पुलवामा की याद और सवाल: तीन साल हो गए, साजिश करने वाले कौन थे? कार्रवाई के नाम पर क्या हुआ?

संजय कुमार सिंह

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पुलवामा एक बड़ी घटना थी। देश की सुरक्षा को चुनौती। तीन साल हो गए। साजिश करने वाले कौन थे, क्या भूमिका थी – यह सब पता नहीं चला है। कार्रवाई के नाम पर कुछ ठोस नहीं हुआ है। निश्चित रूप से यह चिन्ता का विषय है। 14 फरवरी के द टेलीग्राफ ने बताया है कि कांग्रेस ने कल पुलवामा से संबंधित सवाल उठाए। अखबार ने लिखा है, समझा जाता है कि 2019 के इस हमले से उस साल अप्रैल मई में भाजपा को चुनाव प्रचार में सहूलियत हुई। वह राष्ट्रीय सुरक्षा और पाकिस्तान के खिलाफ केंद्र की जवाबी कार्रवाई को प्रचारित कर पाई।

दूसरी ओर, हिन्दुस्तान टाइम्स में सिंगल कॉलम की खबर का शीर्षक है, पाकिस्तान सहयोग नहीं कर रहा है, पुलवामा जांच तीन साल भी बाद वहीं अटकी है। सवाल यह है कि पाकिस्तान से सहयोग की उम्मीद की ही क्यों जा रही है। अगर हमला उसी ने करवाया हो तो वह सहयोग क्यों करेगा। वैसे भी, जांच तो इस बात की होनी है कि यहां बैठे कौन लोग पाकिस्तान के लिए काम कर रहे थे। या पाकिस्तान वहीं से यहां इतना बड़ा हमला कर सकता है?

जाहिर है, पुलवामा हमला अगर पाकिस्तान ने ही करवाया होगा तो यह नहीं मान लिया जा सकता है कि सब कुछ वहीं से हो गया होगा। यहां एक से ज्यादा लोगों को इसमें शामिल किया गया होगा और उन सबों को पहचान लिया जाए तो पाकिस्तान में उनके आकाओं को भी पहचाना जा सकता है। तथ्य यह है कि एनआईए ने तीन साल में ऐसा कुछ नहीं किया है और हिन्दुस्तान टाइम्स ने यही सूचना भर परोस दी है। इसी तरह कर्नाटक का एक और मामला है। 

यह मामला कौन किस लिए उठा रहा है समझना मुश्किल नहीं है। लेकिन इसकी रिपोर्टिंग कई तरह से हो रही है। सबसे पहले, खबर ही मत छापो; दूसरा, लोगों को और डराओ, परेशान करो, मुद्दे को गरमाओ ताकि ध्रुवीकरण हो; तीसरा सच बताओ। ज्यादातर लोग दूसरे वर्ग में हैं और इन्हें नहीं समझ में आ रहा है कि यह सब कौन कर रहा है। दरअसल यह समझना मुश्किल नहीं है कि यह सब कौन करवा रहा होगा।

मेरा मानना है कि फिर भी किसी को समझ में नहीं आ रहा है तो न आए पर उसे मामले को उलझाना नहीं चाहिए। बहुत साफ सी बात है कि जो भी कर रहा है, रोकना कर्नाटक सरकार को है और वह नहीं रोक रही है, रोकना नहीं चाहती है या रोक नहीं पा रही है। तीनों ही स्थितियों में आलोचना कर्नाटक सरकार की होनी चाहिए लेकिन कुछ फर्जी पत्रकार मामले को समझते नहीं है जबकि कुछ प्रचारक मामले को उलझाने वाले सवाल उठाते हैं।  

इसके बावजूद, प्रधानमंत्री ने कहा और हिन्दुस्तान टाइम्स ने पहले पन्ने पर छापा है, नया इंडिया सिर्फ नए पंजाब से संभव है। इसपर उनसे पूछा जाना चाहिए, क्या नया पंजाब ‘नए’ कर्नाटक जैसा होगा। जाहिर है, केंद्र सरकार की चली तो पूरे भारत को उत्तर प्रदेश या कर्नाटक बना दिया जाए और जैसा मुख्यमंत्री ने कहा है, अगर जनता भाजपा को वोट नहीं देगी तो संबंधित राज्य केरल या बंगाल जैसा हो जाएगा।

पर मुख्यमंत्री से कोई नहीं पूछेगा कि उसमें बुराई क्या या उत्तर प्रदेश में बेहतर क्या है। या जो फर्जी दावे किए जा रहे हैं उनका आधार क्या है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एंव स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)