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मां-बाप ख़ुद शिकार हैं, बच्चों को मोबाइल की लत से कैसे निकालेंगे!

जब से स्फमार्ट मोबाइल फोन आम हो गया है तब से हरखास-ओ-आम इसकी दीवानगी में पागल होता जा रहा है। सोशल मीडिया, वीडियोज़, व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्ट्राग्राम.. की दीवानगी आदत बनी और आदत लत बन गई। अब ये लत पागलपन में तब्दील हो रही है। क़रीब डेढ़ दशक पहले स्मार्ट फोन के नए-नए सस्ते नेट प्लान लॉन्च हुए। इतने सस्ते कि कम आमदनी वाला साधारण इंसान भी इसे एफोर्ड कर लें। अधिकांश जनता ने ऐसे नेट प्लान से रिश्ता क़ायम कर किया। और फिर धीरे-धीरे धीरे बच्चे, बूढ़े, जवान, गरीब, अमीर,अपर क्लास, मिडिल क्लास, शहर वाले, गांव वाले.. सब आधुनिक मोबाइल फोन के तिलिस्म में बंध सा गए। इसकी लत से बड़ों ने अपनी जिम्मेदारियों की कामचोरी शुरू कर दी और बच्चों ने मैदान के खेलों को त्याग दिया। ड्यूटी पर हों या किचन में, सड़क पर हों या बस,ट्रेन, कार, रिक्शे में, बिस्तर पर हों या डाइनिंग टेबल पर.. सब के हाथ में मोबाइल फोन दिखेगा। ऐसे दृश्य इंसानों के पागल हो जाने के सुबूत हैं।

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कंपनियों ने पहले आटे से भी सस्ता डाटा बेचा, जब लोग इसके  तिलिस्म में फंसे गए तो अब डाटा आटे से कभी ज्यादा मंहगा होता जा रहा है। इसकी ऐसी आदत हो गई कि अब शायद कम आमदनी वाला भले ही आटा नहीं खरीदे और भूखा रह जाए पर डाटा खरीदें बिना नहीं रह पाएगा।

ये ऐसा नशा हो गया है कि जिस तरह ड्रग एडिक्ट, नशेड़ी, गंजेड़ी चोरी करके मंहगा नशा करते हैं, ऐसी ही आम इंसान के मोबाइल में डाटा और जेब में पैसा न हो तो शायद उसका मोबाइल चलाने का नशा उसे चोरी करने पर मजबूर कर दे तो ताजुब नहीं होगा। क्योंकि अब आए दिन मोबाइल एडिक्ट लोगों की आपराधिक घटनाओं की ख़बरें आने लगी हैं।

अभी एक दिन पहले दो ख़बरें एक साथ आईं, एक सुखद और दूसरी बेहद दुखद। कैंसर अब लाइलाज नहीं रहा इस खबर के साथ दूसरी खबर दिल को दहलाने वाली थी। लखनऊ में एक किशोर ने अपनी मां को गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया। घर के एक कमरे में दो दिन तक लाश पड़ी रही, मां को मार कर किशोर अपनी रूटीन दिनचर्या में लग गया। अपने स्मार्टफोन पर पबजी  खेलता रहा और ऑनलाइन पिज्जा वगैराह मंगवाकर खाता रहा। दोस्तों को घर में बुलाकर पार्टीं की और गाने बजाए।

बताया जाता है कि पबजी के नशे में डूबे इस बेटे को स्मार्ट फोन पर ये खेल खेलने से मना करती थी मां, लेकिन बेटे को पबजी में खलल बनी मां की टोका-टाकी पसंद नहीं थी इसलिए उसने मां को गोलियों से भून दिया।

दरअसल मां अंतिम दौर में पंहुचा चुके मोबाइल की लत के कैंसर का इलाज करना चाहती थी, जो संभव नहीं था, उसका बच्चा कैंसर जैसी लत के साथ काफी बड़ा हो चुका था। मोबाइल पर इंटरनेट का ये खतरनाक खेल पबजी की लत भी किशोर के भीतर काफी बड़ी हो चुकी थी। और उसके दिमाग़ को असमान्य बना चुकी थी। इसलिए बेटे ने मां को गोली मार दी, बहुत पहले ही मां बेटे को थप्पड़ मार के मोबाइल उसके हाथ से छीन लेती तो बात इस हद तक न बढ़ती।

अब सवाल इस बात का है कि बड़े छोटों को या अभिभावक अपने बच्चों को मोबाइल की लत से कैसे छुटकारा दिलवाएं, जब वे खुद मोबाइल की लत में पागल हो चुके हैं।