, बेटों और दोनों दामाद के साथ.

रग़द ने कहा था कि इराक़-ईरान युद्ध के दौरान वो छोटी थीं और स्कूल में पढ़ती थीं। उस जंग से जुड़ी अपनी यादों को साझा करते हुए रग़द ने बताया, ”तब हमलोग का एक और घर था। वहाँ भी हमलोग आ-जा सकते थे। एक दिन मैं स्कूल नहीं गई, क्योंकि भारी बमबारी हुई थी। मेरे पिता सेना की ड्रेस में आए और बोले कि तुम स्कूल क्यों नहीं गई। मैंने युद्ध के ख़तरों को लेकर कहा, तो उनका जवाब था कि इराक़ के बाक़ी बच्चे भी स्कूल जा रहे हैं, तुमको भी जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर तुम स्कूल जाओगी, तो स्कूल में पढ़ने वाले बाक़ी के बच्चों का साहस बढ़ेगा। तुम्हें उनका भी ख़्याल रखना चाहिए। मेरे पिता चाहते थे कि हमें सद्दाम हुसैन की संतान होने की वजह से कोई विशेषाधिकार ना मिले। मेरे भाइयों की जान तो इराक़ की रक्षा में ही गई। ”

रग़द ने कहा था कि वो राजनीतिक फ़ैासलों में शामिल नहीं होती थीं, लेकिन कई मानवतावदी फ़ैसलों का हिस्सा रहीं। रग़द ने कहा कि कई मामलों में मेरे पति से भी बहस होती थी।

पति और पिता में संघर्ष

रग़द ने अपने पति हुसैन कैमेल और पिता सद्दाम हुसैन के रिश्तों में आई कड़वाहट पर भी बात की थी। रग़द ने कहा था, ”मैं कोई अकेली नहीं थी, जिसके पति मारे गए। तब इराक़ में बड़ी संख्या में महिलाओं ने अपने आदमियों को खोया। इनमें उनके पति, पिता और बच्चे भी शामिल थे। मेरे पति 1995 के अगस्त महीने में जॉर्डन गए। उन्होंने जाते वक़्त मुझसे संपर्क किया था। मुझे लगा कि अगर वे यहाँ रहेंगे, तो ख़ून ख़राबा होगा। ऐसा परिवार के बीच ही होता। इसीलिए मैंने उनके इराक़ छोड़ने के फ़ैसले का समर्थन किया। सद्दाम हुसैन की बेटी होने के नाते यह आसान नहीं था कि मैं दूसरे मुल्क जा सकूँ। हालाँकि जॉर्डन में हमारा स्वागत गर्मजोशी से हुआ। कभी ऐसा नहीं लगा कि मैं बाहरी हूँ। लेकिन जब प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर इसे सार्वजनिक किया गया, तो मुझे इसका अंदाज़ा नहीं था कि क्या बात कही जाएगी।”

रग़द ने इस इंटरव्यू में कहा था, ”जॉर्डन जाने के बाद प्रेस कॉन्फ़्रेंस में क्या कहा जाएगा, इसका मुझे कोई इल्म नहीं था।” इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में हुसैन कैमेल ने सद्दाम हुसैन के ख़िलाफ़ बोला था। हुसैन कैमेल ने कहा था कि उनके जॉर्डन आने से सद्दाम का शासन हिल गया है। कैमेल ने इराक़ के सैनिकों से सत्ता परिवर्तन के लिए तैयार रहने को कहा था।

सभार बीबीसी