महंगाई, बेरोजगारी से ध्यान हटाने के लिए दंगों का सहारा

निराशा मानवीय स्वभाव है मगर हम भारतीयों पर ज्यादा असर करती है। इन दिनों हर जगह एक ही चर्चा है कि नफरत का जहर नीचे तक पहुंच गया है अब कुछ नहीं हो सकता। कांग्रेस जो देश की मुख्य विपक्षी पार्टी है निराशा के गहरे अंधकार में डूबी हुई है। उसके ज्यादातर नेताओं को लगता है क्या होगा? कुछ नहीं हो सकता। इसी कमजोर मानसिकता में वह उत्तराखंड, पंजाब के चुनाव हार गई। जिन बाकी तीन राज्यों में चुनाव थे वहां भी अपनी क्षमता के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाई। अब गुजरात के लिए उसे भाड़े के सैनिक (मर्सनरीज) पर भरोसा करना पड़ रहा है। प्रशांत किशोर सब के लिए काम कर चुके हैं। पीआर ( प्रचार तंत्र) बहुत मजबूत है। कांग्रेस की अभी हाल ही में खूब आलोचना कर चुके हैं। कांग्रेस में लोकतंत्र नहीं है कहने से लेकर गांधी नेहरू परिवार को हटाने से ही पार्टी बचेगी भी कह चुके हैं। मोदी की जी भर के तारीफ करने के साथ यह भी कह चुके हैं कि विपक्ष का नेतृत्व करने का कांग्रेस के पास कोई दैवीय अधिकार नहीं है। राहुल की सारी मेहनत और सड़कों के संघर्ष को दरकिनार करते हुए टीवी एंकरों की तरह उन्हें केवल ट्वीट और केडिंल मार्च करने वाला निरूपित कर चुके हैं।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

मगर सोनिया गांधी ने उन्हें घर पर बुलाकर उनसे बात की। कांग्रेस के और भी वरिष्ठ नेताओं के साथ। मतलब एक अकेला प्रशांत किशोर और उससे बात करवे के लिए पूरा बोर्ड आफ डायरेक्टर। बड़े आदमी से बात ऐसे ही की जाती है। यह अलग बात है कि अभी कांग्रेस के मीडिया विभाग के चैयरमेन रणदीप सुरजेवाला ने उन्हें एक मामूली सलाहकार बताते हुए कहा था कि हम ऐसे लोगों की बात नहीं सुनते हैं। मगर पता नहीं भारत के इस सबसे ज्यादा ओवररेटेड चुनाव विशेषज्ञ ने क्या साबित कर दिया कि कांग्रेस अध्यक्ष उनसे बात कर रहीं हैं।

May be an image of 1 person and text

खैर वह जो भी हो। कांग्रेस के लिए जीत जरूरी है। और वह इसे समझ रही है यह अच्छी बात है। क्योंकि जिस निराशा का जिक्र किया वह जीत से ही दूर हो सकती है। अब इस बात का कोई महत्व नहीं है कि वह जीत आपके सिद्दांतों, कार्यक्रमों, देश को जोड़े रखने के मजबूत इरादों की वजह से मिलती है या किन्हीं ट्रिक्स से। जीत इस समय संजीवनी है। गुजरात पिछली बार कांग्रेस जीतते जीतते रह गई थी। इस बार फिर वहां मौका है। लोगों की नाराजगी चरम पर है। आम आदमी पार्टी ने इसे भांप लिया है। वह बड़ी तैयारी के साथ जा रही है। जाहिर है कांग्रेस के ही वोट काटेगी। इसलिए इस बार कांग्रेस को ज्यादा रणनीतिक कुशलता से वहां लड़ने की जरूरत है। हार्दिक पटेल क्यों नाराज चल रहे हैं और जब अपने खिलाफ इतना बोलने वाले प्रंशात किशोर को साथ लाया जा सकता है तो उन्हें क्यों नहीं? जैसे सवाल का कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं है। दरअसल कांग्रेस के पास रोज रोज के सवालों को सुनने वाला ही कोई नहीं है। आज बड़े बड़े पुराने नेताओं तक को नहीं पता कि वे कुछ भी कहने के लिए किस से बात करें। तमाम नेता कहते हैं कि उन्हें कोई बात सोनिया या राहुल तक पहुंचाना होती है समझ नहीं पाते कि किस से कहें। जब बड़े नेताओं का यह हाल है तो हार्दिक जैसे नए नेताओं का दर्द समझा जा सकता है। मगर प्रशांत किशोर जैसे फ्री लांसर सीधे सीधे सोनिया को प्रजेन्टेशन दे आते हैं।

इस आदमी में क्या खूबी है यह आज तक किसी की समझ में नहीं आया। फिल्म चले या पिट जाए यह सूपर डूपर स्टार बना रहता है। वोटर की कौन सी नब्ज इसके हाथ में है जो दबाते ही वह इसके कहने से वोट देने लगती है और अगर नहीं भी देती तो भी इसका समर्थन करने वाला मीडिया यह साबित कर देता है कि वोटर में ही, राज्य में ही, या पार्टी में ही कोई गड़बड़ी थी, पीके तो कामयाब है।

जाहिर ऐसे चमत्कारी व्यक्ति पर कमजोर लोग ही ज्यादा भरोसा करते हैं। हम अपने आसपास रोज ही देखते हैं कि सफलता की गारंटी वाले ऐसे चमत्कारी बाबाओं के पास सामान्य लोगों से लेकर पढ़े लिखे तक सब जाते हैं। सब तरफ से निराश लोगों के लिए उम्मीद का एक मात्र दवाखाना। कांग्रेस इस समय सबसे निराश पार्टी है। चमत्कार की तलाश में उसका भटकना हम भारतीयों की मनोदशा के अनुकूल ही है।

मगर सच यह है कि चमत्कार होते नहीं हैं। करना पड़ते हैं। खुद अपने लिए। सामान्य निराश लोगों की बात छोड़ दीजिए मगर नेतृत्वकारी शक्तियां अपनी हिम्मत और लगातार प्रयासों से बाजी पलट कर चमत्कार करती हैं। अभी एक लोकसभा और चार विधानसभा चुनाव चार अलग अलग राज्यों में हुए। सब अलग मिज़ाज के राज्य थे। मगर सब जगह से एक ही जैसे रिजल्ट आए। भाजपा हार गई। अभी पिछले दिनों हिमाचल में ऐसे ही उप चुनाव में हार के बाद वहां के भाजपा मुख्यमंत्री ने कहा था कि मंहगाई ने उन्हें हरा दिया। भाजपा ने उनकी काफी लानत मलामत की थी। उसके बाद भाजपा नेताओं ने मंहगाई इशु ही नहीं है और मंहगाई के कारण और फायदे बताना शुरू कर दिए थे। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को बदलने की हवा बना दी गई। अब कोई हार का कारण मंहगाई नहीं बता सकता।

लेकिन जो सच है वह सच है। महंगाई अपना असर दिखा रही है। उसे कम करने की कोशिश नहीं हो रही बल्कि लोग उसे भूल जाएं इसलिए हिन्दू मुसलमान की आग को और तेज किया जा रहा है। रामनवमी पर मध्य प्रदेश से जैसे शांत राज्य से लेकर, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल में जुलूस को लेकर माहौल आक्रामक बनाया गया। उसके बाद हनुमान जयंती पर दिल्ली के जहांगीर पुरी में। धार्मिक जुलूस हमेशा निकलते रहे हैं। हिन्दू मुसलमान सब शामिल होते हैं। कभी कोई विवाद होता ही नहीं था। न उसमें डीजे पर भड़काऊ गाने होते थे। न उसमें तलवारें लहराई जाती थीं। न कभी पत्थरबाजी होती थी।  मगर अब राम की यात्रा का उपयोग भी विवाद के लिए किया जा रहा है जिनके नाम पर अयोध्या में मंदिर का मुसलमानों ने पूरा समर्थन किया। उसके निर्माण के लिए चंदा दिया। और इसके लिए भाजपा और आरएसएस दोनों ने उन्हें धन्यवाद दिया। और इससे बहुत पहले विश्व कवि माने जाने वाले सबसे बड़े विद्वान शायर माने जाने वाले अल्लामा इकबाल ने कहा था-

“है राम के वजूद पै हिन्दोस्तां को नाज

अहले नजर समझते हैं उसको इमामे हिन्द।“

इनके जूलूस का कोई विरोध कर सकता है? पत्थर  किसने फेंके इसकी उच्च स्तरीय जांच होना चाहिए। डीजे पर क्या बज रहा था? सबकी जांच होना चाहिए। सबसे बड़ा सवाल यह है कि तनाव और दंगों से राजनीतिक लाभ किसको है? महंगाई और बेरोजगारी से  लोगों का ध्यान कौन हटाना चाहता है? प्रधानमंत्री शांति की अपील तक नहीं कर रहे।

दोषियों को किसी कीमत पर नहीं बख्शा जाना चाहिए। पुलिस, प्रशासन, न्यायालय को यह इनश्योर करना चाहिए। लेकिन फैसला बुलडोजर से नहीं होना चाहिए। बुलडोजर केवल मकान और दुकानें ध्वस्त नहीं कर रहा वह न्याय पर से लोगों के विश्वास की भावना को भी ध्वस्त कर रहा है। न्याय से ही अगर विश्वास उठा दिया जाएगा तो फिर क्या बचेगा। मीडिया ने कह दिया उसने थूका, वह थूक रहा है। कई पत्रकार कहने लगे हमने देखा लेकिन फिर क्या हुआ सरकार और मीडिया सब गलत निकले। सुप्रीम कोर्ट तक ने मीडिया को लताड़ा। मगर अहंकार में कुछ नहीं दिख रहा है। हिन्दू मुसलमान की एक  धुन हाथ में  आ गई है उसे बजाए जा रहे हैं। मगर जल्दी ही यह साबित होगा कि इस राग विध्वंस में हमेशा किसी को काबू की ताकत नहीं है। शांत प्रदेश मध्य प्रदेश में करीब 17- 18 साल से भाजपा का शासन है। लोगों ने वोट दिए। मगर अब इसे अशांत करके वोट लेने की राजनीति क्या कामयाब होगी? लोग खुद ही वोट दे रहे थे। मगर अब जैसा कि गांव में कहते हैं और मध्य प्रदेश गांवों का खेती किसानी का ही राज्य है कि चलते बैल को कोंच रहे हैं। जो वोट शांति से मिल रहे थे उन्हें अशांत करके लेने की कोशिश क्या गुल खिलाएगी यह देखना दिलचस्प होगा।

दरअसल चमत्कार की जरूरत अब भाजपा को है। महंगाई, बेरोजगारी के प्रभाव को गायब करने के लिए। कांग्रेस को तो सीधे बल्ले से ( स्ट्रेट बेट) बस खेलते रहना चाहिए। हर पारी नई पारी होती है। इसी तरह हर चुनाव नया चुनाव होता है यह सोचकर। निराशा हार को सोचते रहने से बढ़ती है। लेकिन अगर आप यह पकड़ लेते हैं कि सामने वाला भी हार के डर से गलत बाल डाल रहा है, गलत शाट खेल रहा है तो मजबूत नेतृत्व अपनी हताशा उस तरफ फेंक देता है। और आशावाद का परचम लहरा देता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एंव राजनीतिक विश्लेषक हैं)