आजमगढ़ः रिहाई मंच ने पिछले साल सूबे में आए 40 लाख से ज्यादा प्रवासी श्रमिकों के भरण पोषण रोजगार की व्यवस्था के योगी आदित्यनाथ के दावे के बाद पहली कोरोना लहर के लॉक डाउन के बाद आजमगढ़ के प्रवासी मजदूरों के सर्वे/संवाद पर आधारित एक रिपोर्ट जारी करते हुए सवाल किया। मंच ने कहा की योगी कह रहे हैं की दुनिया के तमाम संस्थान यूपी के इस सफल माडल पर शोध कर रहे हैं ये सफ़ेद झूठ है। सच्चाई तो पिछले दिनों दुनिया के तमाम मिडिया संस्थानों ने उजागर कर दी। योगी विज्ञापन और पीआर के बल पर सच्चाई को झुठला नहीं सकते।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने बताया कि पहली कोरोना लहर के लॉक डाउन के बाद आए प्रवासी मजदूरों के सहयोग के साथ सवांद स्थापित किया गया। इसी वक़्त उन्होंने सामाजिक-आर्थिक पहलुओं पर सरकार के दावों और जमीनी सच्चाई पर अध्ययन किया, जिसकी रिपोर्ट इस प्रकार की थी। आजमगढ़ के गौसपुर, सहदुल्लापुर, मोइयां मकदूमपुर, टेलीपुर, शुकुरपुर, शेखपुर हिसाम, हटवा खालसा, अहियायी, बेनुपुर, लहुआ खुर्द, कोइलाड़ी, हाजीपुर, हड़िया मित्तूपुर, रुस्तमपुरा अशरफ पट्टी, संगम नगर, घिनहापुर, देवयित उस्मानपुर, बसिला, इनवल, बासुपुर, कसेहुआँ गांवों के 225 प्रवासी मजदूरों पर एक सर्वे/संवाद हुआ। पिछले साल जिलाधिकारी आजमगढ़ ने प्रवासी/निवासी के रोजगार उपलब्ध कराने और उसे सेवा मित्र पोर्टल पर अंकन किए जाने की समीक्षा भी की थी।
कोरोना महामारी के दौरान योगी आदित्यनाथ सरकार ने 1 करोड़ 10 लाख मजदूरों को रोजगार देने का दावा करते हुए 26 जून को मेगा शो किया। मोदी की मौजूदगी में कहा गया की लॉक डाउन में यूपी सबसे अधिक रोजगार सृजित करने वाला पहला राज्य है। 26 जून तक 57 हजार से अधिक एमएसएमई इकाइयों को ऑन लाईन लोन दिया गया है और अब फिर से ऋण बांटा जाएगा। योगी ने नवीन रोजगार छतरी योजना के तहत यूपी की लगभग अट्ठारह हजार बैंक शाखाओं को लक्ष्य मिला कि कम से कम दो अनुसूचित जाती, जनजाति और महिला को अनिवार्य रूप से ऋण उपलब्ध कराएं जिससे 36 हजार लोग लाभान्वित होंगे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्वरोजगार योजना के तहत 3484 लाभार्थी खाते में 17।42 करोड़ रुपए भी हस्तांतरित किए।
आजमगढ़ से मुम्बई को चलने वाली गोदान एक्सप्रेस के 17 सितम्बर 2020 से चलने की भनक लगते ही फुल हो गई। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 21 अक्तूबर तक फुल हो गई है। आखिर जब रोजगार मिल गया था तो आखिर में लोग क्यों मुम्बई, दिल्ली, सूरत, अहमदाबाद जैसे महानगरों को भाग रहे थे। जबकि कोरोना का संक्रमण तेजी से बना हुआ था। वहीं यह भी सवाल है की विभिन्न योजनाओं के तहत दिए गए रोजगार का क्या होगा जो सरकार दावा कर रही। यहां एक ही स्थिति है की या तो उनको रोजगार मिला होगा या नहीं। अगर नहीं मिला और मजदूर रोजी-रोटी के लिए परदेश भाग रहे हैं तो यह एक बड़े भ्रष्टाचार का मामला है। क्योंकि सरकारी दावों के मुताबिक मजदूरों के मद में पैसा आ रहा था और अगर वे परदेश चले गए तो यह पैसा किसकी जेब में जा रहा था।
आजमगढ़ में 16 सितम्बर को आर्थिक तंगी से परेशान व्यक्ति ने फांसी लगाकर जान दी खबर आई। खबर थी कि आजमगढ़ के थाना अहरौला के दुर्वासा धाम के बलिया के पास बबूल के पेड़ की डाल पर मंगलवार को एक व्यक्ति का फंदे से लटका शव मिला। स्वजनों ने कहा की वह आर्थिक तंगी के चलते फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। अहरौला क्षेत्र के दही लेदौरा गांव निवासी हरेन्द्र कुमार (45) पुत्र रामकरण रोजी-रोटी के लिए दिल्ली रहते थे। लॉक डाउन लगा तो पांच माह पूर्व दिल्ली से घर आए थे। स्वजन का कहना है की रोजगार न मिलने से वे आर्थिक रूप से परेशान रहते थे। मंगलवार की दोपहर में करीब 12 बजे वे घर से साइकिल लेकर बस्ती भुजबल बाजार जाने की बात कह कर निकले थे।
यहां सवाल यह नहीं है की हरेन्द्र ने आत्म हत्या की यहां सवाल है की उसे रोजगार क्यों नहीं मिला अगर नहीं मिला तो दोषी अधिकारी-कर्मचारी के ऊपर क्या कोई कार्रवाई हुई। क्योंकि 15 सितम्बर को यानि जिस दिन हरेन्द्र ने आत्महत्या की उसी दिन खबर आई की श्रमिकों को रोजगार मुहैया कराने की प्रगति ख़राब। वहीं पंजीकरण व सेवा मित्र पोर्टल पर अंकन में विभाग फिसड्डी। यानि की प्रवासी मजदूर हरेन्द्र की आत्महत्या की वजह प्रशसनिक लापरवाही क्या नहीं होगी। आजमगढ़ में ही 13 सितम्बर को खबर आई कि पंजाब गए युवक की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत। सिधारी थाना के कटघर जमुरपुर गांव के नीरज राजभर लॉक डाउन के चलते चार माह पूर्व पंजाब की फैक्ट्री के काम को छोड़कर घर आ गए। 3 अगस्त को नीरज अपने दोस्त बलजीत के साथ फिर फैक्ट्री में काम करने के लिए पंजाब चले गए।
कहां गया विकास आयोग?
यहां सवाल उठता है की कहाँ हैं माइग्रेशन कमीशन और कामगार आयोग जिसकी घोषणा योगी सरकार ने की थी। पूर्वांचल विकास निधि और पूर्वांचल विकास आयोग कहां है। ठीक यही स्थिति पूरे सूबे की है। ठीक इसी दरम्यान बुंदेलखंड के एक प्रवासी मजदूर समेत चार लोगों ने फासी लगाकर जान दे दी। कमलेश गुजरात में काम करता था। भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से किए जाने वाले कंज्यूमर कांफिडेंट सर्वे के मुताबिक जुलाई 2020 में सर्वे में शामिल 77.8 फीसदी लोगों ने माना है की मौजूदा स्थिति ज्यादा ख़राब है। जोकि जुलाई 2019 में 37.4 फीसदी लोगों ने कहा था।
योगी सरकार में युवाओं के लिए नई स्टार्टअप नीति 2020 को मंजूरी देते हुए डेढ़ लाख लोगों के रोजगार का दावा किया गया। प्रदेश में लगभग दस हजार स्टार्टअप शुरू किए जाएंगे। 88 लाख श्रमिकों को प्रतिदिन मनरेगा से मिला रोजगार। 50 लाख से अधिक लोगों को वृहद् और एमएसएमई इकाइयों में रोजगार। 11 लाख कामगारों को नए रोजगार उपलब्ध करने के लिए एमओयू हस्ताक्षरित। 20 जून 2020 से 6 राज्यों के 116 जिलों के 29 लाख श्रमिकों के लिए 50 हजार करोड़ रुपए वाली गरीब कल्याण रोजगार अभियान की शुरुआत की गई। यूपी के 31 जिलों में प्रत्येक जिले में कम से कम 25 हजार श्रमिकों को गरीब कल्याण रोजगार अभियान जिसके तहत प्रवासी मजदूरों को 125 दिन 4 महीने रोजगार की बात कही गई। इसके बारे में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा की अगर मजदूर गांव में ही रुकते हैं तो इसकी अवधि 6 माह से एक साल तक के लिए बढ़ाई जा सकती है। यह योजना मनरेगा से अलग है।
सरकार और जिला प्रशासन के रोजगार के दावों को ट्रेन के टिकटों की मारामारी से आसानी से समझा जा सकता है। प्रदेश सरकार ने कोरेनटाइन सेंटरों में मजदूरों की स्किल मैपिंग करवाने की बात करते हुए कैरियर काउंसलिंग की बात कही। आत्म निर्भर भारत योजना के तहत 8 करोड़ प्रवासी मजदूरों के लिए 2 माह मई-जून 2020 के लिए 8 लाख टन अनाज जारी किया गया। पर 2 माह में 24 लाख श्रमिकों तक ही लाभ पहुंचा। आत्म निर्भर भारत योजना के तहत प्रवासी मजदूरों के सामने आए खाद्य संकट से निपटने के लिए सरकार ने एक काल पर राशन कार्ड बनाने की बात कही। प्रवासियों से पंजीकरण करवाने को कहा गया। प्रवासियों को भुगतान सम्बंधित समस्याओं को देखते हुए डाक विभाग द्वारा घर-घर पोस्टमैन के जरिए इण्डिया पोस्ट पेमेंट बैंक में 29 जून से खाता खोलने का दावा किया गया। अति कुपोषित बच्चों को कोविड के खतरे से बचाने के लिए उनके परिवारों का राशन कार्ड बनाने की बात कही गई।
पूरे नहीं हो पाए वादे
मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरूप अधिक से अधिक प्रवासी मजदूरों को उनके ही गाँव में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए 2 लाख मनरेगा से प्रतिदिन रोजगार उपलब्ध कराने का दावा किया। आजमगढ़ में लघु सिचाई विभाग को 3 करोड़ का कार्य योजना बनाकर प्रस्तुत करने की बात कही। वन विभाग को बताया गया की जहां पौधा रोपण करा रहा है वहां सुरक्षा खाईं आदि बनाने के लिए 100 लाख रुपए का प्रोजेक्ट प्रस्तुत करने के लिए निर्देशित किया। सिचाई विभाग को 50 करोड़ रुपए का लक्ष्य देते हुए निर्देश दिए की तमसा नदी में ड्रेजिंग के कार्य योजना बनाएं।
प्रदेश में 42 लाख नौ हजार आठ सौ सत्तानबे श्रमिकों को रोजगार देने के दावे के साथ कहा गया की आजमगढ़ एक लाख सत्रह हजार पांच सौ तिहत्तर श्रमिकों को रोजगार देते हुए तीसरे स्थान पर है। लोक निर्माण विभाग ने भी प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने का वादा किया। प्रधानमंत्री गरीब अन्न कल्याण योजना के तहत निशुल्क प्रति यूनिट पांच किलो चावल और प्रति कार्ड एक किलो चना 20 से 30 जून तक दिए जाने की बात कही गई। लॉक डाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराने के दावे के साथ आजमगढ़ जिला पूर्ती अधिकारी ने कहा की अब तक 7987 प्रवासियों का अस्थायी राशन कार्ड बनाया गया। इसमें से 11 जून तक 7079 प्रवासियों को राशन उपलब्ध कराया जा चुका है।
प्रवासी मजदूरों के लिए प्रवासी श्रमिक सहायता हेल्प डेस्क बनाया गया। जिसके तहत 10 सवाल पूछे गए जिसमे यह भी था की वो यहां रुकेंगे या पुनः वापस जाएंगे। जिस वक्त एक लाख सत्तावन हजार प्रवासी आने की बात कही गई तो बताया गया की 40 फीसदी सत्यापन में मिले अकुशल, 60 फीसदी कुशल, 85700 प्रवासी मई 2020 से आए, 54000 प्रवासी व कामगारों को एक-एक हजार रुपए देने का दावा किया गया। जिलाधिकारी आजमगढ़ ने कहा की 26 जून से एक साथ सभी सामुदायिक शौचालय का निर्माण प्रारंभ हो इसके तहत एक लाख पचास हजार मानव दिवस सृजित करना है। डीसी मनरेगा कहते हैं की किसी भी कीमत पर जेसीबी मशीनों से कार्य न हो। वहीँ शेखुपुर के प्रवासी मजदूर रिंकू यादव ने जब ग्राम प्रधान द्वारा जेसीबी से कार्य करने की शिकायत की तो प्रधान ने उनके ऊपर ही मुकदमा कर दिया। कई शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई।
भुखमरी की कगार पर पहुंचे मजदूर
राजीव यादव ने कहा कि पूर्वांचल समेत पूरे उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में सामाजिक-राजनीतिक संगठनों ने कोरोना काल में महानगरों में फसे मजदूरों की मदद की। मजदूरों को लेकर केंद्र और प्रदेश सरकारों ने बहुत सी घोषणाएं की। जमीनी स्तर पर इसके क्रियान्वयन को लेकर हुए अध्ययन में यह सामने आया कि राशन किट और एक हजार रुपए वितरण में भी अनियमितता है। वहीं माइग्रेशन कमीशन, कामगार कमीशन, यूपी से बाहर जाने पर उनका पंजीकरण, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, दिन दयाल उपाध्याय ऋण योजना, बैंकों द्वारा अनुसूचित जाती/जनजाति के मजदूरों को ऋण जैसी योजनाओं के बारे उन्हें कोई जानकारी ही नहीं है। बहुत से लोगों ने भुखमरी कि बात कही जो भयावह स्थिति को दर्शाता है। आजमगढ़ के 23 गावों में किए गए सर्वे में गौसपुर गांव में 71 लोगों ने जानकारी दी। कोविद महामारी/लॉक डाउन के कारण क्या दिक्कत हुई इसके जवाब में 5 लोगों ने भुखमरी, 35 लोगों ने कहा कि सरकार से कोई सहायता प्राप्त नहीं हुई, 6 लोगों ने कहा कि राशन मिला और कुछ नहीं मिला, 12 लोगों ने बताया कि एक बार एक हजार रुपए और राशन मिला और 13 लोगों ने खाने और रोजगार की दिक्कत बताया। मोइयां मकदूमपुर के 51 लोगों में इसी सवाल के जवाब में 32 लोगों ने बेरोजगार होने और 19 लोगों ने भुखमरी, काम बंद, खाने का संकट, कमरे का किराया आदि दिक्कतें बताईं।
एक ही गांव में कुछ को राशन किट तो कुछ प्रवासी मजदूरों को पैसा मिला और कुछ को नहीं ये प्रशासनिक अनियमितता के साथ भ्रष्टाचार का भी सवाल है। पहली कोरोना लहर के लॉक डाउन के बाद आए विभिन्न गावों के प्रवासी मजदूरों ने कुछ इस तरह की जानकारी दी – गौसपुर, निज़ामाबाद के नकुल बताते हैं कि दिल्ली में दिहाड़ी का काम करते थे। सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिली है। परिवार खाने को परेशान है। गौसपुर, निज़ामाबाद के जय सिंह बताते हैं कि मुम्बई में ड्राइवर-हेल्पर थे। छह हजार महीना पाने वाले कहते हैं कि रोजगार बंद हो जाने से आर्थिक स्थिति खराब हो गई है।
गौसपुर के सचिन कुमार, ओम प्रकाश, राम प्रताप, प्रकाश और मनोज कुमार ने भुखमरी के हालात बताए। दिनेश पाल सिलाई का काम दिल्ली के मायापुरी में काम करके ग्यारह हजार रुपए कमाते थे। श्रम विभाग में इनका रजिस्ट्रेशन है। सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिली। गौसपुर, निज़ामाबाद की नेहा बताती हैं कि मुंबई में गारमेंट सिलाई में काम करती थीं। तीन हजार रुपए पाने वाली बताती हैं कि रोजगार बंद हो जाने से आर्थिक स्थिति खराब है सरकार कोई मदद नहीं कर रही। गौसपुर, निज़ामाबाद की रेखा और बिंदू बताती हैं कि आजादपुर दिल्ली में रहकर सिलाई करके 4-4 हजार रुपए कमा लेती थीं। सरकार की तरफ से कोई सहायता इनको नहीं मिली है। रोजगार के साथ खाने की दिक्कत।
बक्सपुर, तौंवा सरायमीर के झिनकू बताते हैं कि दिल्ली आजादपुर मजदूरी का काम करते थे। दस हजार रुपए कमाने वाले झिनकू बेरोजगार हैं जिनके पास कोई काम नहीं है। सहदुल्लापुर, निज़ामाबाद के विजय कुमार बताते हैं कि मुंबई में पेंटिंग का काम कर दस हजार रुपए कमाते थे। परिवार में खाने की समस्या है सरकार की तरफ से कुछ नहीं मिला है। सहदुल्लापुर, निज़ामाबाद के रामलाल बताते हैं कि मुंबई में बढ़ई का काम करके बारह हजार रुपए कमाते थे। सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिली। परिवार की स्थिति खराब है। इसी गांव के आकाश कुमार जो कि 4 साल से लुधियाना पंजाब में रहते थे। सिलाई का काम करके 9 हजार महीने का कमा लेते थे ने बताया कि सरकार की तरफ से राशन के अलावां कुछ नहीं मिला परिवार में दवा के लिए बहुत परेशानी है।
कुजियारी, निज़ामाबाद के अजय यादव बताते हैं कि वे केरल के तिरुर में काम करते थे। टाइल्स का काम कर आठ हजार रुपए कमाते थे। अब उनके पास कोई रोजगार नहीं है। शेखुपुर, मोहम्मदपुर के दयाराम पाल बताते हैं कि मुंबई में ड्राइविंग का काम कर ग्यारह से तेरह हजार रुपए कमाते थे। परिवार की स्थिति खराब चल रही है। एक बार उनको राशन और एक हजार रुपए मिले हैं। मोइया मज़दूमपुर, निज़ामाबाद के अखिलेश बताते हैं कि मुंबई में 6 साल से कारपेंटर का काम करके दस हजार रुपए कमाते थे। कोई रोजगार नहीं है। शकूरपुर, मिर्जापुर के हीरालाल यादव बताते हैं कि दस वर्षों से दिल्ली में थे। रिक्सा चलाकर दस हजार रुपए कमाते थे। श्रम विभाग में और मनरेगा में रजिस्ट्रेशन नहीं है। वे सरकार से रोजगार की मांग करते हैं। अनेक प्रकार की समस्याएं हुईं थी। पैसे नहीं है।
तेलीपुर, निज़ामाबाद के धनंजय मौर्य बताते हैं कि गुरुग्राम में एक साल से पार्ट फिडिंग का काम कर दस हजार रुपए कमाते थे। श्रम विभाग या मनरेगा में कोई पंजीयन नहीं है। दो बीघा जमीन है खाने की तथा पैसे आदि की दिक्कत है। वे जाना नहीं चाहते स्थानीय स्तर पर रोजगार की बात करते हैं। बसिला, मेंहनगर के हरिकेश यादव बताते हैं कि मुंबई में कल्याण महाराष्ट्र में टाइल्स का काम कर 12 हजार रुपए कमाते थे। कोई पंजीयन नहीं है। एक एकड़ से कम जमीन है। खाने और रोजगार की दिक्कत है। इनवल, मेंहनगर के संजय कुमार जायसवाल बताते हैं कि कोलकाता में दस साल से टाइल्स का काम कर 15 हजार रुपए कमाते थे। कोई पंजीयन न मनरेगा न श्रम विभाग में है। एक एकड़ से कम जमीन है परिवार में आठ सदस्य है और कमाने वाला एक आदमी है। जब खाने-पीने की दिक्कत हुई तो ट्रक से घर आए। खाद्यान्न और रोजगार की जरूरत है।
शाह देवइत उस्मानपुर, मेंहनगर के राजेश, पति राज यादव बताते हैं कि बदलापुर महाराष्ट्र में 10 सालों से मजदूरी करते थे। 15 हजार महीना कमाते थे। 6 सदस्यीय परिवार में वे एक कमाने वाले थे। एक एकड़ से कम जमीन है न श्रम विभाग न मनरेगा में कोई पंजीयन है। खानेपीने की दिक्कत हुई तो पैदल निकल पड़े तो प्रशासन ने रास्ते में ट्रक में बैठवा के भेजवाया। खाद्यान और रोजगार की जरूरत। बासुपुर, पल्हना के फिरतू यादव बताते हैं कि 20 साल से मुंबई में दिहाड़ी मजदूरी कर 6 हजार महीना कमाते थे। 6 सदस्यीय परिवार में एक एकड़ से कम जमीन है। खाने के लिए खाद्यान सामग्री नहीं मिल रही। किसी अन्य जरूरत के लिए रुपए-पैसे नहीं हैं। रोजगार की वे मांग करते हैं। कसेहुआँ, मेंहनगर के नंदलाल यादव बताते हैं कि नागपुर महाराष्ट्र में दस सालों से काम करते थे। मजदूरी करके 9 हजार रुपए कमा पाते थे। 4 सदस्यीय परिवार में कमाने वाले वे एक आदमी थे। रोजगार न होने से खाने-पीने का संकट। घिनहापुर, मेंहनगर के राजू प्रजापति बताते हैं कि पंजाब में दस सालों तक काम किया है। 8 सदस्यीय परिवार में अकेले कमाने वाले 10 हजार रुपए कमाते थे। एक बीघा जमीन है। रोजगार की जरुरत। घिनहापुर, मेंहनगर के विवेक राजभर बताते हैं कि पंजाब जालंधर में काम करते थे। पीतल ग्लैण्डर में काम कर 8 हजार रुपए महीना कमाते थे।