शैफ़ाली रफीक़
फिरदौसा बानो 2020 में पड़ने वाली ईद की सुबह अपने 7 साल के बेटे आतिफ और 10 साल की बेटी मेहविश के लिए सेवइयां वग़ैरा बनाने के लिये जल्दी सोकर उठीं। लेकिन उनकी मेज़ खाली थी, उनके पास पुराने कपड़े थे और बच्चों को बहलाने के लिये खिलौने भी नहीं थे। फिरदौस के पती रियाज़ अहमद भट्ट को जेल गए लगभग सात महीने बीत चुके थे। 35 वर्षीय रियाज़ अहमद भट्ट को अगस्त में जम्मू और कश्मीर की सीमित-स्वायत्तता को निरस्त करने के दो महीने बाद 27 अक्टूबर 2019 को हिरासत में लिया गया था। उन पर आतंकियों को खाना खिलाने का आरोप था।
फिरदौस बानो के लिये अपने घर पर अकेलापन “दर्दनाक” था क्योंकि वह अपने पति को दर्द में देखना नहीं चाहती थी। बानो कहती हैं कि, “मैं दूसरे कमरे में जाती और उसे बंद करके मेरा दिल रोता। बानो के लिए कुछ भी आसान नहीं था, उन्होंने सामाजिक कलंक से लड़ना जारी रखा क्योंकि उन्हें अपने बच्चों और राज्य की मशीनरी को भट की रिहाई को सुरक्षित करने के लिए उठाया था।
दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में करीमाबाद में उनके आवास पर रात 11 दो स्थानीय लड़के भट्ट को बाहर बुलाते हुए उनके घर के अंदर आए। आधी नींद में उसने अपनी पत्नी से कहा कि वह वापस बैठ जाए और चिंता न करे। वह लगभग पचास सरकारी बलों के कर्मियों के एक समूह को देखने के लिए भूरे रंग के लोहे के दरवाजे से बाहर चला गया। भट पर कुछ समय पहले दो आतंकवादियों को खाना खिलाने का आरोप लगाया गया था- इस आरोप से उन्होंने इनकार किया। आधे घंटे में जब वह नहीं लौटा तो फिरदौसा अपनी बेटी को लेकर रात में सरकारी बलों की तलाश करने की कोशिश में भटकती रही। लेकिन उन्हें सफलता नहीं मली।
बानो बताती हैं कि वह रात उनके लिए सबसे लंबी रात थी। कुछ दिनों बाद वह पुलवामा पुलिस स्टेशन गई। तो उन्होंने देखा कि रियाज़ अहमद भट्ट को पुलिस वाहन के अंदर श्रीनगर सेंट्रल जेल ले जा रही थी। बानो बताती हैं कि हम सब रो रहे थे, यहां तक उनकी बेटी ने उनके कपड़े फाड़ दिए। भट पर कठोर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसके तहत पुलिस दो साल तक बिना किसी मुकदमे के किसी व्यक्ति को दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है।
फिरदौस बताती हैं कि छह महीने बाद, उन्हें जम्मू की कोट भलवाल जेल में स्थानांतरित कर दिया गया। उसके बाद मुलाकातें भी बंद हो गईं। धारा 370 के निरस्त होने के बाद अधिकारियों ने देश भर की विभिन्न जेलों में बंदियों को स्थानांतरित कर दिया। रियाज़ अहमद भट्ट के जेल जाने के बाद फिरदौस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा, हालांकि कभी-कभी उनके रिश्तेदारों से उन्हें राशन आदि मिलते थे लेकिन ये कुछ दिनों तक ही चल पाते थे। फिरदौस के मुताबिक़ “ये दो साल मुझे पचास साल की तरह महसूस हुए हैं”।
हमारे लिए मुश्किल होते चले गए हालात
बानो बताती हैं कि “हर दिन, हर रात और हर पल हमारे लिए मुश्किल थे” बानो के माता-पिता की आर्थिक स्थिती भी अच्छी नहीं है, इसलिये उन्हें मायके से भी कोई विशेष सहायता नहीं मिल पाई। गांव के कुछ ज़िम्मेदारों ने बानो की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिये उन्हें भरोसा दिलाया कि वे पैसा इकट्ठा करके उनके परिवार को सहोयग करेंगे। फिरदौस कहती हैं कि “अगर मेरे पति यहाँ होते, तो मैं जितना चाहती थी, उतना खर्च कर देती।” फिरदौस बानो का घर हर गुजरते दिन के साथ सन्नाटे में क़ैद होता गया। बानो पर एक नहीं कई ज़िम्मेदारियां थीं, उन्हें अपने पति कि रिहाई की लड़ाई भी लड़नी थी, साथ ही यह भी ध्यान रखना था कि भट की अनुपस्थिति में बच्चों की परवरिश पर कोई असर न पड़े। बानो को अपने परिवार के पालन पोषण की फिक्र हमेशा सताती थी।
फिरदौस बताती हैं कि “मैं रातों की नींद हराम करके खामोशी से आंसू बहाती हूं,एक रोज़ जब उनके बेटे ने एक खिलौना मांगा जो उसके दोस्त के पास था, तो बानो खिलोना नहीं कर दे पाई और टूट गई। उन्होंने कहा “मैंने वादा किया था कि मैं इसे उसके लिए खिलोना लाऊंगी लेकिन उसने फिर कभी नहीं पूछा।” अपने दर्द और जिंदगी की मुसाबीतों पर बात करते हुए फिरदौस बताती हैं कि “कभी-कभी यह इतना असहनीय होता था कि मैं जहर पीने के बारे में सोचती, लेकिन फिर मैं अपने बच्चों को देखती।”
“सब कुछ बदल गया”
अदालत ने 18 मई 2021 को रियाज़ अहमद पर लगे पीएसए को रद्द कर दिया था, लेकिन इसके बावजूद 8 जून 2021 को रिहा होने से पहले उन्होंने पुलवामा पुलिस स्टेशन में उन्नीस दिन और बिताए। अपने तीन कमरों के घर के एक कमरे के कोने में बैठे भट अपनी पत्नी और उनके संघर्ष को धैर्यपूर्वक सुन रहे थे, उनके पास सिवाय आंसुओं के कुछ और नहीं था, वे अपने आँसुओं को रोक नहीं पाए। भट्ट के मुताबिक़ क़ैद से लौटने पर एक बार के लिए, वे अपने मोहल्ले … अपने घर को नहीं पहचान सके। वे बताते हैं कि “ऐसा लगा जैसे सब कुछ बदल गया हो, मैं अपने गांव को नहीं पहचान सका,”यह एक भावनात्मक एहसास था।” भट्ट कहते हैं कि वह उस दिन का इंतजार कर रहा था जब वह अपने बच्चों और पत्नी को देखेंगे।
फिरदौस ने अपनी बेटी के हवाले से बताया कि शुरुआत में उनकी बेटी अपने पिता को पहचान नहीं पाई थी। हालांकि बाद में, वह इतनी उत्साहित थी कि उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह रोए या हंसे। बानो बताती हैं कि “मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि मेरे पति आखिरकार घर वापस आ गए।” बानो ने कहा, “न तो उन्होंने मुझसे पूछा कि घर चलाना कितना मुश्किल है और न ही मैंने उनसे जेल के बारे में पूछा।” भटट् बताते हैं कि जेल में, वह हर सुबह उठते थे वह अपने सेल को जलता हुआ महसूस करते थे। रियाज़ ने बानो से कहा कि उसका घर पहले ही जल चुका है और उनके पास आंसू बहाने के सिवा कुछ नहीं बचा है।
(The Kashmir Walla पर अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस रिपोर्ट का अनुवाद दि रिपोर्ट की टीम द्वारा किया गया है, सभार दि कश्मीर वाला)