रिज़वाना ख़ातून: बिहार की वह होनहार छात्रा जिसने मेडिकल की पढ़ाई बीच में ही छोड़, शुरू की दहेज़ के ख़िलाफ जंग

सुल्ताना परवीन

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वो बहुत मुश्किलों भरा पल था, जब घर वालों ने रिज़वाना ख़ातून से कहा कि थोड़ी सी ज़मीन है, उसे बेच कर या तो हम तुम्हें पढ़ा सकते हैं या उसे बेच कर जो पैसे मिलेंगे, उसे दहेज में देकर तुम्हारी शादी कर सकते हैं। अब तुम सोच लो, तुम्हें क्या करना है।

घर वाले बोले अगर पढ़ना चाहोगी, तो तुमको स्टांप पेपर पर लिखकर देना होगा कि आगे तुम खर्च नहीं करवाओगी, मसलन दहेज का खर्च। छोटी सी उम्र में रिज़वाना ने बड़ा फैसला लिया और स्टांप पेपर पर वो सब लिख दिया, जो उसके घर वाले लिखवाना चाहते थे और दहेज के लिए रखी गई ज़मीन को बेचकर जो पैसे मिले, उससे एमबीबीएस करने रूस के किरगिस्तान चली गयीं।

छोटे से किसान की बेटी

पूर्णिया जिले के छोटे से गांव लतामबाड़ी के छोटे से किसान परिवार की बेटी रिज़वाना दहेज के खिलाफ आज एक साल से मुहिम चला रही हैं और लोगों को जागरूक कर रही हैं। रिज़वाना स्कूल, कॉलेज, कोचिंग संस्थान जाती हैं और छात्र-छात्राओं को दहेज नहीं लेने और नहीं देने के लिए शपथ दिलाती हैं। वो हर छात्र छात्रा से एक फॉर्म भरवाती हैं। इतना ही नहीं, वो हर एक को एक पौधा लगाने और धुम्रपान नहीं करने की भी शपथ दिलाती हैं।

रिज़वाना ख़ातून कहती हैं कि वो एक साल से दहेज के खिलाफ मुहिम चला रही हैं। इस बीच उन्होंने सैकड़ों लोगों को इस अभियान से जोड़ा है। रिज़वाना के पढ़ने और इस अभियान को शुरू करने की कहानी साहस से भरी हुई है।

रिज़वाना के पिता मोहम्मद सज्जाद गांव में एक छोटे से किसान हैं और मां रसीद ख़ातून घरेलू महिला हैं। रिज़वाना ख़ातून कहती हैं कि 2011में जब उसने मैट्रिक की परीक्षा पास की, तो उसी समय उसकी खाला की शादी हुई। खाला की शादी में ज़मीन बेचकर तीन लाख दहेज दिया गया। रिज़वाना खाला के साथ उनके ससुराल गई थीं। वहां पर उन्होंने देखा कि ससुराल वाले खाला को और दहेज के लिए तरह-तरह से प्रताड़ित करते थे। ज़मीन और पैसे के साथ तरह-तरह के सामान की मांग करते थे। तब उसे लगा कि जो उसकी खाला के साथ हो रहा है, वो उसके साथ भी तो हो सकता है। वहां से लौटकर उसने पढ़ने की ठानी और 2014में देर से सही, मगर इंटर पास किया।

खाला की हालत देखकर

अपनी खाला की हालत को देखकर वो हर हाल में पढ़ना और कुछ करना चाहती थी। लेकिन पढ़ने के लिए पैसे नहीं थे। मैट्रिक पास करने पर मुख्यमंत्री प्रोत्साहन राशि योजना के तहत दस हजार मिले थे। उन्हीं पैसों से इंटर किया। इंटर पास करने के बाद भी इसी योजना के तहत फिर से दस हजार मिले। उस पैसे एलन से किताबें मंगवाई और पूर्णिया में ही मामा के घर रहकर खुद से नीट की तैयारी में लग गई। मेडिकल और नीट की तैयारी के लिए वो कोटा जाना चाहती थीं, लेकिन पैसों के अभाव में जा नहीं सकीं। पूर्णिया में तैयारी करने लगीं। खुद से तैयारी की और नीट पास कर लिया। इसी बीच शादी के लिए रिश्ते भी आने लगे थे। मगर जो भी आता पहले दहेज की बात करता। पूछता पिता छोटे किसान हैं कि बड़े किसान हैं।

ज़मीन बेच कर लिया मेडिकल में दाखिला

रिज़वाना पढ़ना चाहती थीं, लेकिन घर वाले चाहते थे कि उसकी शादी हो जाए। उन्होंने अम्मी रसीदा ख़ातून से कहा मेरी दहेज के लिए जो ज़मीन रखी है, उसे बेचकर मुझे पढने के लिए पैसे दीजिए। घर वाले नाराज हो गए। जब रिवाजना जिद करने लगी, तो कहा गया तुम्हें स्टांप पेपर पर लिखकर देना होगा, आगे तुम पैसे नहीं लोगी। क्योंकि हम या तो तुम्हारी शादी के लिए दहेज दे सकते हैं या पढाई के लिए पैसे दे सकते हैं।

इस पर रिज़वाना कहती हैं कि उन्होंने स्टांप पेपर पर जो भी कहा गया, लिख कर दे दिया। उसके बाद रूस के किरगिस्तान में एमबीबीएस में दाखिला लिया। पहली बार जब वापस आईं, तो फिर रिश्ते की बात शुरू हुई। इस बार रिश्ते वाले पहले दहेज की नहीं, उसकी पढाई की बात करते थे। लोगों के इस बदले नजरिये से रिज़वाना को लगा कि अगर लड़की पे, तो उसे वो हर चीज हासिल हो सकती है, जो वो चाहती है। पढ़ने का फायदा अगर उसे मिला है, तो दूसरों को भी मिल सकता है। वहीं से उन्होंने बेटी को पढाने के लिए और दहेज के खिलाफ मुहिम शुरू करने की ठानी। और हर लड़की से कहने लगीं कि अपने मां बाप से कहो, जो पैसे तुम्हारे दहेज के लिए रखे हैं, उसे तुम्हारी पढाई पर खर्च करें।

बेटी को पढ़ाना ज्यादा जरूरी

एमबीबीएस की छात्रा रिज़वाना ख़ातून कहती हैं कि बेटे को पढाने से ज्यादा जरूरी है कि हर मां-बाप बेटी को पढाए। ये इसलिए भी जरूरी है कि वो दो घरों को संभालती है। वो कहती हैं कि हर लड़की को आत्मनिर्भर बनना चाहिए। ताकि कोई उसे उसके ससुराल में प्रताड़ित और परेशान नहीं कर सके। उन्होंने देखा है कि जो लड़कियां आत्म निर्भर नहीं है, वो ससुराल कैसे घुट-घुट कर जी रही हैं।

कई जिलों में जागरूकता अभियान

रिज़वाना ख़ातून ने अपना अभियान घर से शुरू किया। अपने मामा मोहम्मद मुर्तज़ा और भाई मोहम्मद एहसान को जोड़ा। जब भी वो पूर्णिया से बाहर जाती हैं, ये दोनों उनके साथ होते हैं। रिज़वाना ने पूर्णिया जिले के कई स्कूल और कॉलेज में जाकर छात्र छात्राओं को दहेज नहीं लेने और दहेज नहीं देने का शपथ दिला चुकी हैं। इसके अलावा रिज़वाना सहरसा और किशनगंज के स्कूल कॉलेज में ये मुहिम चला चुकी हैं। उनके अभियान में उसकी दोस्त रोगिनी कुमारी और उलकी एक खाला रोहाना बानो भी जुड़ी हैं।

रोहाना पेशे शिक्षिका हैं। वो कहती हैं कि जब रिज़वाना पढाई पूरी करने रूस चली जाएगी, तो उसकी मुहिम को हर हाल में जारी रखेंगी और स्कूल कॉलेज में जाकर छात्र छात्राओं के अलावा समाज के हर तबके के लोगों को जागरूक करेंगी।

रूस में जारी रहेगा अभियान

रिज़वाना ख़ातून कहती हैं कि जल्द ही वो अपनी पढाई पूरी करने फिर रूस के किरगिस्तान चली जाएंगी। वहां पर अपने अभियान को जारी रखेंगी। वहां पर बहुत से भारतीय लड़के और लड़कियां पढ़ती हैं। यहां पूर्णिया में सिर्फ आस-पास के लोगों को जागरूक कर रही हैं। रूस में तो हर राज्य के छात्र छात्राओं को जागरूक करने और अपने अभियान से जोड़ने का मौका होगा। उनके अभियान का आसमान रूस में और बड़ा हो जाएगा।

(सभार आवाज़ दी वाइस)