दंगों ने बर्बाद कर दी थी बाबा टिकैत की विरासत, किसान पंचायत में ‘जूनियर’ टिकैत ने उसे फिर से आबाद कर दिया

आस मोहम्मद क़ैफ़

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2013 के बाद भारतीय किसान यूनियन का बंटवारा हो गया था और वो एक बेहद कमज़ोर संगठन बन गया था। दिवंगत चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत दुनिया से जा चुके थे और यह बिल्कुल ऐसा था जैसे टिकैत बंधुओं ने अपने पिता की मिली किसानों की एकजुटता की विरासत को खो दिया हो ! यहां तक कि चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के सबसे करीबी साथी ग़ुलाम मोहम्मद जौला भी अलग हो गए, हालांकि ग़ुलाम मोहम्मद जौला जरूर कहते रहे कि चौधरी टिकैत मुजफ्फरनगर दंगे के दौरान जिंदा होते तो यह दंगा ही ना होता।

ग़ुलाम मोहम्मद वो ही शख्सियत है वो दिंवगत चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के साथ ‘अल्लाहू अकबर और हर -हर महादेव ‘ का नारा साथ मिलकर लगाते थे। किसान यूनियन की यह एक परंपरा थी और 2013 दंगे के बाद यह परंपरा टूट गई थी। 5 सितंबर 2021 की महापंचायत में राकेश टिकैत ने यह नारा लगाकर न केवल इस परंपरा को फिर से जिंदा किया है बल्कि किसान एकता के नाम पर 36 बिरादरियों को साथ लाकर अपने पिता को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करने का काम किया है।

राकेश टिकैत अपने पिता के चार बेटों में से एक है,वो अपने पिता के साथ रहते थे। दिल्ली पुलिस की अपनी नौकरी भी उन्होंने अपने पिता के लिए ही छोड़ी थी। उनके बड़े भाई नरेश टिकैत प्रारम्भ से ही खेती संभालते है। नरेश टिकैत बालियान खाप के चौधरी भी है। राकेश टिकैत ने चूंकि चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के साथ काफी वक्त बिताया है इसलिए उनके पिता उनके गुरु भी रहे हैं।

टिकैत परिवार का दिवंगत चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के साथ बेहद भावुक रिश्ता है। आज भी चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के कमरे में देशी घी में ज्योत जलाई जाती रहती है और उनका बिस्तर और हुक्का लगाया जाता है। उनके बड़े  बेटे नरेश टिकैत खुद ऐसा करते हैं। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों की जिस एकता को विरासत के तौर पर टिकैत बन्धुओ को सौंपा था उसे 2013 के दंगों ने तोड़ दिया था मगर 2021 की किसान पंचायत में जुनियर टिकैत ने उसे फिर से जोड़ दिया है।

सोचिये 9 महीनों से घर नही लौटने वाले राकेश टिकैत को अपने पिता का वो कमरा कितना याद आ रहा होगा! जिसमें वो घण्टों इस अहसास के साथ बैठते रहते हैं कि उनके पिता उनके साथ है ! राकेश टिकैत सब कुछ अपने पिता के लिए कर रहे हैं। यही सत्य है क्योंकि खानदानी लोग विरासत को जान से भी ज्यादा तरजीह देते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, और मुजफ्फरनगर में रहते हैं)